आरक्षित वर्ग के कर्मी बोले- मरना ही है तो जन्मभूमि जम्मू में मरेंगे कश्मीर में नहीं
कश्मीर में कार्यरत जम्मू संभाग के डोगरा आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने गुरुवार को त्रिकुटा नगर स्थित भाजपा मुख्यालय का घेराव किया प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे सात महीनों से जम्मू में सड़क पर बैठे हैं। वे सरकार से तबादला नीति बनाने की मांग कर रहे हैं और जब तक ये मांग पूरी नहीं होगी उनका संघर्ष जारी रहेगा।
‘अगर मरना ही है तो वह अपनी जन्मभूमि जम्मू में मरना चाहेंगे। वे घाटी में जाकर अपने और अपने परिवार के भविष्य को अब और खतरे में नहीं डालेंगे। हम लोग कश्मीर घाटी में सुरक्षित नहीं है।’ ये बातें गुरुवार को जम्मू शहर के त्रिकुटा नगर स्थित भाजपा मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रही आरक्षित वर्ग की महिला कर्मचारी ने कही।
जम्मू संभाग के रहने वाले करीब तीन हजार कर्मचारी कश्मीर के अलग-अलग जिलों में कार्यरत हैं। मई में टारगेट किलिंग के बाद बिगड़े हालातों के बीच बड़ी संख्या में आरक्षित कर्मी जम्मू लौट आए थे और तब से शहर के अंबेडकर चौक पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उनके लिए व्यापक स्थानांतरण नीति बनाई जाए।
बुधवार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने साफ कहा था कि कश्मीर संभाग के कर्मचारी को जम्मू संभाग में स्थानांतरण करने की कोई नीति नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर में कार्यरत डोगरा आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों की मांगों के लिए सरकार की तरफ से कमेटी का गठन किया गया है। हालांकि, कमेटी की तरफ से इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।
उपराज्यपाल के बयान के बाद कर्मचारी बिफरे
उपराज्यपाल के बयान के बाद कर्मचारी रोष में है। इसी को लेकर गुरुवार को उन्होंने भाजपा मुख्यालय का घेराव किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे कश्मीर जाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके लिए तबादला नीति तो बनाई जानी चाहिए। देशभर में ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जहां सरकारी कर्मियों के लिए तबादला नीति नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर घाटी में उनके किसी कर्मी की जान चली जाती है तो उनके शव को कश्मीर से जम्मू में मत लाना।
एक प्रदर्शनकारी ने सवाल करते हुए कहा कि अगर रातों-रात संविधान में परिवर्तन कर अनुच्छेद 370 को हटाया जा सकता है। रातों-रात नोटबंदी के फैसले को लागू किया जा सकता है। तो फिर क्या वजह है कि सात महीनों के बाद भी ट्रांसफर पॉलिसी नहीं बनाई जा सकी है। एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा कि पंद्रह साल से कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं की गई है। उपराज्यपाल कहते हैं कि वेतन नहीं मिलेगा। लेकिन वे दिवंगत शिक्षिका रजनी बाला के वेतन को भी तो नहीं दे रहे हैं। सरकार किसी कर्मी की मृत्यु को पांच लाख ही तो कीमत लगाती है।
उन्होंने कहा कि डोगरा कर्मचारियों के लिए घाटी में कहीं कोई कैंप नहीं बने हैं। उनके लिए सुरक्षा के लिए कोई प्रबंध नहीं है। सरकार की नाकामी के चलते उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। अगर वे लोग कश्मीर से जम्मू आ ही नहीं सकते हैं तो दोनों एक केंद्र शासित प्रदेश क्यों हैं। दोनों को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि हम बच्चों को क्या बताएं कि हम कहां के रहने वाले हैं।