“गणतंत्र दिवस पर भूले – बिसरे अमर शहीद की गाथा”महान शूरवीर मनीराम अहिरवार जो कि स्वतंत्रता आंदोलन क्रांतिकारी रहे : सम्मान से वंचित

भोपाल |

26 जनवरी पर विशेष – लेख :मूलचन्द मेधोनिया (शहीद सुपौत्र)

भारत की भूमि पर जब भी विदेशी आक्रमण किसी ने भी किये गये हो हमारे देश के योद्धवीरों ने संघर्ष करने में अपनी जान न्यौछावर करने में तत्पर रहे। जिनकी बदौलत हम आजाद भारत में जी रहे हैं। लाखों वीर – वीरांगनाओं ने मात्रृभूमी की रक्षा में हर एक बूंद रक्त बहाकर हमें बहार प्रदान की है। उनकी कुर्बानी को भूल – बिसारना अपनी मात्रृभूमी के साथ बेईमानी है।
मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर तहसील गाडरवारा के चीचली नामक गोंडवाना राजा शंकर प्रताप सिंह जू देव की नगरी में सन 1915 में 21 नबम्वर को रविदास वंशीय अहिरवार समाज के श्री हीरालाल अहिरवार जी के पुत्र रत्न का जन्म हुआ था। जो एक होनहार बालक थे। जो युवा अवस्था में अखाड़े, कुश्ती और निशाने बाज में महारत हासिल कर ली थी। ये सपरिवार गोंडवाना राजमहल की सेवा देते चले आ रहे थे। उन दिनों चीचली के राजा युवा अवस्था में अध्ययन करने बाहर गये थे। देश में स्वतंत्रता आंदोलन पूरे देश में चरम सीमा पर फैल चुका था।
अंग्रेजी सेना ने जबलपुर, मंडला, चौगान किला के साथ ही चीचली राजमहल को अपने अस्तित्व में लेने के लिए सैनिकों की एक टीम सन 19 42 में चीचली भेज कर मौका का फायदा उठाना चाहा क्योंकि राजमहल सूना था। केवल सुरक्षा की दृष्टि से मनीराम अहिरवार जी देखरेख कर रहे थे। अंग्रेजी सेना ने महल पर चढाई कर दी। मनीराम अहिरवार ने अंग्रेजी फौज को देखते हुए कमान संभालते हुए। अंग्रेजी सेना को महल की ओर आने से रोकना चाहा लेकिन अंग्रेजी सेना ने बंदूक तानकर गोली चलाना शुरू कर दिया। ऐसी परिस्थिति में वीर मनीराम जी ने अपनी वीरता और चतुरता से उन पर अचूक निशाना बनाकर पत्थर मारे। युद्ध की स्थिति भयानक हो गई। गोंड महल सा केवल मनीराम थे। जो अंगेजों से भिड़ गये। मनीराम अहिरवार को लक्ष्य बनाकर अंग्रेजी सैनिकों ने धुआंधार गोली चलाई। लेकिन इनकी कलाबाजियां में एक गोली भी न छू सकी। युद्ध में मनीराम के सहयोग में वीर मंशाराम जसाटी जी सामने आये और उन पर गोली लग गई। उक्त युद्ध का नजारा देख रही गौरादेवी कतिया जी जो कि अपनी लडकी को खोज रही थी। वह भी मनीराम अहिरवार पर चलीगोली से शहीद हुई।
गांव के वीर मंशाराम जसाटी जो कि एक बहादुर और ताम्रकार समाज के युवा नेता थे। उनकी कुर्बानी पर मनीराम आग बबूला होकर अपना कुरथा फाड़कर सीना तान कर अंग्रेजी सेना को गोली चलाने ललकारा। लेकिन अनेक गोली चलने के बाद भी वीर मनीराम जी अहिरवार को कोई गोली नहीं लगीं। उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों को घायल कर दिया। अंततोगत्वा विदेशी सैनिकों को जान बचाकर भागना पड़ा।


अंग्रेजी सेना से विजयी होने पर राजमहल पर झंडा फहराया गया।
चीचली में दूसरे दिन 24 अगस्त 19 42 को अमर शहीद हुए वीर मंशाराम जसाटी जी एवं वीरांगना गौरादेवी जी की श्रद्धांजलि कार्यक्रम और मनीराम अहिरवार जी की बहादुरी पर सम्मान कार्यक्रम आयोजित था। उसी समय अंग्रेजी सेना के अफसर सहित टीम मनीराम अहिरवार को गिरफ्तार करने आई। सभा में नर्मदा प्रसाद ताम्रकार शहीद होने वालों को श्रद्धांजलि देने के बाद मनीराम अहिरवार जी का आंखों देखा वीरता का गुणगान कर रहे थे कि अंग्रेजी सेना ने सभा के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। मनीराम अहिरवार महल में ही थे। जिन्हें तत्काल गिरफ्तार नहीं किया जा सका। उन्हें छल कपट और कूटनीति के माध्यम से खबर फैलाई की चीचली राजा आ गये हैं। वह मनीराम अहिरवार को भूमि दान देकर और महल के द्रारा पुरस्कार दे रहे हैं। तरह तरह की छल नीति के तहत वीर मनीराम अहिरवार को गिरफ्तार कर उनकी गुप्त जेलखाना ले गये। उनसे राजमहल की गुप्त जानकारी और संपत्ति इत्यादि जानने के लिए मारपीट की गई। वीर मनीराम जी ने कुछ भी जानकारी नहीं दी उन्होंने साफ कहा कि मैं चीचली राजमहल का नमक खाता हूँ। नमक हरामी नही करुंगा। चाहे मेरे प्राणों भले ही निकल जाये।
अंग्रेजी सेना को किसी प्रकार की बात न बताने उपरांत अफसरों ने कहा कि ये एक बलवान युवा है। इसको लालच देकर कहो कि ये इसकी समाज के युवकों को अंग्रेजी सेना में भर्ती करे। मनीराम जी को सरदार बनाया जायेगा। जेल में उनसे बार – बार दबाव डाला जाने लगा। हार मानकर अंग्रेजी सेना उन पर कोढे मारते, गर्म पानी डालते। तरह तरह से यातनाएं दी। लेकिन वीर मनीराम जी ने अनुसूचित जाति के युवाओं को गुलामी और बेगारी करने हेतु एक भी लडकों को न स्वयं कोई गुलामी करने को तैयार हुये। उन्होंने उन्हें उनकी जेल में बंद कर दफना दिया। मरते – मरते इंकलाब जिंदाबाद बोला और देश के खातिर तथा स्वाभिमानी होने के कारण शहादत देकर देश व समाज को गौरवान्वित कर गयें।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की आजादी में ऐसे महान सैनानी को भूला गया, उपेक्षित किया। देश स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी 1950 को दलित-मुक्तिदाता महान विद्वान बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर जी के द्रारा भारतीय संविधान जो कि उन्होंने 2 साल 11 माह 18 दिन में तैयार कर देश को समर्पित किया। भारत में संविधान के अनुसार पहली लोकतांत्रिक प्रणाली लागू हुई। यह संभव पूज्यनीय बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर जी के महान कार्य पर हुआ। चालाक और पढें लिखें लोगों ने अपने ही जातीय बिरादरी के लोगों के नाम देश की आजादी में दर्ज कराने का काम किया। अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजातियों के लोगों में पढें लिखें और लोगों का अभाव था। अतः देश की आजादी में कुर्बानी देने वाले दलित शोषितों के अमर शहीद वीर मनीराम जी जैसे अनेक महापुरुषों के नाम देश की स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में इतिहासिक पन्ने में नदारत है।
नरसिंहपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के चीचली में यदि वीर शहीद मनीराम अंग्रेजी सेना से युद्ध न लडते तो वहां पर न कोई शहीद होते और न ही चीचली “शहीदों की नगरी” के नाम से जानी जाती। हमारे देश में पूर्व में कांग्रेस की सरकार रही अन्य सरकार भी बनीं। किंतु किसी ने भी मनीराम अहिरवार के योगदान पर शहीद का दर्जा दिलाने के लिए आवाज नहीं उठाई। क्या अनुसूचित जाति के होने के कारण वंचित किया गया है। नरसिंहपुर जिले के इतिहास में रविदास वंशीय अहिरवार समाज के महान पराक्रमी वीर मनीराम जी अहिरवार को शहीद दर्जा दिलाने की आवाज़ चहुंओर से उठ रही है। उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह मध्यप्रदेश के एकमात्र अनुसूचित जाति के वीर शहीद हुए और स्वतंत्रता अभियान में उनका अतुलनीय योगदान है। वह अहिरवार समाज के महान गौरव है। उन्हें सम्मान देना देश एवं प्रदेश की समाज को गौरवान्वित किया जा सकता है। गणतंत्र दिवस वर्षगांठ पर महान शूरवीर मनीराम अहिरवार जी को विनम्र श्रध्दांजलि अर्पित है ।

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