news reporter surendra maravi 9691702989
भारत की आत्मा कही जाने वाली लोक संस्कृति की अनुपम छटा को यदि देखना है तो शहर के लालबाग परिसर में लगा मेला इसका बेहतर विकल्प हो सकता है। लोक संस्कृति मंच द्वारा यहां आयोजित लोकोत्सव में विभिन्न प्रांतों के लोकनृत्य को देखा जा सकता है। यूं तो यह मेला शनिवार से शुरू हुआ, लेकिन औपचारिक शुरुआत रविवार से हुई।
शाम को तेलंगाना, गुजरात सहित मध्य प्रदेश के झाबुआ के आदिवासी और लोकनृत्यों की प्रस्तुति हुई। तेलंगाना के कलाकारों ने लंबार्डी नृत्य किया। यह नृत्य बंजारा जनजाति द्वारा फसल कटने के बाद खुशी में किया जाता है। पारंपरिक परिधान और आभूषण पहनी महिलाओं का साथ पुरुषों ने ढप्पू वाद्य बजाते हुए दिया।
यूं तो भगोरिया नृत्य फागुन में होता है, लेकिन दिसंबर की सर्द रात में किए गए इस नृत्य ने दर्शकों के मन में उत्साह के रंग भर दिए। गुजरात के डांग जिले से आए आदिवासी समुदाय के युवक-युवतियों ने डांगी नृत्य प्रस्तुति किया। यह विवाह समारोह में किया जाता है। गुजरात से ही आए कलाकारों ने वसावा जनजाति द्वारा किया जाने वाला सगाई चांदला नृत्य प्रस्तुत किया।
शिल्प मेले में स्वास्थ्य परीक्षण और खेलों का मजा
लोक संस्कृति मंच के संयोजक शंकर लालवानी ने बताया कि आयोजन में शिल्प मेले के साथ स्वास्थ्य परीक्षण शिविर भी लगाया जा रहा है। यह शिविर दोपहर 3 से रात 9 बजे तक रहेगा। यहां देशज खेल जैसे सितोलिया, कबड्डी, खो-खो आदि भी खेलने की सुविधा है। शिल्प मेले में विभिन्न स्थानों से बुनकर आए हैं।