दिल्ली में यमुना की सफाई एक ऐसा मुद्दा है, जिसे जो भी सत्ता में आया, उसने पूरी शिददत से उठाया, लेकिन कर कोई न पाया। यमुना आज भी मैली ही है और पहले से भी ज्यादा मैली है। औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषण से यमुना का पानी दिल्ली से पहले सोनीपत से ही प्रदूषित होने लगता है। जानकारी के मुताबिक यमुना नदी राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश बिंदू (पल्ला) से लेकर दिल्ली से बाहर निकलने तक यानी असगरपुर के बीच कुल क्षेत्र करीब 54 किलोमीटर है। इस बीच नदी का पानी न तो कहीं डूबकी लगाने लायक है और न ही आचमन करने योग्य।
वजीराबाद से कालिंदी कुंज का हिस्सा 22 किमी है। यह नदी की पूरी लंबाई का सिर्फ दो प्रतिशत है, लेकिन सर्वाधिक प्रदूषण इसी हिस्से में होता है। बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मानसून में भी नदी का पानी साफ पानी नहीं रहता। डिजाल्व ऑक्सीजन (डीओ) का सामान्य स्तर पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है। पल्ला में इसकी मात्रा नौ मिली ग्राम प्रति लीटर है जबकि असगरपुर में शून्य पाई गई। वहीं कैमिकल ऑक्सीजन डिमांग (सीओडी) की अधिकतम स्वीकृत मात्रा 250 मिलीलीटर से कम होनी चाहिए। पल्ला में इसकी मात्रा 33 मिलीलीटर है जबकि असगरपुर में 254 मिली लीटर रही।