Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
असम पुलिस राज्य में बाहर से आने वाले मुस्लिम समुदाय के सभी इमामों की पहचान की पुष्टि करेगी. इसके लिए असम सरकार ने एक एसओपी अर्थात स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर निर्धारित की है.
दरअसल असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार को पत्रकारों से कहा, “हमने एक एसओपी बनाई है. अगर राज्य के बाहर से कोई नया इमाम किसी गांव में आता है, तो स्थानीय ग्रामीण इसकी सूचना स्थानीय पुलिस स्टेशन को देंगे जिसके बाद पुलिस उस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि करेगी.”
उन्होंने यह भी कहा कि इस काम के लिए एक सरकारी पोर्टल बनाया जाएगा, जिस पर इमामों और मदरसा शिक्षकों को अपना पंजीकरण कराना होगा.
मुख्यमंत्री सरमा का यह दावा है कि इस काम में असम का मुस्लिम समुदाय सरकार की मदद कर रहा है.
असल में मुख्यमंत्री सरमा का यह बयान राज्य में अल-कायदा भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) जैसे चरमपंथी संगठनों से कथित रूप से जुड़े कुछ लोगों की गिरफ्तारी के बाद सामने आया है.
पुलिस की जानकारी में ऐसा कहा जा रहा है कि राज्य में गिरफ्तार किए गए इन लोगों में कुछ मस्जिदों के इमाम हैं और कुछ मदरसों के शिक्षक हैं.
असम पुलिस ने शनिवार की रात ग्वालपाड़ा ज़िले से जिन दो संदिग्ध लोगों को गिरफ़्तार किया था उनका सीधा संबंध अल-कायदा और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम से बताया जा रहा है.
पुलिस ने गिरफ़्तार इन दोनों लोगों की पहचान अब्दुस सुभान और जलालुद्दीन शेख के रूप में की है.
अब्दुस सुभान तिनकुनिया शांतिपुर मस्जिद स्टेशन के इमाम बताए गए हैं जबकि जलालुद्दीन शेख तिलपारा नतुन मस्जिद के इमाम हैं.
मदरसों की बनेगी ‘मास्टर डायरेक्टरी’
असम के पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत का कहना है कि राज्य में चल रहे सभी मदरसों की एक ‘मास्टर डायरेक्टरी’ बनाई जाएगी.
असम में कई प्राइवेट मदरसों को चलाने वाले ऑल असम तंजीम मदारिस काउंसिल के सचिव मौलाना अब्दुल कादिर कासमी के साथ बैठक के बाद राज्य के पुलिस प्रमुख ने ट्वीट किया, “हम असम में चलाए जा रहे सभी मदरसों की एक मास्टर डायरेक्टरी बनाना चाहते हैं. यह एक कठिन काम होगा, क्योंकि उनमें से कई अपंजीकृत और अनधिकृत हैं. हमारा उद्देश्य भारत विरोधी, जिहादी तत्वों को अपने नापाक कट्टरपंथी उद्देश्यों के लिए मदरसों का उपयोग करने से रोकना है.”
हालांकि असम में चल रहे इन प्राइवेट मदरसों को लेकर राज्य सरकार के इन तमाम प्रयासों के बावजूद ख़ासकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बयान को कुछ लोग उनकी हिंदुत्व वाली राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं.
असम के मुसलमानों को लेकर हो रही राजनीति को समझने वाले गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील हाफिज़ रशीद अहमद चौधरी कहते हैं,”मुख्यमंत्री कभी कहते है कि मियां मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं चाहिए तो कभी ‘इंडिजिनस’ यानी स्वदेशी मुसलमानों को समुदाय से अलग करके देखते हैं, ऐसे में उनका कोई भी बयान राजनीति से परे नहीं है. अगर कोई व्यक्ति आतंकी गतिविधियों में शामिल पाया जाता है तो उसके ख़िलाफ़ क़ानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई करने की ज़रूरत है.”
“हम सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई के ख़िलाफ़ नहीं है. लेकिन मुसलमानों और यहां के मदरसों को लेकर एक ऐसी धारणा बनाने का प्रयास करना कि सभी मदरसों में जिहादी है, यह बात पूरी तरह ग़लत है. अगर ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग यहां के सभी मदरसों में जिहादी होने की बात कहेंगे तो इससे हिंदू और मुसलमान समुदाय के अच्छे संबंधों के बीच मौजूद भरोसा कमजोर होगा और संबंधों में दरार आएगी.”
‘इस्लामी कट्टरवाद का केंद्र’
असम में ऐसे आरोप पहले भी लगते रहे हैं कि जिन दूरदराज़ के इलाकों में नियमित स्कूल नहीं है वहां के कुछ मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई करवाई जाती है. अभी हाल ही में मुख्यमंत्री सरमा ने कहा था कि असम “इस्लामी कट्टरवाद का केंद्र” बन गया है.
मुख्यमंत्री ने गुवाहाटी में एक संवाददाता सम्मेलन कर चरमपंथी मॉड्यूल के भंडाफोड़ की घटना को एक गंभीर मुद्दा बताया था.
असम पुलिस ने केंद्रीय एजेंसियों के सहयोग से मार्च से लेकर अगस्त के बीच बांग्लादेश के प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के लिंक वाले पांच “जिहादी” मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने का दावा किया था.
बांग्लादेश के इस आतंकी संगठन एबीटी का लिंक भारतीय उपमहाद्वीप के अल क़ायदा से जुड़े होने के दावे भी किए गए हैं.
वरिष्ठ वकील हाफ़िज कहते हैं, “सरकार को प्राइवेट मदरसों को एक नियामक के तहत नियंत्रित करने की ज़रूरत है. हम भी चाहते हैं कि बाहर से आने वाले अज्ञात व्यक्ति पर नज़र रखी जाए. अगर कोई संदिग्ध बांग्लादेशी यहां आया है या फिर किसी ने ऐसे व्यक्ति को शरण दी गई है तो सरकार को उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए. क्योंकि हम नहीं चाहते कि किसी एक व्यक्ति की ग़लती के लिए यहां सालों से बसे मुसलमानों पर सवाल खड़े किए जाएं.”
सरकार ने इमामों और मदरसा शिक्षकों के पंजीकरण के लिए पोर्टल बनाने की जो बात कही है उसमें हम सभी सहयोग करना चाहते हैं. लेकिन राजनीतिक फ़ायदे के लिए सभी मुसलमानों को विलेन बना देना जायज़ नहीं है.”
असम सरकार ने हाल ही में प्रदेश में चल रहे क़रीब 700 सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया था.
सरकार का तर्क है कि मुस्लिम छात्रों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए ऐसा किया गया है. राज्य में फ़िलहाल एक हज़ार से अधिक प्राइवेट मदरसे चल रहे हैं जिनपर राज्य सरकार द्वारा नियमन के लिए विचार किया जा रहा है.
इस संबंध में सोमवार को राज्य के पुलिस महानिदेशक के साथ बैठक करने वाले ऑल असम तंजीम मदारिस काउंसिल के सचिव मौलाना अब्दुल कादिर कासमी ने कहा,”मदरसों में जिहादी होने की बात या फिर जिहादी तालीम देने की बात पूरी तरह झूठी है. राज्य में पुलिस ने कुछ लोगों को जिहादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया है जिनमें एक-दो इमाम भी शामिल हैं.”
“लिहाजा सरकार ने असम के बाहर से आने वाले इमाम की वेरिफिकेशन के लिए जो व्यवस्था करने की योजना बनाई है, हम उसमें पूरी तरह सहयोग करना चाहते हैं. इस संदर्भ में सरकार द्वारा किए जा रहे उपाए को हम बहुत सकारात्मकता से ले रहे हैं. बाहर से आने वाले किसी भी अज्ञात व्यक्ति का पुलिस वेरिफिकेशन होना ज़रूरी है. लेकिन किसी मज़हबी मदरसे में एक-दो लोगों की गिरफ़्तारी से पूरे समुदाय को शक़ के दायरे में लाना ठीक नहीं है.”
मदरसों को बदनाम करने की कोशिश
पुलिस महानिदेशक के साथ बैठक के बारे में जानकारी देते हुए मौलाना अब्दुल कादिर कासमी कहते हैं,”असम के मदरसों के बारे में बात करने के लिए डीजीपी ने मुझे बुलाया था. बैठक में हमारी बातचीत हुई है कि कोई ग़लत आदमी मदरसे में आ न सके. हम भी चाहते हैं कि किसी एक-दो ग़लत व्यक्ति के लिए पूरा समुदाय बदनाम न हो.”
“असम में मदरसा व्यवस्था सालों से चल रही है और पहले भी मदरसों पर इल्ज़ाम लगे है लेकिन जांच में ऐसा कुछ सामने नहीं आया है. हमने डीजीपी को तंजीम परिषद असम द्वारा संचालित सभी मदरसों की निर्देशिका सौंपी है. हमारे बोर्ड के अंदर एक हज़ार 25 मदरसे चलते हैं. इसके अलावा भी सौ से ज़्यादा मदरसे राज्य में और होंगे. हम सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि सभी मदरसों को जिहाद से जोड़कर बदनाम न किया जाए.”
प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी असम जातीय परिषद के प्रवक्ता जियाउर रहमान का कहना है कि असम में जिहादी गतिविधियों के नाम पर मुसलमानों को हमेशा कटघरे में खड़ा किया जाता है.
मदरसों को लेकर मुख्यमंत्री के बयान पर रहमान कहते हैं,”असम में जिहादी गतिविधियों में शामिल कई लोग पकड़े गए हैं और ऐसी घटनाएं देश के अन्य राज्यों में भी हुई है.”
“असम बांग्लादेश की सीमा से सटा एक राज्य है लिहाजा वहां से ऐसे जिहादी तत्व राज्य में प्रवेश कर सकते हैं और यह देखना सुरक्षा एजेंसियों का काम है. लेकिन इस बात का मतलब यह नहीं कि सारे मदरसों में जिहादी आ गए हैं. बल्कि यहां के मुसलमान चाहते हैं कि ऐसे जिहादी तत्वों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो. लेकिन बीजेपी के लोग ऐसी घटनाओं की आड़ में एक समुदाय को विलेन बनाने की राजनीति करते हैं.”
पुलिस का दावा
पुलिस के अनुसार अब तक भारत में अल-कायदा के गुट के करीब 30 कथित सदस्यों को गिरफ़्तार किया जा चुका है जिनमें एक बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल है. पुलिस का दावा है कि ये सभी लोग अल-कायदा के एक मॉड्यूल का हिस्सा हैं.
असम के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी का कहना है कि पूर्वी बंगाल से आए मुसलमानों को लेकर प्रदेश में एक अलग तरह की राजनीति की जा रही है. वो कहते हैं कि ऐसी एक धारणा बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि बंगाली मूल के ये मुसलमान आमतौर पर देशभक्त नहीं हैं.
गोस्वामी कहते हैं,”राज्य में अगर कहीं पर जिहादी तत्व सक्रिय हैं तो पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां कार्रवाई कर रही हैं. लेकिन मदरसों को लेकर जिस तरह का नैरेटिव बनाया जा रहा है वो हिंदू-मुसलमान के बीच मौजूद सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है.
दरअसल बीजेपी की इस राजनीति में पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को अलग-थलग करने का प्रयास किया जा रहा है. राज्य की मौजूदा बीजेपी सरकार ने अभी कुछ दिन पहले स्वदेशी मुसलमानों की संख्या का पता लगाने के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने की योजना बनाई थी.”
बैकुंठ नाथ गोस्वामी बताते हैं,”असल में यह पूर्वी बंगाल के मुसलमानों से गोरिया, मोरिया, देसी और जोलाह जैसे स्वदेशी मुसलमान समुदाय को अलग करने की राजनीति का हिस्सा था. 2011 की जनगणना के अनुसार असम की कुल आबादी लगभग तीन करोड़ 12 लाख में एक करोड़ से अधिक मुसलमान हैं. इनमें 42 लाख से अधिक स्वदेशी मुसलमान बताए जाते हैं. जबकि ज्यादातर प्राइवेट मदरसे तथा धार्मिक संस्थान पूर्वी बंगाल वाले मुसलमानों के बीच ही चल रहे हैं.”
“लिहाजा इस बात को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि जिहादी जैसे तत्व पूर्वी बंगाल के मुसलमानों के बीच ही सक्रिय हैं. पूर्वी बंगाल के मुसलमानों का ज्यादातर वोट मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ को जाता है और कुछ वोट कांग्रेस को मिलता है. लिहाजा बीजेपी देशी मुसलमानों को अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है.”
असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार गुप्ता मुसलमानों को लेकर राजनीति करने के तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं.
वे कहते हैं, “हमारी सरकार राज्य में जिहादी गतिविधियों में लिप्त लोगों के ख़िलाफ़ लगातार कार्रवाई कर रही है. ऐसे में किसी भी समुदाय का कोई भी व्यक्ति इन जिहादियों को शरण देगा या फिर उनकी मदद करेगा तो उसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी. लेकिन इस कार्रवाई को राजनीति से जोड़ना ठीक नहीं है. क्योंकि यह हिंदू-मुसलमान का विषय नहीं है बल्कि ये देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ विषय है. लिहाजा सरकार जिहादियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई जारी रखेगी.”