Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना आख़िरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा था.
लेकिन चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मिली हार के बाद वाजपेयी भारत की सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे.
दूसरी ओर राहुल गांधी ने 2004 में ही पहली बार चुनावी राजनीति में दस्तक दी थी.
राहुल गांधी ने 2004 में उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत मिली थी. अमेठी से ही राहुल के पिता राजीव गांधी चुनाव लड़ते थे.
2004 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए पर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाला गठबंधन यूपीए भारी पड़ा था.
राहुल गांधी जब संसद पहुँचे तब अटल बिहारी वाजपेयी सांसद रहते हुए भी ख़राब सेहत के कारण संसद नहीं आ पाते थे.
आडवाणी नेता प्रतिपक्ष बन गए थे और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री. राहुल ने सांसद रहते हुए संसद में कभी वाजपेयी को मोर्चा संभालते नहीं देखा.
राहुल गांधी 10 साल तक अपनी सरकार में लोकसभा सांसद रहे और पिछले आठ सालों से विपक्षी सांसद हैं.
कांग्रेस जब 2004 से 2014 तक सत्ता में रही तो राहुल मंत्री नहीं बने और कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो नेता प्रतिपक्ष बनाने लायक भी जीत नहीं हासिल कर पाई.
राहुल मंत्री अपनी इच्छा से नहीं बने थे और नेता प्रतिपक्ष बनने भर उनके पास सांसद नहीं थे.
वाजपेयी का सीधा सामना सोनिया गांधी ने किया था और अब राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का सीधा सामना कर रहे हैं.
कहा जा रहा है कि कांग्रेस अभी अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रही है और इसी मुश्किल से निकालने के लिए राहुल ने सात सितंबर 2022 से कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत की है.
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ नौ राज्यों से होते हुए दिल्ली पहुँची.
इसी यात्रा के क्रम में राहुल ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि दी थी. राहुल ने वाजपेयी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की समाधि पर भी श्रद्धांजलि अर्पित की थी.
हालांकि वाजपेयी की समाधि पर राहुल गांधी के जाने की चर्चा ज़्यादा हो रही है.
कई लोग इसे राहुल की राजनीति में विरोधाभास से जोड़कर देख रहे हैं तो कई लोग उनकी समझदारी के रूप में भी देख रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी के इतिहास की गहरी समझ रखने वाले पत्रकार और लेखक रशीद किदवई कहते हैं कि इसमें राहुल की राजनीति का विरोधाभास और उनकी समझदारी दोनों देख सकते हैं.
मेरी माँ मेरे कमरे में आईं और पास बैठकर रोने लगीं. वह मानती हैं कि जिस सत्ता को पाने के लिए लोग बेताब हैं, वह दरअसल, ज़हर है.राहुल गांधी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष
किदवई कहते हैं, ”2019 में शिव सेना के उद्धव ठाकरे कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. ये वही शिव सेना है जो सावरकर के हिन्दुत्व की राह पर चलने की बात करती है. दूसरी तरफ़ राहुल गांधी सावरकर को आड़े हाथों लेने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते हैं.
राहुल गांधी सावरकर को माफ़ीवीर कहते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी भी सावरकर को उसी रूप में देखते थे, जैसे मोदी देखते हैं. इस रूप में देखें तो लगता है कि यह राहुल की राजनीति का विरोधाभास है.”
‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल जाने-माने राजनीतिक ऐक्टिविस्ट योगेंद्र यादव से पूछा कि वह राहुल के अटल की समाधि पर जाने को कैसे देखते हैं?
योगेंद्र यादव कहते हैं, ”राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के ज़रिए जो संदेश देना चाहते हैं, अटल जी की समाधि पर जाना उसी का हिस्सा है. मैं इसमें कोई विरोधाभास नहीं देखता हूँ. राहुल ने कहा है कि वह नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं.
राहुल कहते भी रहे हैं कि वह वैचारिक विरोध को व्यक्तिगत नफ़रत या दुश्मनी की तरह नहीं लेते हैं. राहुल धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और आधुनिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध हैं. मैं उन्हें क़रीब से देख रहा हूँ और मेरी समझ यही बनी है कि उनमें सत्तालोलुपता नहीं है, लेकिन सत्ता और राजनीति के ज़रिए परिवर्तन करना ज़रूर चाहते हैं.”
योगेंद्र यादव कहते हैं, ”राहुल में एक किस्म का संकल्प है. उनके घुटने में तकलीफ़ है, लेकिन ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से डिगे नहीं.”