अफगानिस्तान में ‘तालिबान सरकार’के गठन में क्‍यो आ रही है बाधा, जबीउल्लाह मुजाहिद बोले- 4 सितंबर को होगा सरकार गठन, तालिबान के कई आतंकी ढेर

विजय काटकर

अफगानिस्‍तान में तालिबान के काबिज होने के बावजूद ऐसा क्‍या हो रहा है कि तालिबान के नेता सरकार का गठन नही कर पा रहे है । वही तालिबान की खिलाफत दिनो दिन दुनिया में बढती जा रही है जबकि चीन, पाकिस्‍तान और रूस तालिबानियो का खुलकर साथ दे रहे है जिससे भारत को भी नुकसान होनेे की संभावना बढ रही है यदि चीन तालिबानियो का साथ देता है और उन्‍हे आर्थिक सहायता के साथ साथ खुलकर मान्‍यता देता है तो अमेरीका को भी इस पर सोचने के लिए विवश होना पडेगा क्‍योकि चीन भी दुनिया में अपनी धाक जमाना चाहता है इसलिए वह अमरीका के हर कार्य मे दखल अंदाजी देता नजर आ रहा है । मध्‍य दक्षिण एशिया में चीन का विस्‍तार वाद बढता जा रहा है जबकि भारत की ऐसी कोइ गतिविधि नजर नही आ रही है वह “वाच एंंड वेट” की स्थिति में चल रहा है जबकि भारत ने तालिबान को दो टुक जवाब जरूर दिया हो लेकिन तालिबान की गतिविधियांं पाकिस्‍तान और चीन के साथ जग जाहिर हो रही है । भारत को कश्‍मीर के मुुुददे पर गंभीरता पूर्वक निर्णय लेना चाहिए । भारत मे भी तालिबानियो के पक्ष में कुछ नेता लोग संगठन आवाज उठा रहे है जो एक संकेत है कि भारत में भी अगर हुआ तो सीमा के साथ साथ गृह क्षेत्र (देश के अंदर) में भी विद्राेेह की आग सुलग सकती है समय रहते भारत को पेनी नजर रखते हुए इस स्थिति को समझना होगा ?

तालिबान द्वारा नई अफगान सरकार गठन की तारीख को एक दिन और टाल दिया गया है. चरमपंथी संगठन के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद के मुताबिक, नई अफगान सरकार के गठन की घोषणा शुक्रवार को की जानी थी. लेकिन अब इसमें एक दिन की देरी हो गई है. मुजाहिद ने कहा कि नई सरकार के गठन का ऐलान अब शनिवार को की जाएगी. सूत्रों ने कहा कि कतर स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के अध्यक्ष मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के तालिबान सरकार के प्रमुख होने की संभावना है.

ईरान में सुप्रीम लीडर देश का सर्वोच्च राजनीतिक और धार्मिक अधिकार वाला पद होता है. उसकी रैंक राष्ट्रपति से भी ऊपर होती है. सुप्रीम लीडर देश की सेना, सरकार और न्यायपालिका के प्रमुखों की नियुक्ति करता है. सुप्रीम लीडर का देश के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों में अंतिम अधिकार होता है. इनामुल्ला समांगानी ने कहा, मुल्ला अखुंदजादा सरकार के नेता होंगे और इस पर कोई भी सवाल नहीं है. समांगनी ने इशारा किया कि राष्ट्रपति उनकी देखरेख में काम करेगा. मुल्ला अखुंदजादा तालिबान का शीर्ष धार्मिक नेता है और 15 साल से बलूचिस्तान प्रांत के कछलाक इलाके में एक मस्जिद में सेवा कर रहा है.

इनामुल्ला समांगानी ने कहा, नए सरकारी ढांचे के तहत गवर्नर प्रांतों का शासन संभालेंगे. वहीं, जिला गवर्नर अपने-अपने जिलों के प्रभारी होंगे. तालिबान पहले ही प्रांतों और जिलों के लिए गवर्नर, पुलिस प्रमुख और पुलिस कमांडर नियुक्त कर चुका है. उन्होंने कहा कि नई शासन प्रणाली का नाम, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. इसी बीच, तालिबान ने कहा है कि वेस्टर्न यूनियन अफगानिस्तान में अपना कामकाज फिर से शुरू करेगी. इससे नकदी की कमी का सामना कर रहे देश में विदेशी धन के प्रवाह का एक दुर्लभ माध्यम खुल जाएगा. समूह के सांस्कृतिक आयोग के प्रवक्ता अहमदुल्ला मुत्ताकी ने शुक्रवार को इस फैसले की घोषणा की.

अफगानिस्तान पर कब्जा जमाये हुए तालिबान को दो हफ्ते से अधिक का वक्त हो चुका है. ऐसे में कट्टरपंथी इस्लामी ग्रुप द्वारा आज सरकार के गठन का ऐलान करने की उम्मीद थी. माना जा रहा है कि काबुल में ईरानी नेतृत्व की तरह वाली शासन व्यवस्था होने वाली है. इसमें तालिबान का शीर्ष धार्मिक नेता हेबतुल्लाह अखुंदजादा अफगानिस्तान का सर्वोच्च लीडर या कहें सुप्रीम लीडर होगा. तालिबान के सूचना और संस्कृति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी मुफ्ती इनामुल्ला समांगानी ने कहा, नई सरकार को लेकर विचार-विमर्श लगभग तय हो चुका है और कैबिनेट को लेकर भी जरूरी चर्चा हो चुकी है.

तालिबान मुजाहिदीन ने पंजशीर में विद्रोहियों के दो फ्रंट कमांडरों को मार गिराया

 अमेरिका के पूर्व अधिकारी ने कहा कि हम नहीं जानते कि तालिबान का भविष्य क्या है, लेकिन मैं अपने निजी अनुभव से आपको बता सकता हूं कि यह पहले से ही एक क्रूर समूह रहा है और वे बदले हैं या नहीं, यह देखना अभी बाकी है.

तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर काफ़ी तेज़ी से अपनी पकड़ बनाई है. अब वे काबुल में अपनी नई सरकार को लेकर योजना बना रहे हैं. फिर भी उनकी राह का एक बड़ा रोड़ा अभी बचा हुआ है.

राजधानी काबुल के उत्तर-पूर्व की पंजशीर घाटी का यह रोड़ा राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) के लड़ाके हैं. चारों ओर से तालिबान से घिरे होने के बावजूद, ये लोग हार मानने से इंकार कर रहे हैं. तालिबान के वरिष्ठ नेता आमिर ख़ान मोतक़ी ने पंजशीर घाटी में रहने वाले लड़ाकों से अपने हथियार डालने का आह्वान किया है, लेकिन अब तक इस अपील पर अमल के कोई संकेत नहीं दिख रहे.

विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से अब तक पंजशीर घाटी की सीमाओं पर हुई झड़पों में तालिबान के दर्जनों लड़ाके मारे जा चुके हैं और अब भी लड़ाई जारी है.

पंजशीर में वास्तव में हो क्या रहा है और क्या इससे तालिबान को चिंतित होना चाहिए?

क्‍या है राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ)

पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान की यह घाटी राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) के लड़ाकों का घर बन गई है. कई जातीय समुदायों से जुड़े ये लोग, मिलिशिया और अफ़ग़ान सुरक्षा बल के पूर्व सदस्य हैं. इनकी संख्या हज़ारों में है. इस हफ़्ते जारी हुई तस्वीरों से इनके सुसंगठित, आधुनिक हथियारों से लैस और बेहतर प्रशिक्षित होने के संकेत मिलते हैं.

अभी हाल में देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी एनआरएफ़ में शामिल हुए हैं. हालांकि इसके नेता ‘पंजशीर के शेर’ कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद हैं.

अहमद शाह ने न केवल 1980 के दशके में सोवियत संघ के आक्रमण को रोका था, बल्कि 1990 के दशक में तालिबान को भी पंजशीर से दूर रखा था. 11 सितंबर, 2001 को हुई घटना के ठीक दो दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई थी.

उनके 32 साल के बेटे और लंदन के किंग्स कॉलेज और सैंडहर्स्ट मिलिट्री एकेडमी के स्नातक अहमद मसूद भी अब ऐसा ही करिश्मा करने और तालिबान को बाहर रखने के लिए दृढ़ हैं. ऐसा नहीं कि वे केवल अपने देश में ही मदद पाने की कोशिश कर रहे हैं, वे विदेशों से भी समर्थन पाने की जुगत लगा रहे हैं. इस साल के शुरू में उन्होंने फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की थी.

सीएनएन के साथ एक इंटरव्यू में मसूद ने तालिबान के बारे में कहा कि वे नहीं बदले हैं. उन्होंने कहा कि वे और उनके लड़ाके मानते हैं कि जाति और जेंडर की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के लोकतंत्र, अधिकार और आज़ादी को बचाने की ज़रूरत है.

पंजशीर में फिर नॉर्दन अलायंस के साथ मुठभेड़, 40 लड़ाकों के शव छोड़ भागे तालिबानी

तालिबान और नॉर्दर्न अलायंस के बीच काफी दिनों से लड़ाई हो रही है. हाल के दिनों में गोलीबारी तेज हो गई है. बीते दिन विद्रोहियों के ट्विटर अकाउंट पर दी गई जानकारी में कहा गया है कि पंजशीर प्रांत के चिकरीनोव जिले में विद्रोहियों के घात लगाकर की गई कार्रवाई में तालिबान के 13 सदस्‍य मारे गए हैं. तालिबान का एक टैंक भी तबाह हो गया है।

 इस लड़ाई में 40 से ज्यादा तालिबानी मारे गए हैं, जबकि 19 तालिबानियों को पंजशीर की सेना ने गिरफ्तार कर लिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबानी लोग अपने साथियों की लाशें छोड़कर भाग गए हैं.
इस बीच नॉर्दर्न अलायंस का कहना है कि जहां पर गोलीबारी हुई वहां करीब 40 से अधिक तालिबानी लड़ाकों के शव पड़े हैं, बाद में हमने उन्हें वापस लौटाने की कोशिश. अब तक ये शव लिए नहीं गए.

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