संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) NDA Exam 2021 14 नवंबर, 2021 को निर्धारित है. इस वर्ष, यह संभावना है कि महिला उम्मीदवारों को भी NDA में सीटों के लिए उपस्थित होने और कंपीटिशन में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने महिला उम्मीदवारों को NDA परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का निर्णय लिया है. यह अंतरिम आदेश वकील कुश कालरा द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में आया है, जिसमें UPSC एनडीए परीक्षा में पुरुषों के समान महिलाओं के लिए समान अवसर की मांग की गई थी
आदेश के बाद अब यह संभावना है कि UPSC UPSC NDA / NA II Exam 2021 के लिए आवेदन प्रक्रिया को फिर से ओपेन हो सकता है. सभी इच्छुक एवं योग्य उम्मीदवारों को आधिकारिक वेबसाइट upsc.gov.in पर चेक रखने की सलाह दी जाती है. उम्मीदवार कृपया ध्यान दें कि आदेश केवल अंतरिम है और फाइनल निर्णय के अधीन है, जो 8 सितंबर, 2021 को होने की उम्मीद है
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने 18 अगस्त, 2021 को इस याचिका पर सुनवाई की. उन्होंने UPSC NDA जैसी राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा में महिलाओं को समान अवसरों से वंचित किए जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की. दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि UPSC NDA परीक्षा नोटिस संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19 का पूर्ण उल्लंघन है
इसके विपरीत, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. उन्होंने तर्क दिया कि यह सरकार का नीतिगत निर्णय है. जिस पर पीठ ने जवाब दिया था कि UPSC NDA परीक्षा के लिए नीतिगत निर्णय पूरी तरह से लैंगिक भेदभाव पर आधारित है और केंद्र को इसे खत्म करने के लिए एक रचनात्मक कदम उठाना चाहिए. भारत सरकार ने तर्क दिया था कि उसकी भर्ती नीति न तो भेदभावपूर्ण है और न ही महिलाओं के करियर की प्रगति को बाधित कर रही है ।
याचिकाओं में क्या कहा गया है?
कुश कालरा और कैलाश मोरे की तरफ से दाखिल अलग-अलग याचिका में बताया गया है कि लड़कियों को सेना की नौकरी देते समय ग्रेजुएशन की शर्त रखी गई है. जबकि लड़कों को 12वीं की परीक्षा के बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी में शामिल होने दिया जाता है. इस तरह से लड़कियां सेना में अपनी सेवा की शुरुआत में ही लड़कों से पिछड़ जाती हैं.
लड़कियों के लिए सेना में शामिल होने के जो अलग-अलग विकल्प हैं, उनकी शुरुआत ही 19 साल से लेकर 21 साल तक से होती है. ऐसे में जब तक लड़कियां सेना की सेवा में जाती हैं, तब तक 17-18 साल की उम्र में सेना में शामिल हो चुके लड़के स्थायी कमीशन पाए अधिकारी बन चुके होते हैं. इस भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए.
याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि सेना में युवा अधिकारियों की नियुक्ति करने वाले नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी में सिर्फ लड़कों को ही दाखिला मिलता है. ऐसा करना उन योग्य लड़कियों के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहती हैं.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए उस फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए कहा गया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि जिस तरह कोर्ट ने सेवारत महिला सैन्य अधिकारियों को पुरुषों से बराबरी का अधिकार दिया, वैसा ही उन लड़कियों को भी दिया जाए जो सेना में शामिल होने की इच्छा रखती हैं.