Bhojpuri Actress Sushma Adhikari Photos: भोजपुरी इंडस्ट्री की ब्यूटी क्वीन एक्ट्रेस सुषमा अधिकारी की बिकिनी लुक्स की…
Category: उत्तराखंड
राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री आनंद कुमार श्याम
राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री आनंद कुमार श्याम को. प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया.…
शशि थरूर बोले- देश के लोकतंत्र के लिए कांग्रेस जरूरी
शशि थरूर ने लखनऊ पहुंचकर कांग्रेस नेताओं से अध्यक्ष पद के लिए समर्थन मांगा और प्रेस…
गोली चली… BJP नेता की पत्नी की हत्या हो गई,
काशीपुर में 50 हजार रुपये के इनामी बदमाश को दबोचने के लिए आई यूपी की ठाकुरद्वारा…
20 लाख में रचा गया था हत्या का षड्यंत्र, कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा के आवास की सुरक्षा बढ़ाई
कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा की हत्या का षड्यंत्र रचने के मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी…
एवलांच में फंसे नौ प्रशिक्षकों के शव बरामद, 32 की तलाश जारी, रेस्क्यू ऑपरेशन रोका
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान(निम) के 34 प्रशिक्षु और सात पर्वतारोहण प्रशिक्षक डोकरानी बामक ग्लेश्यिर में द्रोपदी डांडा-2 पहाड़ी…
चट्टान पर चढ़ गए उत्तराखंड के पूर्व सीएम दौड़ाया हाथी ने
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह को बुधवार शाम एक बड़ी चट्टान पर चढ़कर हाथी से…
नेपाल के इलाकों में कुछ ही घंटों में हुई 132.2 मिमी बारिश
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से लगे नेपाल के इलाके में शनिवार तड़के बादल हटने से धारचूला…
उत्तराखंड में फटा बादल
उत्तराखंड में रविवार को भारी बारिश हुई यहां पिथौरागढ़ जिले में बादल फटा है यह घटना…
खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा गोटुल लायब्रेरी।
सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता है।
हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है, ये कुदरती चीजे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता एवं बहिष्कार को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उन्हें उचित या ‘न्यायसंगत’ भी मानते हैं। शायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। ऐसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहाँ नहीं होते जहाँ वे आज हैं।
गौर से देखने पर हम यह पाते हैं कि जो लोग समाज के सबसे निम्न स्तर के हैं, वही सबसे ज्यादा परिश्रम करते हैं। एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है, “यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज़ होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते!” संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना, रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कमरतोड़ काम गरीब लोग ही करते हैं। फिर भी वे अपना जीवन शायद ही सुधार पाते हैं। ऐसा कितनी बार होता है कि कोई गरीब मज़दूर एक छोटा-मोटा ठेकेदार भी बन पाया हो? ऐसा तो केवल फ़िल्मों में ही होता है कि एक सड़क पर पलने वाला बच्चा उद्योगपति बन सकता है। परंतु फ़िल्मों में भी अधिकतर यही दिखाया जाता है कि ऐसे नाटकीय उत्थान के लिए गैर कानूनी या अनैतिक तरीका जरूरी है।
आदिवासी भाषाएँ, संस्कृति, जीवन मूल्य, सोच, दर्शन और परंपराएँ इस देश की मौलिक विरासत है। इनकी विलुप्ति सम्पूर्ण आदिवासी जीवन धारा की मृत्यृ होगी। इसे बचाने के लिए अपनी सोच और चिंतन तथा जीवन और समाज में इसे जगह देना होगा। विशाल भारतीय समाज में विविधता और बहुलता बनी रहे इसके लिए तो खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा। बाहरी वर्चस्ववाद का मुकाबला अपनी भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं, सोच-विचार, विश्वास, मूल्य, कल्पना-परिकल्पना, आदर्श, व्यवहार को बचा कर ही किया जा सकता है।