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Sudhir Mishra Interview: खामाखां की कॉन्ट्रोवर्सी मेरी आदत नहीं… ‘तनाव’ के डायरेक्टर सुधीर मिश्रा की दो टूक​

सुधीर मिश्रा बॉलीवुड का मशहूर नाम है। वह न सिर्फ राइटर बल्कि एक्टर भी हैं। इन दिनों वह अपनी वेब सीरीज तनाव को लेकर बिजी चल रही हैं। सलमान खान के भाई अरबाज खान और मानव कौल जैसे कलाकारों से सजी सीरीज है। इस वेब सीरीज को लेकर सुधीर मिश्रा ने नवभारत से खास बातचीत की और तमाम मुद्दों पर रिएक्ट किया।

​Sudhir Mishra Interview
खामाखां की कॉन्ट्रोवर्सी मेरी आदत नहीं… ‘तनाव’ के डायरेक्टर सुधीर मिश्रा की दो टूक

हाइलाइट्स

  • सुधीर मिश्रा का खास इंटरव्यू
  • तनाव वेब सीरीज की इनसाइट स्टोरी बताई
  • कश्मीर मुद्दे पर सुधीर मिश्रा का जवाब

इंडस्ट्री के जाने-माने फिल्ममेकर, राइटर और एक्टर सुधीर मिश्रा ने अपने लंबे करियर में कई बड़े प्रोजेक्ट किए। ‘जाने भी दो यारो’, ‘ये वो मंजिल तो नहीं’, ‘मैं जिंदा हूं’, ‘धारावी’, ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’, ‘चमेली’, ‘खोया खोया चांद’, ‘ये साली जिदंगी’ जैसी तमाम फिल्में उनके नाम हैं। कई अवॉर्डस अपने नाम करने के बाद इन दिनों सुधीर मिश्रा अपनी वेब सीरीज ‘तनाव’ को लेकर चर्चा में हैं। पेश है उनसे हुई खास बातचीत:

आजकल साउथ और बॉलीवुड के बारे में काफी चर्चा हो रही है। हिंदी फिल्मों के कॉन्टेंट को लेकर लोगों का मूड बदल रहा है। आपको क्या लगता है इसके पीछे क्या वजह है?

जिसे लोग बॉलीवुड और साउथ फिल्म इंडस्ट्री कहते हैं, मेरे लिए वो शुरू से ही सिर्फ भारतीय फिल्म इंडस्ट्री रही है। वैसे भी फॉर्मूला फिल्म मेकिंग कभी इतनी यथार्थवादी नहीं रही है। कुछ फिल्मों में ही हकीकत हुआ करती थीं, जैसे विमल रॉय, गुरुदत्त, राज कपूर की फिल्मों में दिखता था। अब डिजिटल प्लैटफॉर्म हैं तो वो चुनौतियां तो रहती ही हैं। चाहे वो साउथ की मेनस्ट्रीम इंडस्ट्री हो या फिर मुंबई की, वो हकीकत को ज्यादा बयां नहीं करती हैं। इस वक्त साउथ की बड़ी फिल्में थोड़ी चल रही हैं, वहां बेहतर फिल्में बन रही हैं, जो यथार्थवादी फिल्म हैं वो सच हैं। बॉलिवुड को उससे सीख लेनी चाहिए। लोगों को थोड़ा हकीकत से भी तो जोड़ना है। अगर आप मराठी फिल्में देखेंगे तो उनमें भी कई फिल्में अच्छी होती हैं। एक दौर आता है। जब दूसरे लोग आएंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। आने वाले साल में आप देखेंगे सब कुछ ठीक हो जाएगा।

एक वक्त था जब कश्मीर शूटिंग के लिहाज से हॉट स्पॉट रहा है, लेकिन फिर एक दौर आया जब वहां लोग जाने से बचते रहे। अब फिर से कश्मीर में शूटिंग हो रही हैं और वहां की कहानियों को दिखाया जा रहा है। क्या लगता है कि 370 हटने के बाद चीजें आसान हुई हैं? फिल्मों या सीरीज की शूटिंग के लिहाज से कुछ चीजें बदली हैं?
पहले कश्मीर सिर्फ गानों की शूटिंग के लिए फेमस था और कश्मीरियों को बैकग्राउंड में रखा जाता था। हीरो-हीरोइन वहां जाकर छुट्टियां मनाते थे, वहां गाने रिकॉर्ड करते थे। अब जिन चीजों में कश्मीर को दिखाया जा रहा है, उसमें कुछ-कुछ कहानियां कश्मीर की भी हैं। आप जिस भी विचार से उन कहानियों को बना रहे हों लेकिन उसमें कश्मीर के लोग, वहां की कहानी बन रही हैं। अब कश्मीर बैकड्राप नहीं है। बॉर्डर के क्षेत्र में कुछ करना आसान नहीं होता है। जहां सियासत उलझी हुई है, वहां चीजें आसान नहीं होती हैं। हम लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई है लेकिन हम कोई आसान सी टिप्पणी भी नहीं कर सकते हैं। हम वहां शूट करके आए तो हमें उसमें कोई समस्या नहीं हुई है। कश्मीर मुझे हमेशा याद रहेगा और वहां की शूटिंग हमेशा याद रहेगी। वहां के कमाल के लोग और उनका मिलनसार व्यवहार हमें बहुत याद रहेगा। वहां हमें किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।

इस सीरीज के बारे में आपको ख्याल कैसे आया?
तनाव सीरीज के प्रॉडक्शन हाउस के सीईओ, वो काफी समझदार हैं। उन्होंने कहा कि फौदा (इजरायली टीवी सीरीज) को बनाना चाहिए। वो इस आइडिया को मेरे पास लाए थे। मैंने फौदा को देखा हुआ था। फिर हमने उस सीरीज का एक ट्रांसलेशन तैयार किया। फिर दोबारा से फौदा सीरीज को नहीं देखा था। फिर वहीं से हमने अडॉप्शन शुरू किया। लेकिन समीर का इसमें काफी योगदान रहा है।

जब द कश्मीर फाइल्स रिलीज हुई थी, तब एक तबका ऐसा भी था, जिसका ये कहना था कि फिल्म की कहानी एक तरफा है या सच्चाई से परे है। आपको इस बात से डर नहीं लगता कि आपकी सीरीज तनाव को लेकर भी आप पर ऐसे आरोप लग सकते हैं?
विवादों से आप कहां भाग सकते हैं। कुछ नहीं भी होगा तो भी विवाद हो जाता है। हालांकि एक फिल्ममेकर के तौर पर जो मेरा करियर है, उसमें मैं ज्यादा सेंसेशनल चीजें नहीं करता हूं, खामाखां की कॉन्ट्रोवर्सी मेरी आदत नहीं है। लेकिन कुछ बयां करना चाहता हूं या सियासत पर कोई टिप्पणी करनी होती है, तो मैं उससे डरता भी नहीं हूं। कहने को कोई कुछ भी कह सकता है, लेकिन मैं ये कहता हूं कि ज्यादातर लोग पूरा काम नहीं देखते हैं। सुनी-सुनाई बातों पर आप रिएक्ट मत करो। पहले आप चीज को पूरी तरह ठीक से देखो, फिर रिएक्ट करो। जो मैंने किया है वो सिर्फ मैंने नहीं किया है बल्कि उसमें बहुत सारे लोग जुड़े हुए हैं। देखने के बाद ही हमें बताएं कि हमने क्या किया। कहानी तो हर एक एपिसोड के साथ बदलती है।

आपकी सीरीज तनाव में काफी तनाव नजर आता है, आपके हिसाब से तनाव किस तरफ से ज्यादा है?
मैं एक राजनेता नहीं हूं बल्कि एक कहानीकार हूं। फिल्म मेकिंग का एक धर्म होता है। उसमें जब आप एक कहानी को सुनाते हैं, तब सब पहलुओं को रखते हैं। वैसी ही कहानी हम सुना रहे हैं। अब कश्मीर पर कहानी सुनाएंगे तो हकीकत भी है कि तनाव तो है। वो भी कहानी में नजर आएगा। शायद इस कहानी का फायदा ये है कि जब आप उन 12 एपिसोड्स को देखेंगे तो आपकी सहानुभूति में इजाफा होगा। शायद आप कश्मीर को बेहतर समझ पाएंगे। इससे ज्यादा कुछ हम कर नहीं सकते हैं। बाकी कहानीकार बड़े-बड़े क्लेम कर सकते हैं, उसका कोई फायदा नहीं है। आप एक अच्छी कहानी सुना रहे हैं, जिसमें लोगों का दुख-दर्द है, एक थ्रिलर एलिमेंट भी है। उम्मीद है कि अंदाजे बयां काफी दिलचस्प है। किरदार हर पहलुओं को दिखा रहे हैं। पहलुओं का ही यहां टकराव है। उसमें अगर आप हमसे पूछेंगे कि आप किस तरफ हैं, तो हम तो भारत की तरफ हैं।

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