Reported By Dy. Editor Sachin Rai 8982355810

Interview: प्रतीक बब्बर बोले- मेरा सपना दौलत और शोहरत कमाना नहीं, मां स्मिता की विरासत के साथ न्याय करना है

एक्टर प्रतीक बब्बर, मुधर भंडारकर की फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ को लेकर चर्चा में हैं। इस फिल्म में वह माइग्रेंट वर्कर के रोल में हैं, जिसकी तैयारी के लिए मां स्मिता पाटिल की दो अहम फिल्में देखीं। प्रतीक ने कहा कि वह मां की तरह काम करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके काम मेंं मां स्मिता की झलक दिखे।हाइलाइट्स

  • प्रतीक बब्बर- मेरा मकसद दौलत और शोहरत कमाना नहीं
  • प्रतीक बब्बर ‘इंडिया लॉकडाउन’ को लेकर चर्चा में हैं
  • प्रतीक ने बताया मां की कौन सी फिल्में देखकर की तैयारी

कोविड महामारी और लॉकडाउन का दौर पूरी दुनिया के लिए बहुत मुश्किल रहा था। अब उसी दर्दनाक दौर को फिल्ममेकर मधुर भंडारकर ने पर्दे पर उतारा है, अपनी फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ में। इस फिल्म में एक्टर प्रतीक बब्बर एक माइग्रेंट वर्कर की भूमिका निभा रहे हैं, जो अपने घर वापस जाने के लिए संघर्ष करता है। प्रतीक बब्बर ने बताया कि इस फिल्म में अपने रोल के लिए उन्होंने मां स्मिता पाटिल की ‘आक्रोश’ और ‘चक्र’ जैसी फिल्में देखीं, ताकि किरदारों के स्ट्रगल को समझ सकें। प्रतीक बब्बर ने यह भी कहा कि वह मां स्मिता पाटिल की तरह काम करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके काम में स्मिता पाटिल की झलक हो। प्रतीक बब्बर के मुताबिक, उनका सपना है कि वह मां की विरासत के साथ न्याय कर पाएं। फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ के सिलसिले में नवभारत टाइम्स ने प्रतीक बब्बर से यह खास बातचीत की:

फिल्म में आप एक माइग्रेंट वर्कर का किरदार निभा रहे हैं, जो आपकी जिंदगी, आपकी दुनिया से एकदम अलग है। ऐसे में, उसे समझने, अपनाने के लिए क्या तैयारी करनी पड़ी? क्या चुनौतियां रहीं?
तैयारी तो काफी करनी पड़ी। हम माइग्रेंट वर्कर्स के घर गए। उनसे बातें की, उनके जीने, उठने-बैठने का तरीका, बच्चों से बात करने का तरीका सब ऑब्जर्व किया। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में वो कैसे जूझते हैं, वह जाना। इसके अलावा, मैंने काफी सारी फिल्में देखीं। इनमें अपनी मां (स्मिता पाटिल) की बहुत सारी पुरानी फिल्में थीं, जैसे ‘आक्रोश’, ‘चक्र’। इसके अलावा, ‘दो बीघा जमीन’, ‘अंकुर’ जैसी फिल्में देखीं, क्योंकि इन फिल्मों के करैक्टर का भी बहुत ही कठिन संघर्ष है और मेरे लिए उस संघर्ष को समझना बहुत जरूरी था। वैसे, हम जानते हैं कि माइग्रेंट वर्कर्स कितनी मुश्किल जिंदगी जीते हैं। इसलिए, मेरे लिए उनकी जिंदगी को सही तरीके से पर्दे पर उतारना ही सबसे बड़ा चैलेंज था। उस कम्युनिटी का प्रतिनिधित्व करना मेरे लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि उनकी कीमत हम जानते हैं। इन लोगों का योगदान हमारी जिंदगी में हर जगह होता है। चाहे सेट पर लाइटमैन हों, स्पॉट बॉय या ड्राइवर्स, हमारी जिंदगी में उनकी अहमियत बहुत है, तो हमारी कोशिश थी कि इन किरदारों को जितना संभव है, उतनी ईमानदारी से निभाएं और मुझे लगता है कि हम उन्हें न्याय दे पाए हैं।
Interview: मुरली शर्मा बोले- वो वक्त मेरे लिए बहुत भयानक था, मेरे पास एक दिन का भी काम नहीं था
लॉकडाउन का दौर सभी के लिए बहुत मुश्किल था। आपके लिए वो वक्त कितना मुश्किल रहा?
मुश्किल तो हम सबके लिए बहुत था। आशंका, चिंता, बेचैनी, ये ऐसे भाव हैं, जिससे पूरी दुनिया गुजरी। इसलिए, मुश्किल तो था, पर मैं अपनी बात करूं तो इन माइग्रेंट वर्कर्स के मुकाबले हमने कुछ नहीं झेला है। हम बहुत प्रिविलेज्ड हैं। हमारे सिर पर छत है, हर वक्त का खाना है, घर है, हम अपने सर्वाइवल के लिए संघर्ष नहीं कर रहे हैं। हमारी दिक्कतें बहुत फर्स्ट वर्ल्ड वाली थीं कि अरे यार, खाना क्या बनाएं, हाउस हेल्प नहीं आएंगे, ड्राइवर नहीं आएंगे, खुद खाना बनाना पड़ेगा, घर साफ करना पड़ेगा। मैंने भी ये सब किया, जो नॉर्मल बात थी, लेकिन मैंने कुछ चीजें लॉकडाउन में कीं, जिसकी वजह से मुझे बहुत खुशी हुई। जैसे राशन देना, मैंने एनजीओ को दाल-चावल की बोरियां भेजीं। मैंने अपने ड्राइवर की मां की जान बचाई, वह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। वह बहुत सीरियस थीं, उन्हें रेमेडिसिविर का इंजेक्शन चाहिए था जो मिल नहीं रहा था।


डॉक्टर ने उन्हें आठ घंटे का डेडलाइन दिया था कि अगर आठ घंटे में उन्हें इंजेक्शन नहीं मिला तो बचना मुश्किल है। मैंने किसी भी तरह इंजेक्शन जुटाया, 10 हजार के इंजेक्शन के लिए डेढ़-दो लाख भरे और अपने ड्राइवर जी को बोला कि आप अपनी मां को बचा लो और वह बच गईं। वह मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी। इस लॉकडाउन से मैंने यही सीखा कि यह बुरा दौर हमने साथ में झेला है और साथ में सर्वाइव किए हैं। बेशक, हमने बहुत से करीबी लोगों को खोया है लेकिन ह्यूमन रेस के तौर पर हमने सर्वाइव किया है। हमने साथ में अंधेरा देखा है और साथ में उजाला देखा और आखिर में इंसानियत की जीत हुई।


Interview: ‘मुखबिर’ फेम जैन खान दुर्रानी ने कहा- ‘कश्मीर फाइल्स’ की तुलना में क्यों फेल रही फिल्म ‘शिकारा’
अपने करीबी लोगों को खोने से लेकर एडिक्शन तक, आप खुद भी बहुत से उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजरे हैं। आपके लिए सबसे मुश्किल दौर कौन सा रहा और वो क्या चीज थी, जिसने आपको इस कठिन समय से उबरने का हौसला दिया, प्रेरणा बनी?
मेरा मानना है कि भगवान उन्हीं को इम्तिहान में डालता है, जिन्हें वो पसंद करता है। मैं मानता हूं कि भगवान मुझे बहुत पसंद करते हैं, इसलिए उन्होंने मेरे बहुत से इम्तिहान लिए हैं। अब भी ले रहे हैं और लेते रहेंगे, पर इसके पीछे मेरी कोई बहुत बड़ी जीत छिपी है और वह जीत बहुत जल्द ही मुझे मिलेगी। मैं इसमें बहुत भरोसा करता हूं। मेरे लिए शायद जरूरी था कि मैं ये सारे अनुभव करूं, क्योंकि इनकी वजह से ही आज मैं खड़ा हूं। इन हालातों के चलते मेरे अंदर सहनशक्ति बहुत ज्यादा बढ़ी है। बाकी, मेरा हौसला, मेरी प्रेरणा शक्ति हमेशा मेरी मां रही हैं। इसके अलावा, अपने काम के प्रति जो मेरा प्यार है, एक अच्छा ऐक्टर, अच्छा इंसान बनने की जो मेरी ख्वाहिश है, उसने मुझे उस बुरे दौर से उबारा। मेरा परिवार, मेरे जो लक्ष्य और सपने रहे हैं, उन्होंने मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत दी। मुझे बहुत से लोगों ने नकारा करार दिया, मुझे बहुत सी चीजें कही जिंदगी भर, मैं उन लोगों को गलत साबित करना चाहता हूं। यह भी मेरा ड्राइविंग फोर्स है कि उन लोगों को मैं कैसे गलत साबित करूं।


आप पिछले कुछ समय से बतौर ऐक्टर काफी निखरे हैं। अलग-अलग तरह के किरदार कर रहे हैं। खुद को ऐक्टर के तौर पर मांजने के लिए क्या किया?
हर एक्टर की यही चाह होती है कि अलग-अलग किरदार निभाए। रोल जितना आपके कंफर्ट जोन के बाहर हो, उतना चैलेंजिंग होता है और मैं चैलेंज ढूंढता हूं। उससे आप अपनी क्षमता जान पाते हैं। एक अच्छा एक्टर बनना मेरा जुनून है। आपको सच बताऊं, तो बहुत से एक्टर का लक्ष्य यह होता है कि वह सुपरस्टार बने। हिट पर हिट फिल्में करे, पैसे कमाए, शोहरत कमाए। अच्छी गाड़ी, अच्छे कपड़े में घूमे, लेकिन मेरा लक्ष्य अलग है। मेरा मकसद अपनी मां की लेगेसी (एक्टिंग विरासत) के साथ न्याय कर पाना है। उनके शानदार काम को आगे बढ़ाना है। उनका नाम रोशन करना है। इसलिए, मेरी कोशिश यही है कि अच्छे, रोचक, नए नए किरदार निभाऊं और अपनी मां की तरह काम करूं, ताकि मेरे काम में बस उनकी झलक दिख जाए। बाकी, फिल्म सुपरहिट हो जाए, बहुत पैसे कमाएं, फेमस हो जाए, तो किसे अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन मेरी ऐक्टिंग का उद्देश्य मेरी मां की विरासत को आगे बढ़ाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *