आदिवासी बच्चों को नाइट स्कूल पढ़ाई के साथ वीकेंड पर होती है फुटबॉल की क्लास

कोरोना के कारण दुनियाभर में सबसे ज्यादा शिक्षा प्रभावित हुई है। स्कूल, कॉलेज बंद हुए तो पढ़ाई ऑनलाइन हो गई। लेकिन पिछड़े और जरूरतमंद बच्चे इन सुविधाओं से भी महरूम रहे। पर झारखंड के तीन जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना के बावजूद पढ़ाई भी जारी रही और सीखना भी। रांची, लोहरदगा और गुमला जिले में 80 नाइट स्कूल चल रहे हैं। 2014 में पूर्व आईपीएस डॉ. अरुण उरांव ने इसकी नींव रखी। खेल-खेल में सीखने की इस मुहिम से अब चार हजार बच्चे जुड़ गए हैं।

आठ साल पहले डॉ. अरुण उरांव जब झारखंड के गुमला में अपने गांव सिसई आए तो उन्होंने देखा यहां के बच्चों की अंग्रेजी, विज्ञान, गणित की पढ़ाई ढंग से नहीं हो रही थी। डॉ. अरुण की नौकरी 10 साल बची थी, उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और घर के आसपास के 6-7 बच्चों को पढ़ाने लगे। धीरे-धीरे और बच्चे आने लगे, तो नाइट स्कूल शुरू करने का विचार किया। 2014 में ‘बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला’ की नींव रखी। अब 80 नाइट स्कूल में 300 शिक्षक करीब चार हजार बच्चों की जिंदगी संवार रहे हैं। गांव के सामुदायिक भवन या घर पर इन बच्चों को शाम 5 से 7 बजे तक पढ़ाया जाता है। पढ़ाई बोरिंग न हो, इसलिए शिक्षकों की भी बकायदा ट्रेनिंग होती है। स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ‘योग’ और शारीरिक कसरत को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। स्कूल के बच्चों में हो रहे सुधार का आकलन समय-समय पर आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा किया जाता है, जहां उनके बौद्धिक स्तर के साथ सांस्कृतिक ज्ञान को भी परख कर पुरस्कृत किया जाता है। नाइट स्कूल के शिक्षक अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने लिए रोजगार हासिल करें इसके लिए उनकी प्रतियोगिता की तैयारी अलग से की जा रही है। युवाओं की ज्यादा रुचि फौज, केंद्रीय सुरक्षा बल एवं पुलिस की भर्ती में जाने को देखते हुए गांव के ही सेवा निवृत्त फौजी एवं पुलिस अधिकारी उनकी तैयारी करा रहे हैं।

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