मोदी की बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई में कांग्रेस की दुविधा- हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कैसे साधे संतुलन

Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810

राहुल गांधी

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बीच कांग्रेस के भीतर से ऐसी आवाज़ें उठ रही हैं कि हिंदुओं को भी पार्टी के साथ लेकर चलना होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने बीते दिनों कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिंदुओं को साथ मिलाने की ज़रूरत है और सिर्फ़ अल्पसंख्यकों के बलबूते ये जंग नहीं जीती जा सकती.

एके एंटनी केरल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फ़िलहाल वे कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य हैं.

एके एंटनी ने तिरुवनंतपुरम में पिछले बुधवार कहा कि ”मंदिर जानेवालों, माथे पर टीका-चंदन लगाने वालों को नर्म हिंदुत्ववादी कहने से नरेंद्र मोदी को फिर से जीत में मदद मिलेगी. हमें मोदी के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिंदुओं को साथ लेने की ज़रूरत है.”

इससे पहले 28 दिसंबर को कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस पर पार्टी कार्यकर्ताओं को ऐसा ‘जुड़ाव’ पैदा करने के लिए कौन से गुर दिए गए, ये साफ़ नहीं है.

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राजनीति में धर्म पर कांग्रेस की नीति

लेकिन बहुसंख्यकों के एक बड़े वर्ग की कांग्रेस से दूरी एक समय में देश के सभी धर्मों-जातियों-वर्गों का प्लेटफ़ॉर्म माने जाने वाले राजनीतिक दल के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है.

जानकारों की राय में पार्टी अभी तक इसे लेकर कोई साफ़ सोच या रणनीति तैयार कर पाई है, ऐसा नहीं लगता.

कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को तत्कालीन बंबई (अब मुंबई) में हुई थी. इसी अवसर पर पार्टी ने स्थापना दिवस से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया था.

लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई पार्टी के भीतर से समय-समय पर उठनेवाले इस तरह के बयानों को हाल के सालों में राजनीति में धर्म पर कांग्रेस की ढुलमुल नीति का नतीजा मानते हैं.

कांग्रेस

मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप

भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिंदुत्वादी संगठन कांग्रेस पर लगातार मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते रहे हैं.

एके एंटनी के ताज़ा बयान को बीजेपी ने समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, ‘कांग्रेस द्वारा हिंदुओं को महज़ वोट बैंक समझा जाना बताया है’.

कांग्रेस की यूपीए सरकार में मंत्री रहे और वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चौहान ने बीबीसी से कहा कि एके एंटनी का ये विचार कोई नया नहीं है और वो इस पर लंबे समय से क़ायम रहे हैं.

हालांकि इसके साथ ही पृथ्वीराज चौहान ने एंटनी के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने की बात भी कही.

बीबीसी ने इस सिलसिले में एके एंटनी से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस मामले पर कुछ कहने से मना कर दिया.

एके एंटनी

एके एंटनी का बयान

केरल से तालुक्क़ रखनेवाले पत्रकार और एंटनी को क़रीब से जाननेवाले वीके चेरियन का भी कहना है कि उनकी बात को उस ढंग से पेश नहीं किया गया जैसा कि उन्होंने कहा था.

उनके अनुसार, एके एंटनी का पूरा बयान कुछ इस प्रकार था, “हमें मोदी के ख़िलाफ़ लड़ाई में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों, दोनों समुदायों के समर्थन की ज़रूरत है.

अल्पसंख्यकों की तरह, बहुसंख्यकों को भी मंदिर जाने और तिलक लगाने का अधिकार है. ऐसे लोगों को नर्म हिंदुत्व वाला क़रार देने से मोदी को फिर से सत्ता में आने में मदद मिलेगी.

हमें मोदी के विरुद्ध लड़ाई (राजनीतिक) में हिंदुओं को भी साथ लेना होगा. कांग्रेस सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है.”

एके एंटनी ने साल 1996, 1999 और 2004 में इसी से मिलती-जुलती बातें कही थीं जिसमें पार्टी के बुरे नतीजों के लिए दूसरे कारणों जैसे आर्थिक उदारीकरण के साथ-साथ ‘भगवा आतंकवाद’, ‘शिक्षा के भगवाकरण’ वगैरह जैसी शब्दावलियों को ज़िम्मेदार बताया गया था.

उदयपुर चिंतन शिविर

हालांकि पिछले कुछ दिनों से एके एंटनी का बयान चर्चा में बना हुआ है.

लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर मुस्लिमवादी छवि को हटाने की फ़िक्र कितनी गहरी रही है और ये इस बात से समझा जा सकता है कि पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने साल 2018 में कार्यकर्ताओं से एक भाषण में कहा था कि ‘बीजेपी लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाने में सफल रही है कि हम मुसलमानों की पार्टी हैं.’

मई में उदयपुर में आयोजित कांग्रेस चिंतन शिविर में भी हिंदुत्व पर पार्टी के भीतर गर्मागर्म बहस हुई थी.

इसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता कमलनाथ का कहना था कि कांग्रेस को हिंदू तीज-त्योहारों और कार्यक्रमों से ख़ुद को जबरन दूर रखने की ज़रूरत नहीं है.

जबकि दक्षिण के कुछ नेताओं और पृथ्वीराज चौहान का कहना था कि वैचारिक मामलों पर कांग्रेस का रुख़ साफ़ होना चाहिए.

राहुल गांधी

कांग्रेस का ‘आउटरीच प्रोग्राम’

उदयपुर चिंतन शिविर में विचारधारा के द्वंद्व के बीच एक और बात जो निकलकर सामने आई, वो थी- जनसंपर्क अभियान. इसे ‘आउटरीच प्रोग्राम’ कहा गया और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इसकी रूपरेखा पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी में चर्चा हुई थी.

इसी के तहत, कई राज्यों में स्थानीय नेताओं ने दही हांडी प्रतियोगिता, गणेश पूजन जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है.

हालांकि इसके नतीजे कुछ दूसरे रूप में भी सामने आए हैं. जैसे मध्य प्रदेश के भोपाल में कुछ मुसलमान कार्यकर्ता पार्टी मुख्यालय में बक़रीद के मौक़े पर क़ुर्बानी के बकरे लेकर पहुंच गए और कहने लगे कि पार्टी में अगर हिंदू उत्सव मनाए जा सकते हैं तो फिर मुस्लिम त्योहार क्यों नहीं.

पार्टी को उन लोगों को पुलिस बुलाकर वहां से हटवाना पड़ा.

समझा जाता है कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार से लेकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ की पूर्व हुकूमत में राम गमन पथ का निर्माण, गोमूत्र-गोबर की ख़रीद, गौशाला और आध्यात्मिक विभाग की स्थापना, संस्कृत की पढ़ाई पर ज़ोर देने जैसे क़दम हिंदुओं को साथ लाने की पार्टी की कोशिश का हिस्सा हैं.

आलोचक कहते हैं पश्चिम की तर्ज़ पर ‘अति हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन’ चिंता का सबब हो सकता है.

मुसलमानों से दूरी, गोवध, सबरीमला

मध्य प्रदेश चुनाव घोषणा पत्र समिति के प्रमुख ने तो यहां तक कहा कि ‘बीजेपी हमें एक मुस्लिम पार्टी कहती थी. हमने अपने विरोधियों द्वारा लगाए गए लेबल को हटाने के लिए ये निर्णय सोच-समझकर लिया है.’

भूपेश बघेल खुले तौर पर हिंदू कार्यक्रमों में शामिल होते रहे हैं. उन्होंने बीबीसी से एक पुरानी बातचीत में कहा था कि कांग्रेस को हिंदू कार्यक्रमों से ख़ुद को जबरन अलग रखकर रिक्त स्थान नहीं छोड़ना चाहिए जिसे भरने का मौक़ा बीजेपी को हासिल हो जाए.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बीजेपी-आरएसएस पर राजनीतिक फ़ायदे के लिए धर्म के इस्तेमाल का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन ख़ुद समय-समय पर मंदिरों-मठों के चक्कर लगाते रहे हैं और पार्टी के नेता ने उन्हें जनेऊधारी बताने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ते हैं.

रशीद किदवई कहते हैं, “राजनीति में धर्म का मामला कांग्रेस के लिए शरीर में चुभे कांटे की तरह है. विचारधारा को लेकर भी उसके भीतर साफ़गोई नहीं रही है. एंटनी इसी बात को सामने लाना चाहते हैं. हालांकि कांग्रेस को ख़ुद मालूम नहीं कि बिल्ली के गले में घंटी कैसे बांधी जाए.”

“अर्थव्यवस्था, धर्म और जातिवाद जैसे मुद्दों पर वामपंथी राजनीतिक दल, दक्षिणपंथी पार्टियों जैसे बीजेपी, यहां तक कि समाजवादी विचारधारा की पार्टियां और दक्षिण भारत तक के दल डीएमके का नज़रिया साफ़ रहा है.

लेकिन कांग्रेस में इन बातों पर आज के दिन में अस्पष्टता है और पार्टी में इन बातों को लेकर कई तरह की राय है जिस पर एक स्टैंड लेने की बात थोड़े-थोड़े दिन पर अलग-अलग जगहों से उठती रहती है.”

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पार्टी का दोहरा रुख़

उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस के नाम पर हुई लिंचिग के बाद जब गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात बीजेपी ने कही थी, तब कांग्रेस के कई नेताओं ने बयान दिया था कि भाजपा को याद रखना चाहिए कि ख़ुद कांग्रेस ने इस मामले पर दशकों पहले 1955 में पहल कर दी थी और कुछ राज्यों में 1955 में ही गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

सीनियर कांग्रस नेता दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कहा था कि उनकी पार्टी गोहत्या पर राष्ट्रीय क़ानून लाए जाने को लेकर बहस के लिए तैयार है और वो इस मामले पर पार्टी अध्यक्ष (तत्कालीन) सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से चर्चा करेंगे.

सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर भी पार्टी ने दोहरा रुख़ अपनाया. पहले तो अदालत के फ़ैसले को सराहा जिसमें सभी उम्र की हिंदू महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाज़त का आदेश सुनाया गया था, लेकिन बाद में पार्टी ने इस पर अपना नज़रिया कुछ दूसरी तरह से पेश किया. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की राय केरल प्रदेश कांग्रेस की राय से अलग थी.

हालांकि शरद गुप्ता कहते हैं कि वो ये मानने को तैयार नहीं कि जिन हिंदू उत्सवों को कांग्रेस के नेताओं द्वारा मनाए जाने की बात कही जा रही है, वो पार्टी के बड़े नेताओं के इशारे पर हो रही हैं.

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हिंदू वोट की ज़रूरत

पृथ्वीराज चौहान कहते हैं कि कांग्रेस सर्वधर्म के सम्मान में यक़ीन रखती है, मगर वो ये मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता जैसे मामलों को साफ़ तौर पर समझाना आज के हालात में मुश्किल हो गया है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चौहान का कहना है, “ज़रूरत है कि कांग्रेस धार्मिक मामलों में सभी मज़हब के लोगों से बराबर की दूरी क़ायम रखे और अपने कार्यकर्ताओं को संविधान को लेकर अधिक से अधिक जानकारी मुहैया करवाये ताकि वो आम लोगों तक इन बातों को पहुंचा सकें.”

कांग्रेस पिछले दिनों कार्यकर्ताओं के लिए संविधान शिविर का आयोजन कर रही थी. इसी तरह का एक शिविर आठ दिसंबर को नवी मुंबई में आयोजित किया गया था.

पार्टी के भीतर एक सोच है कि बीजेपी ख़्वामख़ाह इस बात का प्रचार करती है कि सारे हिंदू उसके साथ हैं, क्योंकि पार्टी को साल 2014 में जो 31 प्रतिशत वोट मिले थे वो पिछले आम चुनाव (साल 2019 के चुनाव) में बढ़कर 37 फ़ीसद तक ही पहुंच पाया, यानी हिंदू वोट का एक बड़ा प्रतिशत है जो अभी भाजपा की ओर नहीं गया है.

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धर्मनिरपेक्षता पर संकट

हालांकि इस पर शरद गुप्ता कहते हैं, “नब्बे के उस दशक में भी जब ‘बच्चा-बच्चा राम का, मंदिर के काम का’ जैसे नारे जगह-जगह लगते थे, आम जनता का मिज़ाज उस क़दर मुस्लिम विरोधी नहीं था जैसा पिछले आठ सालों में देखने को मिल रहा है.”

बीजेपी के एक मुस्लिम नेता से अपनी बात का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि ‘जब मैंने उनसे पूछा कि पार्टी ने तो टिकट नहीं दिया तो क्या करेंगे. इस पर उन्होंने कहा कि इंतज़ार, फिर बोले दूसरी पार्टियां भी वैसे मुसलमानों को टिकट देने से पहले सोचती हैं.’

देश की सत्ताधारी पार्टी मुसलमानों को चुनावों में टिकट देने से परहेज़ करती हुई दिख रही है तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस में समुदाय के लोगों को टिकट दिया जाना अब पहले जैसा नहीं रहा है.

साल 2014 के आम चुनाव में पार्टी ने अपने कुल उम्मीदवारों में से छह प्रतिशत से भी कम टिकट मुस्लिम प्रत्याशियों को दिया था.

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हिंदू राष्ट्रवाद

फ्रांसीसी स्कॉलर क्रिस्टोफ़ जेफ़रोले ने हाल ही में अपने एक लेख में लिखा है कि सेक्यूलरिज़म पर जो संकट इस समय खड़ा हुआ है, वो अचानक से तैयार नहीं हुआ बल्कि ख़ुद कांग्रेस पार्टी में इस पर 1980 के दशक से ही इसकी पृष्ठभूमि तैयारी होती दिख रही है.

इस सिलसिले में क्रिस्टोफ़ जेफ़रोले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्था क़रार देने, भिंडरावाले को बढ़ावा और विश्व हिंदू परिषद की मदद से बनी भारत माता मंदिर के कार्यक्रम में शामिल होने का ज़िक्र करते हैं.

इंदिरा गांधा का हत्या के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाए जाने, राम मंदिर का शिलान्यास, और फिर शाह बानो के मामले में स्टैंड बदलने की घटनाएं बहुत पुरानी नहीं हैं, और फिर केंद्र में पीवी नरसिंह राव की सरकार रखते हुए बाबरी मस्जिद का विध्वंस भी हुआ था.

जेफ़रोले कहते हैं इन घटनाओं ने हिंदुत्वादियों को ये मौक़ा दिया कि वो कांग्रस को ‘छद्म-धर्मनिरपेक्षतावादी’ कहकर बुलाएं. उन्होंने लिखा है, “भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा को इन फ़ैसलों से धूमिल करके इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने हिंदू राष्ट्रवाद के लिए दरवाज़े खोल दिए.”

आरएसएस

हिंदू कार्यकर्ता

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

अटल बिहारी वाजपेयी

हिमंत बिस्वा सरमा

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