पिता सरकारी नौकरी करते-करते चल बसे। मां जब तक जिंदा थी, तब तक उन्हें पेंशन मिलती रही। लेकिन उनके जाते ही पेंशन बंद हो गई, क्योंकि माता-पिता की एक मात्र उत्तराधिकारी उनकी अविवाहित बेटी थी। मध्यप्रदेश में आज ऐसी एक हजार से ज्यादा बेटियां सरकारी पेंशन के लिए कई दफे दरख्वास्त लगा चुकी हैं, लेकिन मामला सरकारी सिस्टम में अटका हुआ है। बड़ी बात ये है कि देश के 14 बड़े राज्य अपने यहां की अविवाहित बेटियों, विधवाओं को पारिवारिक पेंशन दे रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश की लाड़लियों को अब तक ये अधिकार नहीं मिला है। मामले में सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार का कहना है कि अविवाहित बेटियों को पेंशन नहीं दिए जाने के मामलों का परीक्षण कराएंगे।
सिंधिया को आवेदन दिया, फाइल वित्त विभाग में बंद
पिता की 10 साल पहले मृत्यु हुई। वे पुलिस में थे। मां को 3 हजार रु. पेंशन मिलती रही, जब जनवरी में उनकी भी मृत्यु हो गई तो गुजारा रुक गया। मैंने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को आवेदन दिया। उनके यहां से फाइल ट्रेजरी होते हुए वित्त विभाग में आई तो विभाग ने लिखकर दे दिया कि 25 साल से ज्यादा उम्र की बेटियों को पारिवारिक पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। फिलहाल फाइल बंद कर दी गई है।
मां की पेंशन से कट रही थी जिंदगी, लेकिन अब मुश्किल
पिता राममोहन का काफी पहले निधन हो चुका है। वे आर्थिक सांख्यिकी विभाग में थे। मां प्रेमाबाई की पिछले साल मृत्यु हो गई, जिन्हें पिता की पारिवारिक 4 से 5 हजार रु. पेंशन मिलती थी। अब तक पेंशन के जरिये ही जीवन-भरण हो रहा था, लेकिन अब पेंशन बंद है और उसे दोबारा हासिल करने के लिए परेशान हूं। वित्त विभाग ने कह दिया है कि ऐसे मामलों में पारिवारिक पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है।