Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
भोपाल गैस कांड यानी भारत के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे के पीड़ितों के लिए इंसाफ़ की डगर लंबी भी है और मुश्किलों से भरी हुई भी.
वर्ष 1984 के दिसंबर माह की 2 और 3 तारीक़ की रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से लगभग 40 टन ‘मेथायिल अयिसोसायिनेट’ गैस का रिसाव होने लगा.
भोपाल शहर में अफरा तफरी मच गई थी, लेकिन सबसे ज़्यादा प्रभावित वो इलाक़े थे जो यूनियन कार्बाइड के कारख़ाने के आस पास थे.
इस दौरान लोग ताश के पत्तों की तरह अपने घरों और सड़कों पर गिरने लगे थे.
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से इस हादसे में मरने वालों की संख्या 5 हजार 295 के क़रीब थी.
लेकिन त्रासदी के 39 सालों के बाद भी मरने वालों और पीड़ितों की संख्या को लेकर विवाद ही चल रहा है. यही वजह है कि भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए आवाज़ उठाने वाले सभी संगठन फिर से आन्दोलन की राह पर हैं.
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है जहां इसकी सुनवाई 10 जनवरी को होनी है.
भोपाल गैस पीड़ित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव के अनुसार सरकार ने वर्ष 1997 में ही मृत्यु के दावों का पंजीकरण बंद कर दिया था.
वे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जो आंकड़े पेश किए हैं वो ग़लत हैं और सभी संगठन फिर से आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं.
कितने लोग मारे गए
गैस पीड़ितों के सभी संगठनों की महिलाओं ने भोपाल में निर्जल अनशन भी शुरू कर दिया था, लेकिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वास सारंग ने हस्तक्षेप किया और आश्वासन दिया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में सही आंकड़े पेश करेगी.
मंत्री के आश्वासन के बाद अनशन तो समाप्त हो गया लेकिन यादव कहते हैं, “सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि हादसे में 5 हजार 295 लोग ही मरे थे.
“आधिकारिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से बताते हैं कि 1997 के बाद से आपदा के कारण होने वाली बीमारियों से हज़ारों लोग मरते रहे हैं और मौत का वास्तविक आंकड़ा 25 हज़ार के करीब है.”
आंदोलन कर रहे संगठनों को आशंका है कि अगर केंद्र व राज्य सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में सुनी जाने वाली ‘सुधार याचिका’ यानी ‘क्यूरेटिव पिटीशन’ में मौतों और प्रभावित लोगों के आंकड़ों में संशोधन नहीं करती है तो ऐसे में पीड़ितों को एक बार फिर से यूनियन कार्बाइड और उसके मालिक ‘डाव केमिकल’ से उचित मुआवज़ा लेने से वंचित कर दिया जाएगा.
25 हजार का मुआवज़ा मिला
रशीदा बी भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष हैं. उनका संगठन लंबे अरसे से गैस पीड़ितों के बीच काम कर रहा है.
वे कहती हैं कि लंबे समय से गैस जनित लंबी बीमारियों से पीड़ित जूझ रहे हैं. इनमे वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने हादसे में अपने परिवार के अधिकांश सदस्यों को खो दिया है.
रशीदा बी कहती हैं कि कई पीड़ितों के बच्चे और पोते जन्मजात विकृतियों लेकर पैदा हुए हैं.
93% प्रभावित आबादी की तरह, उन्हें आपदा के कारण हुई बीमारियों के लिए केवल 25 हजार रुपये का मुआवज़ा ही मिला है.रशीदा बी
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष
‘अदालत को गुमराह करने की कोशिश’
गैस पीड़ितों के बीच काम कर रही संस्था, ‘भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन’ की रचना ढींगरा ने बीबीसी से बात करते हुए आरोप लगाया है कि दुनिया के सबसे बुरे औद्योगिक हादसे को लेकर देश की ‘सर्वोच्च अदालत को गुमराह’ करने की साज़िश हो रही है.
ढींगरा कहती हैं कि जो आंकड़े सर्वोच्च न्यायलय में पेश किये गए हैं वो सरकारी रिकार्ड से भी मेल नहीं खाते हैं.
उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार और आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिख कर गैस त्रासदी में मरने वालों और इससे पीड़ित होने वाले लोगों के आंकड़ों पर आपत्ति जताई थी.
शिवराज सिंह चौहान की वो चिठ्ठी
उन्होंने वो चिट्ठी भी बीबीसी के साथ साझा की जिसमें मुख्यमंत्री चौहान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था कि मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए.
उन्होंने लिखा था, “भोपाल गैस लीक डिजास्टर (प्रोसेस्सिंग ऑफ़ क्लेम्स) एक्ट 1985, पारित कर मुआवज़े से सम्बंधित सभी अधिकार सुरक्षित कर लिए थे. भारत सरकार के स्तर पर ‘मंत्री संमूह’ का गठन पी चिदंबरम, गृह मंत्री की अध्यक्षता में किया गया है.”
मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पत्र में ये बिंदु भी उठाया था कि ’10 हजार 47 लोग गैस पीड़ित ऐसे हैं जो वास्तव में मृतकों की श्रेणी में हैं परन्तु मंत्री समूह एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उक्त मृत व्यक्तियों के परिवार को अनुग्रह राशि वितरण के मापदंड में शामिल नहीं किया गया.’
मुख्यमंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री से कहा था, “मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि मृत्यु श्रेणी में दावों का जो वर्गीकरण किया गया है उसमें मृत व्यक्ति को स्थायी एवं आंशिक निशक्तता की श्रेणी में माना गया है.”
“इसी प्रकार कुछ अन्य मामलों में मृत्यु का कारण गैस प्रभाव को न मानते हुए उन्हें सामान्य वर्ग में माना गया है. ये वर्गीकरण न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है.”
मुआवज़े की मांग
उन्होंने आगे लिखा, “अतः 10 हज़ार 47 प्रकरणों को मृतक श्रेणी में मानकर उन्हें भी 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए ताकि गैस त्रासदी में मृत श्रेणी के कुल 15 हजार 342 प्रकरणों में आश्रितों को न्यायसंगत निर्णय मिल सके.”
“इसके अतिरिक्त 5 लाख 21 हज़ार 332 व्यक्ति जो वास्तव में आंशिक गैस पीड़ित की श्रेणी में थे, उन्हें भी अतिरिक्त मुआवज़ा प्रदान करने की कोई अनुशंसा नहीं की गई. इन प्रकरणों पर भी उचित विचार करते हुए मुआवजा दिलाया जाए ताकि गैस पीड़ितों को न्याय प्राप्त हो सके.”
गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की शहज़ादी बी का कहना है कि आंदोलन कर सिर्फ़ मुख्यमंत्री को याद दिलाना चाहते थे कि उन्होंने 12 साल पहले क्या कहा था.
अब तो केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार है. अब तो आसानी से मुख्यमंत्री इंसाफ़ दे सकते हैं.रशीदा बी
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष
रशीदा बी कहती हैं कि सरकार ने अस्पताल के रिकार्ड और शोध के आंकड़ों को भी सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश नहीं किया है.
उनका कहना था, “आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि गैस प्रभावित 95% लोग ऐसे हैं जिन्हें कैंसर हो गया था और 97% लोग जो घातक गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित थे, उन्हें अस्थायी रूप से घायल के रूप में वर्गीकृत किया गया था.”
अब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वास सारंग ने संगठनों को आश्वासन दिया है, मगर उनका कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार ने वास्तविक आंकड़े पेश नहीं किए तो गैस पीड़ित अपना आन्दोलन तेज़ करने को मजबूर हो जाएंगे.
गैस त्रासदी तो बड़ा हादसा था. अब दूसरी त्रासदी भी कम नहीं कि पीड़ितों को आज भी मुआवज़े और इंसाफ़ के लिए आंदोलन करना पड़ रहा हैरचना ढींगरा
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन