मणिपुर पहुंचीं डीसीडब्ल्यू अध्यक्ष स्वाति मालिवाल, पीएम मोदी और स्मृति ईरानी से की यह अपील….

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11 राजनीतिक पार्टियां और 6 सामाजिक संगठन ने लिया संकल्प गैर -बीजेपी गैर- कांग्रेसी बनेगी सरकार

गैर -बीजेपी गैर- कांग्रेसी बनेगी सरकार अपनी सरकार बनाओ संविधान बचाओ मोर्चा मध्यप्रदेश के बैनर तले…

Mukesh Ambani का फ‍िर बढ़ा साम्राज्‍य, एक और कंपनी का टेक ओवर प्रोसेस पूरा

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Assembly Election Results 2023:  तीनों राज्‍यों की कुल 178 सीटों पर 811 उम्‍मीदवारों की किस्‍मत का फैसला…

खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा गोटुल लायब्रेरी।

सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता है।

हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है, ये कुदरती चीजे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता एवं बहिष्कार को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उन्हें उचित या ‘न्यायसंगत’ भी मानते हैं। शायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। ऐसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहाँ नहीं होते जहाँ वे आज हैं।

गौर से देखने पर हम यह पाते हैं कि जो लोग समाज के सबसे निम्न स्तर के हैं, वही सबसे ज्यादा परिश्रम करते हैं। एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है, “यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज़ होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते!” संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना, रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कमरतोड़ काम गरीब लोग ही करते हैं। फिर भी वे अपना जीवन शायद ही सुधार पाते हैं। ऐसा कितनी बार होता है कि कोई गरीब मज़दूर एक छोटा-मोटा ठेकेदार भी बन पाया हो? ऐसा तो केवल फ़िल्मों में ही होता है कि एक सड़क पर पलने वाला बच्चा उद्योगपति बन सकता है। परंतु फ़िल्मों में भी अधिकतर यही दिखाया जाता है कि ऐसे नाटकीय उत्थान के लिए गैर कानूनी या अनैतिक तरीका जरूरी है।

आदिवासी भाषाएँ, संस्कृति, जीवन मूल्य, सोच, दर्शन और परंपराएँ इस देश की मौलिक विरासत है। इनकी विलुप्ति सम्पूर्ण आदिवासी जीवन धारा की मृत्यृ होगी। इसे बचाने के लिए अपनी सोच और चिंतन तथा जीवन और समाज में इसे जगह देना होगा। विशाल भारतीय समाज में विविधता और बहुलता बनी रहे इसके लिए तो खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा। बाहरी वर्चस्ववाद का मुकाबला अपनी भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं, सोच-विचार, विश्वास, मूल्य, कल्पना-परिकल्पना, आदर्श, व्यवहार को बचा कर ही किया जा सकता है।

एलन मस्‍क ने दावा किया है कि उनकी कंपनी न्‍यूरालिंक एक साल से भी कम समय में इस चिप को इंसान के दिमाग में लगाने के लिए तैयार है.

सोचिए अगर आपको सुबह 4 बजे उठकर फ्लाइट पकड़नी है. आप अलार्म लगाना ही भूल गए…