समस्त योगासनों में शिरोमणि है ‘सत्तासन’
● रवि उपाध्याय
जब सूत जी महाराज नैमिषारण्य में अपने शिष्यों को प्रवचन सुना रहे थे । तभी उनके शिष्यों में से एक शिष्य ने सूत जी से पूछा, हे गुरुवर आज कल भारत समेत लगभग पूरी दुनिया के देशों में बड़े स्तर पर सामुहिक रूप से योग किया जा रहा है। हे गुरु प्रवर भारत भूमि वैसे तो सदियों से ऋषि मुनियों की भूमि रही है। देवाधिदेव महादेव को आदियोगी कहा गया है। वृंदावन में कंस के कारा में जन्मे नटवर नागर भगवान कृष्ण को योगिराज की संज्ञा से विभूषित किया गया है। गुरुवर! इन दिनों पृथ्वीलोक पर योग विद्या का प्रचलन काफी बढ़ गया है। साल का सबसे बड़ा या लंबा दिन कहे जाने वाले 21 जून को इसे पूरी दुनिया में समारोह पूर्वक योग दिवस मनाया जाता है।
हे, गुरुवर ! सूत जी महाराज मेरे मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई है। कृपया उसका आप समाधान करने का कष्ट कीजिए ।सूत जी महाराज बोले – हां जिज्ञासु शिष्य वत्स ! आप अपनी जिज्ञासा का खुले मन से प्रकटीकरण कीजिए, मैं अपने उत्तर से उसका समाधान करने का पूरा पूरा प्रयास करूंगा। सूत जी महाराज की आज्ञा उपरांत शिष्य ने कहा हे प्रभु , यह बताइए कि तन- मन और धन को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ योगासन कौन सा है, जिसको करने से तन-मन को आत्मिक शांति, समृद्धि और स्वर्गानुभती मिलती हो।
शिष्य का प्रश्न सुनने के बाद सूत जी महाराज बोले -हे वत्स, विद्वत जनों का कहना है कि तन और मन के स्वास्थ्य के लिए महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित सभी योगासन अद्भुत स्वास्थ्य एवं शान्ति दायक हैं। लेकिन कलयुग, में महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित संपूर्ण योगासन के अतिरिक्त संपूर्ण चराचर में सबसे सर्वाधिक यदि कोई प्रभावी योगासन है तो वह योगासन है “सत्तासन”। योगासनों में ‘सत्तासन’ सर्व श्रेष्ठ योगासन है। सत्तासन के साधकों के पास इतनी शक्ति और सामर्थ्य होता है कि अन्य योगासन तो ठीक है परंतु इसमें इतना आकर्षण शक्ति और चुम्बकत्व होता है कि इसके चुंबकीय बल से कई योगाचार्य दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं। इस सत्तासन की साधना से सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है। इससे मन निर्मल हो आनंद का संचार हो जाता है। घर में शान्ति का वास होता है। इसके चुम्बकत्व का इतना मनोरम माधुर्य प्रभाव होता है कि गृह लक्ष्मी तो प्रसन्न होती है बल्कि इसका प्रभाव आपके निवास के आसपास निवास करने वाली सुन्दरियों पर भी होता है। वे सभी सत्तासन के साधक की कृपा दृष्टि की तलबगार हो जातीं हैं। इस सत्तासन के साधक के चहुं और लक्ष्मी छम -छम-छम-छम करती हुईं अठखेलियाँ करतीं नजर आती हैं।
सूत जी महाराज से ‘सत्तासन’ की अद्भुत माहिमा सुनने के बाद कुछ शिष्य गण किसी दूसरे लोक में ही भ्रमण करने लगे। सूत जी महाराज ने शिष्यों के स्वप्न लोक में भ्रमण पर विराम लगाते हुए कहा – इस सत्तासन के साधक के लिए यह जरूरी है कि वह सत्तासन का उपयोग अत्यंत सावधानी पूर्वक परोपकार और पवित्रता से करे वरना यश कीर्ति सब नष्ट होने में समय नहीं रहता और वह अपयश का भागी बन जाता है। सत्तासन की साधना के साथ उसे महर्षि पतञ्जलि द्वारा सुझाए गए सूक्ष्म व्यायाम और योगासनों तथा प्राणायाम का निरन्तर शांत मन से पालन कर प्रभु का सदैव स्मरण करना चाहिए। सांसारिक भोग-विलास से दूर रह कर प्रभु का स्मरण करना चाहिए। मन को संधान कर स्वंय सही गलत का निश्चय करना चाहिए।
सूत जी महाराज ने जिज्ञासु शिष्य से पूछा- हे ! शिष्य आशा है कि तुम्हें अपने यक्ष प्रश्न का समाधान कारक उत्तर मिल गया होगा। शिष्य सूत जी महाराज के चरणों में गिर कर बोला – प्रभु, आपने तो मेरे ही नहीं हम सब शिष्यों के ज्ञान चक्षु को भी आलोकित कर दिया। हे ! प्रभु हम आपके सदैव-सदैव सात जन्मों पर्यंत आभारी रहेंगे। नारायण, नारायण।
( लेखक व्यंग्यकार एवं राजनैतिक समीकक्षक हैं)