Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
असम में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन की 46 साल बाद शुरू हुई प्रक्रिया को लेकर कई सवाल खड़े हो गए है.
भारत के निर्वाचन आयोग ने असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की है. साल 1976 के बाद असम में यह पहली परिसीमन प्रक्रिया है. ये 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होगी.
असम में अभी विधानसभा की कुल 126 सीटें है जबकि लोकसभा की कुल 14 और राज्यसभा की 7 सीटें है. नए परिसीमन से मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में बड़े पैमाने पर बदलाव होने की संभावना है.
ऐसी चर्चा है कि इस परिसीमन में ऊपरी असम में एक तरफ जहां करीब तीन हिंदू बहुल सीटें कम हो जाएगी वहीं निचले असम की मुसलमान बहुल कई सीटों में भी व्यापक बदलाव हो सकता है.
दरअसल, कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना को आधार वर्ष बनाने को लेकर सवाल उठा रही हैं. कांग्रेस ने जहां परिसीमन की प्रक्रिया से जुड़े तौर-तरीकों पर नजर रखने के लिए एक कमेटी बनाई है, वहीं ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने इसे सत्तारूढ़ बीजेपी का ‘राजनीतिक एजेंडा’ बताया है.
विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि बीजेपी परिसीमन के जरिए निचले असम की ‘कई मुसलमान बहुल सीटों का खेल बिगाड़’ सकती है.
जबकि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में मीडिया के समक्ष कहा था कि विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन ‘असम समझौते के क्लॉज छह को लागू करने का प्रवेश द्वार है.’
1976 में हुआ था पिछला परिसीमन
असम आंदोलन के बाद 1985 में हुए असम समझौते के क्लॉज छह में असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और धरोहर के संरक्षण तथा उसे बढ़ावा देने के लिये उचित संवैधानिक, विधाई और प्रशासनिक उपाय करने का प्रावधान है.
इसी क्रम में असम सरकार ने दिसंबर के पहले सप्ताह में केंद्र को एक पत्र लिखा था कि अगर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है तो यहां कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं होगी.
लिहाजा चुनाव आयोग की ओर से 27 दिसंबर को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार कानून और न्याय मंत्रालय से मिले अनुरोध के बाद आयोग ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8ए के अनुसार असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है.
इस दौरान निर्वाचन आयोग ने राज्य में 1 जनवरी, 2023 से परिसीमन तय होने तक नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन पर भी रोक लगा दी है.
इससे पहले परिसीमन अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत, असम में निर्वाचन क्षेत्रों का अंतिम परिसीमन 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 1976 में किया गया था.
इस बीच नई दिल्ली में शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्यमंत्री सरमा ने कहा,”निर्वाचन आयोग ने राज्य में परिसीमन प्रक्रिया शुरू करने के चलते हमें किसी भी प्रकार से प्रशासनिक गुट समूह में फेरबदल करने पर 1 जनवरी से रोक लगाई है, इसलिए हमने आज एक कैबिनेट बैठक कर राज्य के कुल 14 जिलों में कुछ परिवर्तन किया है. इसमें विश्वनाथ, होजाई, बोजाली और तामुलपुर जिलों को फिर से उनके पुराने जिलों में मिला दिया गया है.”
असम सरकार के इस निर्णय के बाद अब असम में कुल 35 जिलों में 31 ही रह जाएंगे.
इतने आनन-फानन में लिए गए फैसले पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इन चार जिलों को प्रशासनिक कारण और असम के जातीय जीवन की भलाई को ध्यान में रख खत्म किया गया है.
असम में 2021 में हुए विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी के घोषणापत्र में ‘लोगों के राजनीतिक हितों’ की रक्षा के लिए एक परिसीमन और ‘सभी कदम और आवश्यक सुरक्षा उपायों’ का वादा किया गया था.
बीजेपी को होगा फ़ायदा?
राज्य की राजनीति पर करीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठनाथ गोस्वामी कहते है,”इस परिसीमन में राज्य विधानसभा की कुल 126 सीटें ही रहेगी. इसमें सीट नहीं बढ़ेगी. लेकिन 2001 की जनसंख्या के आधार पर अगर यह परिसीमन किया जा रहा है तो मुस्लिम बहुल निचले असम में कुछ सीटें बढ़ेंगी. 126 सीटें ही रखनी होगी तो ऊपरी असम की हिंदू बहुल कुछ सीटें कम हो जाएगी. इसी कारण बीजेपी सरकार ये फैसले ले रही है.”
परिसीमन से बीजेपी को होने वाले कथित फ़ायदे के सवाल पर गोस्वामी कहते है, “ऐसे कुछ निर्वाचन क्षेत्र है जहां हिंदू-मुसलमान वोटर बराबर है लेकिन उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों का नियंत्रण है. कुछ ऐसी विधानसभा सीटें है जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है लेकिन वहां मुसलमानों की आबादी बहुत ज्यादा है.”
” राज्य में एससी के लिए आठ और एसटी की 16 सीटें हैं. मुसलमान बहुल सीटों को आरक्षित सीटों के साथ मिलाने की कोशिश होगी. लिहाजा नए परिसीमन से 110 विधानसभा सीटें ऐसी निकल कर आएंगी जिसमें केवल हिंदू उम्मीदवार ही जीत पाएंगे. बीजेपी का यह मुख्य मकसद है. बीजेपी यहां हमेशा 100 प्लस सीट की जो बातें करती रही है उसका संबंध इस नए परिसीमन से है.”
जब 2011 की जनगणना के आंकड़े मौजूद हैं तो नए परिसीमन के लिए 2001 को क्यों आधार बनाया जा रहा है?
इस सवाल पर गोस्वामी कहते है, ” 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने से 110 सीटें नहीं निकल कर आएगी. क्योंकि 2011 को आधार बनाया गया तो मुस्लिम बहुल सीटें बढ़ जाएगी. इसमें मुसलमानों की बढ़ी हुई जनसंख्या का खेल शामिल है.”
विपक्ष का आरोप
2001 की जनगणना में असम की आबादी लगभग दो करोड़ 66 लाख थी, जिसमें हिंदुओं की संख्या एक करोड़ 72 लाख और मुसलमानों की संख्या 82 लाख थी. उस दौरान राज्य के 27 जिलों में से छह में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी थी.
इसकी तुलना में, 2011 की जनगणना में असम की जनसंख्या तीन करोड़ 12 लाख हो गई जिनमें हिंदुओं की जनसंख्या एक करोड़ 92 लाख और मुसलमानों की जनसंख्या करीब एक करोड़ सात लाख बताई गई है.
इस तरह राज्य के नौ जिलों में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी बढ़ गई जबकि 2021 की जनगणना अभी प्रकाशित होना बाकी है.
मनकाचार (दक्षिण सलमारा) से एआईयूडीएफ विधायक और पार्टी के प्रवक्ता मोहम्मद अमीनुल इस्लाम ने परिसीमन प्रक्रिया पर बीबीसी से कहा,”2026 में पूरे देश में 2021 की जनगणना के आधार पर परिसीमन होना है फिर असम में इसे एक साल पहले करने का क्या मकसद हो सकता है. यह पूरी तरह बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा है.”
उन्होंने कहा, “बीजेपी 2024 के आम चुनाव से पहले मुस्लिम बहुल इलाके की अगर चार-पांच विधानसभा सीटों को कम कर देती है तो वो बहुसंख्यकों के समक्ष इसे मुद्दा बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेगी. इसके अलावा यह परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किया जा रहा है जबकि 2011 और 2021 की जनगणना के बीच में कम से कम एक करोड़ वोट का इजाफा हुआ होगा. इस तरह जनसांख्यिकी और जनसंख्या पैटर्न भी बदला है लिहाजा हमें संदेह कि यह परिसीमन वास्तविक नहीं होगा. बीजेपी अपने राजनीतिक फायदे के लिए यह सबकुछ कर रही है.”
असम में 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर शुरू हुई परिसीमन की इस प्रक्रिया से जुड़े कई सवाल पूछने के लिए बीबीसी ने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नितिन खाडे से कई दफा फोन पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने एक संदेश के जरिए ‘अभी बात कर सकने में असमर्थता’ जताई.
‘वोट बैंक सुरक्षित करने के लिए परिसीमन’
असम विधानसभा में कांग्रेस पार्टी से विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया सवाल उठाते हुए कहते है, “सत्ताधारी बीजेपी ने अभी तक एनआरसी अर्थात राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का कोई समाधान नहीं निकाला है तो परिसीमन का काम कैसे शुरू कर सकती है? 2008 में जब परिसीमन का प्रयास किया गया था उस दौरान बीजेपी ने कुछ अन्य दलों के साथ यह कहते हुए विरोध किया था कि इसे एनआरसी प्रक्रिया के बाद ही किया जाना चाहिए. अब सत्तारूढ़ पार्टी अपने वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए बिना किसी से सलाह मशविरा किए परिसीमन का काम कर रही है..”
कांग्रेस नेता कहते है, “असम में परिसीमन समय की आवश्यकता थी, लेकिन 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करने का कोई मतलब नहीं था. क्योंकि 2011 की जनगणना उपलब्ध थी. ऐसे में एक अपडेट जनगणना के साथ निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में बदलाव किया जा सकता था. ताकि सभी जाति-जनजाति के लोगों को अपना प्रतिनिधित्व मिल सके. 2011 की जनगणना को दरकिनार कर 2001 के आधार पर परिसीमन करेंगे तो यह अन्याय होगा.सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या इस परिसीमन से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा होगा. जम्मू कश्मीर में अभी जो परिसीमन प्रक्रिया पूरी की गई है उसका आधार भी 2011 की जनगणना थी फिर असम के लिए 2001 क्यों?”
असम में 2011 के धर्म जनगणना अनुसार हिंदू 61.47 फीसदी, मुसलमान 34.22 फीसदी और ईसाई 3.74 फीसदी है. इस समय असम के लगभग ग्यारह जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और चार जिलों में मुसलमानों की संख्या 60 फीसदी से अधिक हैं. साल 2016 में धुबड़ी जिले से अलग कर नए जिले के तौर पर गठन किए गए दक्षिण सालमारा मनकाचार जिले में मुसलमानों की आबादी 95 फीसदी से अधिक है.
राज्य के मुस्लिम बहुल नौ जिलों में विधानसभा की कुल 45 सीटें है और 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के अनुसार कुल 31 मुसलमान विधायक है जिनमें 16 कांग्रेस के है और 15 एआईयूडीएफ के है. 2016 में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में आई थी उस समय पार्टी के पास एक मुसलमान विधायक था लेकिन अब सत्तारूढ़ पार्टी में एक भी मुसलमान विधायक नहीं है.
असम की राजनीति में ऐसी एक धारणा रही है कि मुसलमान किसी दिन अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों पर कब्जा कर लेंगे. लेकिन तथ्य यह है कि मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र की जो व्यवस्था है जिसमें वे अधिकतम 35-36 सीटें ही जीत सकते हैं.
1983 के अलावा,असम विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या आमतौर पर 25 अंकों के आसपास ही रही है.
बीजेपी ने क्या कहा?
परिसीमन को लेकर बीजेपी पर लग रहे तमाम आरोपों का जवाब देते हुए असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार गुप्ता कहते है,”राजनीतिक पार्टियां बेबुनियाद आरोप लगाती है जबकि पिछले 46 साल से असम परिसीमन नहीं हुआ है. इतने लंबे समय में यहां भौगोलिक और जनसांख्यिकी बदली है. यह काम राज्य के लोगों के राजनीतिक हितों की रक्षा और आवश्यक सुरक्षा उपायों के तहत किए जा रहें है.इसलिए हमें लोगों का समर्थन भी मिल रहा है.”
उन्होंने कहा, “बात जहां तक 2001 की जनगणना को आधार बनाने की है तो इस काम को चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संस्था कर रही और वो सभी पक्षों की सहमति से ही यह काम कर रही है.”
मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि आयोग की ओर से निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए एक मसौदा प्रस्ताव को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, इस पर सुझावों और आपत्तियों के लिए राजनीतिक पार्टियों, संगठनों और आम जनता की राय ली जाएगी.