दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं मध्य प्रदेश में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले

मध्य प्रदेश में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं जिससे ऐसा…

पहला जनजाति खेल महोत्सव 2023,18 राज्यों के 6000 एथलीट के साथ बूमरैंग प्रदर्शन और प्रदर्शनी …

ओडिशा। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, कलिंगा सामाजिक संस्थान के सहयोग से पहला जनजाति महोत्सव 2023,दुनिया में…

11 राजनीतिक पार्टियां और 6 सामाजिक संगठन ने लिया संकल्प गैर -बीजेपी गैर- कांग्रेसी बनेगी सरकार

गैर -बीजेपी गैर- कांग्रेसी बनेगी सरकार अपनी सरकार बनाओ संविधान बचाओ मोर्चा मध्यप्रदेश के बैनर तले…

New Business Idea: इस बिजनेस में निवेश करने वाले हो गए मालामाल, घर बैठे बना ली लाखों की प्रॉपर्टी

Tea Processing Business: देश में चाय के दीवानों की तादाद दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ऐसे…

Taraka Ratna: साउथ फिल्म इंडस्ट्री को तगड़ा झटका! जूनियर NTR के कजिन भाई तारक रत्न का निधन, हार्टअटैक ने ली जान

Taraka Ratna Death: साउथ स्टार और नेता तारक रत्न (Taraka Ratna) ने दुनिया को अलविदा कर दिया…

Tamannaah Bhatia का सेक्सी अंदाज देख आउट ऑफ कंट्रोल हुए रूमर्ड बॉयफ्रेंड Vijay Varma, वीडियो पर किया ऐसा कमेंट

Tamannaah Bhatia-Vijay Varma की डेटिंग की खबरों ने गॉसिप गलियारों में इन दिनों खूब रौनक लगा रखी…

253 निष्क्रिय की अस्तित्वहीन पार्टियों को हटाया

निर्वाचन आयोग ने सोमवार को 86 और अस्तित्वहीन राजनीतिक दलों को सूची से हटाने का फैसला…

तमिलनाडु में छात्रा की मौत पर हिंसक प्रदर्शन

तमिलनाडु के कल्लकुरिचि जिले के चिन्ना सालेम स्थित एक स्कूल में 12वीं की छात्रा की मौत…

बेशक मानसून के रास्ते में दो बार बड़ी अड़चन

मानसून 28 जून तक यूपी बिहार की सीमा पर मऊ के पास 12 दिन से अटका…

खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा गोटुल लायब्रेरी।

सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता है।

हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है, ये कुदरती चीजे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता एवं बहिष्कार को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उन्हें उचित या ‘न्यायसंगत’ भी मानते हैं। शायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। ऐसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहाँ नहीं होते जहाँ वे आज हैं।

गौर से देखने पर हम यह पाते हैं कि जो लोग समाज के सबसे निम्न स्तर के हैं, वही सबसे ज्यादा परिश्रम करते हैं। एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है, “यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज़ होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते!” संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना, रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कमरतोड़ काम गरीब लोग ही करते हैं। फिर भी वे अपना जीवन शायद ही सुधार पाते हैं। ऐसा कितनी बार होता है कि कोई गरीब मज़दूर एक छोटा-मोटा ठेकेदार भी बन पाया हो? ऐसा तो केवल फ़िल्मों में ही होता है कि एक सड़क पर पलने वाला बच्चा उद्योगपति बन सकता है। परंतु फ़िल्मों में भी अधिकतर यही दिखाया जाता है कि ऐसे नाटकीय उत्थान के लिए गैर कानूनी या अनैतिक तरीका जरूरी है।

आदिवासी भाषाएँ, संस्कृति, जीवन मूल्य, सोच, दर्शन और परंपराएँ इस देश की मौलिक विरासत है। इनकी विलुप्ति सम्पूर्ण आदिवासी जीवन धारा की मृत्यृ होगी। इसे बचाने के लिए अपनी सोच और चिंतन तथा जीवन और समाज में इसे जगह देना होगा। विशाल भारतीय समाज में विविधता और बहुलता बनी रहे इसके लिए तो खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा। बाहरी वर्चस्ववाद का मुकाबला अपनी भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं, सोच-विचार, विश्वास, मूल्य, कल्पना-परिकल्पना, आदर्श, व्यवहार को बचा कर ही किया जा सकता है।