Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
बिहार में मकर संक्रांति के मौक़े पर सियासी दलों और नेताओं में ‘चूड़ा दही पार्टी’ देने की परंपरा रही है. इस तरह की पार्टी में कई बार भविष्य की राजनीति की तस्वीर भी दिखती है.
इससे ठीक पहले बिहार की तीनों बड़ी पार्टियों यानी बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी की ओर से विरोधी पार्टी के टूटने का दावा किया जा रहा है. इस मामले पर राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है.
बीजेपी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने दावा किया है कि जेडीयू के ज़्यादातर सांसदों को अपना भविष्य अंधेरे में दिख रहा है.
उनका कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रभाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीती थीं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने दम पर पार्टी को चुनाव में जीत नहीं दिला पा रहे हैं, इसलिए महागठबंधन में भगदड़ मचने वाली है.
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में बिहार की एकमात्र किशनगंज सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी, जबकि बाकि 39 सीटें एनडीए के खाते में गई थी. इनमें 17 बीजेपी, 16 पर जेडीयू और 6 पर एलजेपी की जीत हुई थी.
विपक्षी एकता के सूत्रधार बन सकते हैं नीतीश?
तारकिशोर प्रसाद ने बीबीसी से कहा, “2014 में एनडीए से अलग होने के बाद जेडीयू के केवल दो सांसद जीत पाए थे. अब तो नीतीश कुमार ने राहुल गांधी के नाम पर हां बोलकर ख़ुद का प्रोजेक्शन खत्म कर दिया है. उन्हें विपक्षी एकता का नेता बनने के नाम पर भी निराशा हाथ लगी है.”
इससे पहले रविवार को ही नीतीश कुमार का कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर एक बयान काफ़ी सुर्खियों में था.
नीतीश ने मीडिया के सवालों के जवाब में कहा था कि राहुल गांधी की उम्मीदवारी पर हमें कोई दिक्कत नहीं है, सब मिलकर बैठें और इसपर फ़ैसला करें.
बीजेपी को जेडीयू का जवाब
तारकिशोर प्रसाद के बयान के बाद अब जेडीयू ने बीजेपी के टूटने का दावा कर दिया है.
जेडीयू के प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा है कि महागठबंधन के सामने बीजेपी कहीं नहीं टिकने वाली है. अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने और अपनी पार्टी को टूटने से बचाने के लिए तारकिशोर प्रसाद ये बयान दे रहे हैं.
अभिषेक झा का कहना है, “बीजेपी के लोग सत्ता से बेदख़ल होने के बाद राजनीतिक और मानसिक दिवालियापन के शिकार हो चुके हैं.”
“साल 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 42 आम सभाएं की थीं और बीजेपी को महज़ 53 सीटें आई थीं.”
एनडीए से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनावों में पहली बार महागठबंधन बनाया गया था. इसमें लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
कांग्रेस ने 41 और भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इसमें 80 सीटों के साथ आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इसके बाद जदयू को 71 सीटें और भाजपा को 53 सीटें मिली थीं. इन चुनावों में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं.
तब जदयू, आरजेडी, कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, इंडियन नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था.
वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी.
पार्टी की टूट पर क्या कहते हैं जानकार?
बिहार के इन राजनीतिक दावों पर पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर का कहना है, “कोई कहीं नहीं जा रहा है और न ही कोई पार्टी टूट रही है. अपने लोगों को अपने साथ रखने के लिए ये सब हो रहा है.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार नचकेता नारायण इसके पीछे मकर संक्रांति की पार्टी को भी एक वजह मानते हैं.
उनके मुताबिक़ साल 2018 के चूड़ा-दही भोज में जेडीयू के नेता वशिष्ठ नारायण सिंह के घर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी शामिल हुए थे. उसके डेढ़ महीने बाद अशोक चौधरी जेडीयू में शामिल हो गए थे.
हालांकि नचिकेता नारायण का मानना है कि फ़िलहाल ऐसी किसी बड़ी टूट की संभावना नहीं है, क्योंकि एंटी डिफ़ेक्शन लॉ की वजह से बीजेपी या आरजेडी जैसी बड़ी पार्टी का टूटना आसान नहीं होगा और जेडीयू को टूटना होता तो अगस्त में महागठबंधन बनने के समय टूट हो जाती.
उनका कहना है, “ऐसी बयानबाज़ी हवा में की जाती है ताकि जो लोग किसी पार्टी के बहुत वफ़ादार न हों, वो ख़ुद सामने आकर कहें कि मैं उपलब्ध हूं.”
“बिहार में 14 जनवरी को किस नेता की पार्टी में कौन शामिल हुआ है, उससे इसका एक अंदाज़ा लगता है.”
आरजेडी का क्या कहना है?
तारकिशोर प्रसाद के दावे के बाद अब आरजेडी भी इस बयानबाज़ी में कूद गई है. आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि हर जगह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने वाली बीजेपी को झटका लगा है. वो हताश और निराश है, क्योंकि बिहार में उनका दांव उल्टा पड़ गया.
मृत्युंजय तिवारी ने दावा किया है, “बीजेपी के उपाध्यक्ष राजीव रंजन जी ने पार्टी छोड़ दी है. बिहार में बीजेपी विधायक दल ताश के पत्तों की तरह बिखरने वाली है. बीजेपी को इसका एहसास है. 2022 में वो सरकार नहीं बचा पाई और 2023 में पार्टी भी टूटेगी.”
दरअसल शुक्रवार को ही बिहार में बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन पार्टी से अलग हो चुके हैं. ख़बरों के मुताबिक़ प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के साथ उनके चिट्ठी विवाद को पार्टी ने अनुशासनहीनता माना है.
इधर एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी लगातार नीतीश कुमार पर निशाना साथ रही है. वहीं नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आरएसएस तक पर हमला बोल रहे हैं.
क्या चाहते हैं नीतीश?
डीएम दिवाकर का कहना है कि ये बात बहुत पहले से हो रही है कि नीतीश कुमार राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र की राजनीति करने जा रहे हैं. राहुल गांधी को लेकर भी नीतीश ने जो सधा हुआ बयान दिया है वो दिखाता है कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में जगह पाने की हड़बड़ी में नहीं हैं.
डीएम दिवाकर का मानना है, “हाल ही में बिहार में आईपीएस अफ़सरों के तबालते में तेजस्वी यादव की बात मानने की ख़बरें आई हैं, यानी नीतीश धीरे-धीरे कर सत्ता का नियंत्रण तेजस्वी यादव को दे रहे हैं.”
उनका कहना है, “नीतीश और तेजस्वी के एक साथ होने से बीजेपी के लिए लड़ना कठिन होता है इसलिए हो सकता है कि पार्टी टूटने की ये ख़बरें बीजेपी की तरफ से शुरू की गई हों.”
बिहार में एक-दूसरे की पार्टी टूटने के दावों के बीच जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है, “तारकिशोर प्रसाद उपमुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन उनको विधानसभा में विपक्षी दल का नेता तक नहीं बनाया गया. अब वो जेडीयू के टूटने के दावे कर बीजेपी में अपना स्कोर ठीक करना चाहते हैं.”
पांच जनवरी को नीतीश कुमार बिहार के दौरे पर निकल रहे हैं. जबकि 5 जनवरी से ही बिहार में बांका से कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत होगी.
वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तीन जनवरी से बिहार में लोकसभा कार्यकर्ता सम्मेलन की शुरुआत करेंगे.