भोपाल/
अपने ही प्रदेश में संस्कृति विभाग की उपेक्षा का शिकार होने को मजबूर है सरोद वादक पद्मविभूषण उस्ताद अमजद अली खां
शिवराज से नाराज अमजद अली खान, अब MP में नहीं बजाएंगे सरोद
कला एवं संस्कृति से जुड़ी गतिविधियों को लेकर पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखने वाले मध्यप्रदेश पूरे देशभर में एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है। इस बार चर्चा में है प्रदेश के वरिष्ठ सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां। मध्यप्रदेश की शास्त्रीय नगरी ग्वालियर में रहने वाले पद्मविभूषण उस्ताद अमजद अली खां ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त की है। उस्ताद की यह नाराजगी हर बार की तरह इस बार फिर ग्वालियर में होने वाले तानसेन समारोह को लेकर है। मप्र संस्कृति परिषद के अधीन कार्यरत् उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी की ओर से मूर्धन्य कलाकार तानसेन की स्मृति में हर वर्ष इस समारोह का आयोजन ग्वालियर में किया जाता है। इस वर्ष भी इस समारोह का आयोजन 26 नवंबर से किया जाना प्रस्तावित है। लेकिन एक बार फिर समारोह में विभाग की ओर से उस्ताद की अनदेखी होने पर अमजद अली खां ने खुलकर नाराजगी व्यक्त की है। यह नाराजगी तब और भी बढ़ गई जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद भी अमजद अली खां के पत्रों का उत्तर देने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
लगातार कर रहे है उस्ताद की अनदेखी
हम आपको बता दें कि यह पहला अवसर नहीं है जब संस्कृति विभाग के आला अधिकारियों द्वारा उस्ताद की अनदेखी की गई हो। इससे पहले भी पिछले कई वर्षों में आयोजित हुए तानसेन समारोह में उस्ताद अमजद अली खां एवं उनके बेटे की अनदेखी की जा चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि प्रदेश का संस्कृति विभाग इस तरह से उस्ताद अमजद अली खां को बार-बार बेईज्जत कर रहा है और संस्कृति विभाग के आला अधिकारियों के कान में जूं भी नहीं रेंग रही है।
खुद खफा हो गए है उस्ताद
संस्कृति विभाग द्वारा अपनाए जा रहे दोहरे पन से दुखी उस्ताद आज बुरी तरह टूट गए है और उन्होंने यहां तक भी कह दिया कि उनका दुर्भाग्य है कि उनका जन्म मध्यप्रदेश की धरती पर हुआ है। उस्ताद का यह बयान न सिर्फ मध्यप्रदेश से जुड़े कलाकारों के लिए बल्कि संपूर्ण कला जगत और मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के संस्कृति विभाग के आलाअधिकारियों के लिए शर्मनाक है कि जिस कलाकार ने सरोद की मधुर आवाज को मध्यप्रदेश से बाहर निकाल कर पूरे विश्व भर में पहुंचाने का कार्य किया है वो अपने ही प्रदेश में अपनी पहचान कायम रखने के लिए जूझने पर मजबूर है।
आपसी खुन्नस निकाल रहे उस्ताद से
सूत्रों की मानें तो उस्ताद अमजद अली खां के साथ प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा अपनाए जा रहे दोहरे रवैये की दास्तां चंद वर्षों पुरानी है। दराअसल उस्ताद से तानसेन समारोह आयोजित करने वाली अकादमी के वरिष्ठ अधिकारी के साथ आपसी खुन्नस है जिसके कारण पूरा विभाग अमजद अली खां के साथ दोहरा रवैया अपनाए हुए है। पूरे देश में मध्यप्रदेश ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहां पूरे वर्ष में सबसे ज्यादा सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं, जितने सांस्कृतिक आयोजन इस प्रदेश में होते है उतने किसी भी दूसरे राज्य में नहीं होते। भारत भवन, संस्कृति विभाग, संस्कृति परिषद के अंर्तगत संचालित आठ से अधिक अकादमियां सहित संस्कृति विभाग के ऐसे कई उपक्रम है जिनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का सिलसिला आयोजित किया जाता है। लेकिन इन सभी आयोजनों में उस्ताद अमजद अली खां एवं उनके बेटों की उपस्थिति पूरी तरह नदारद रहती हैं। क्योंकि विभाग कभी भी उन्हें सम्मानजनक ढंग से उन्हें बुलाने के बारे में भी विचार नहीं करता।
अपने ही बनाए नियमों को तोड़ा
सूत्रों के अनुसार अमजद अली खां ने कुछ वर्ष पहले तानसेन समारोह में अपने बेटों की प्रस्तुति के लिए विभाग से निवेदन किया, लेकिन विभाग ने यह कहकर समारोह में शामिल करने से मना कर दिया था कि एक बार प्रस्तुति में शामिल करने के बाद पांच साल तक किसी कलाकार को दोबारा नहीं बुलाया जाता। जबकि अकादमी के अधिकारियों ने अपने बनाए इस नियम को कई बार दरकिनार करते हुए कलाकारों को बार-बार प्रस्तुति का मौका दिया है।
उल्लेखनीय है कि कला और संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश में अपनी क्रियाशीलता के संस्थान कलाकारों के साथ भेदभाव पूर्ण नीति के लिए भी चर्चित होता जा रहा है चाहे वह संगीता के हो चाहे लोक कला आर्टिस्ट हो चाहे नाटककार हो जो उनके मुताबिक चलता है उसके लिए पलक पावडे बिछा रहते हैं और जो उनके मुताबिक नहीं चलते हैं उनके साथ भेदभाव पूर्ण नीति जहां अपना रहे हैं वही कई और मुद्दों को लेकर भी चर्चा में बने हुए हैं जिससे सरकार की छवि दिनोंदिन खराब होती जा रही है और कलाकारों में संस्कृति विभाग के प्रति आक्रोश भी जागरूक हो रहा है इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए क्योंकि आने वाले वक्त में यह छोटी-छोटी मसले बड़े साबित हो सकते हैं जो सरकार को चुनौती दे सकते हैं और सरकार की छवि और भी धूमिल हो सकती है।