तीन हफ्ते बाद सभी चीते सकुशल, अब भी बड़े बाड़े में छोड़े जाने पर संशय के बादल

मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो नेशनल पार्क में आए आठ नामीबियाई चीतों को तीन हफ्ते हो गए हैं। 17 अक्टूबर को उन्हें बड़े बाड़े में छोड़ा जाना है। पर कोर टीम की अंदरुनी लड़ाई और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी दिक्कतों की वजह से इस पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। उधर, अधिकारियों का दावा है कि दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते और आने हैं। उनके लिए भी पार्क में तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर नामीबिया से आए आठ चीतों को उनके छोटे बाड़ों में छोड़ा जाना था। एक महीने तक इन्हें क्वारंटाइन रखकर उनकी सेहत पर निगरानी रखी जानी है। उसके बाद उन्हें खास तौर पर तैयार किए गए 600 हैक्टेयर के बड़े बाड़े में छोड़ने की योजना है। हालांकि, बड़े बाड़े में चीतों को छोड़े जाने को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है। सूत्रों का कहना है कि अगर सुलह नहीं हुई तो वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक वायवी झाला छुट्टी पर जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बताया जा चुका है कि झाला की मौजूदगी इस प्रोजेक्ट की सफलता के लिए अहम है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नामीबिया के चीता कंजर्वेशन फंड (सीसीएफ) ने भी इन चीतों को बड़े बाड़ों में छोड़ने के लिए अपने विशेषज्ञों को मध्यप्रदेश वन विभाग का सहयोग करने भेजा है। कुछ मुद्दे उठे हैं, जिनके समाधान के बाद ही चीतों को बड़े बाड़ों में छोड़ा जाएगा। इसके लिए चेकलिस्ट में कई मुद्दों का समाधान आवश्यक है। तब तक चीतों को क्वारंटाइन ही रखा जाएगा। 

17 सिंतबर को कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए थे चीते

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17 सिंतबर को कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए थे चीते

अंदरुनी बाड़े की मजबूती जरूरी 
सूत्रों का कहना है कि अंदरुनी बाड़े की ऊंचाई दो मीटर है और इसे मजबूती देना आवश्यक है। कई स्थानों पर इसमें समझौता होने की गुंजाइश बनी हुई है। सीसीएफ की कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट एली वॉकर के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जो जाल लगाया गया है, वह कमजोर है। चीते उस पर कूदे तो वह मुड़ जाएगी और वह जंगल में चले जाएंगे। यह उनके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि जंगल में तेंदुएं और बाघ भी हैं, जिनसे चीतों को खतरा हो सकता है। पूरी जाली में नीचे पत्थर लगाने आवश्यक है। वरना जंगली सुअर नीचे सुरंग बनाकर बाड़े में घुस सकते हैं। 11 किमी के बाड़े को ही इलेक्ट्रिफाइड किया जा सका है और ज्यादातर हिस्से में अब भी काम जारी है। 

घना जंगल, मीट रखने की समस्या 
जिस बाड़े में साशा, सवन्नाह और सियाया को छोड़ा जाना है, वहां जंगल बहुत घना है। इस जंगल में चीतों को शिकार करने में दिक्कत हो सकती है। इसी तरह एक खुला कुआं उनके लिए जानलेवा हो सकता है। चीतों की सुरक्षा के लिए उचित व्यवस्था करना आवश्यक है। पानी की सप्लाई भी समस्या है, जिसे दूर किया जाना आवश्यक है। फॉरेस्ट गार्ड का रेस्ट हाउस नेटवर्क में होना चाहिए, ताकि रियलटाइम में जीपीएस डेटा मिलता रहे और चीतों की सही तरीके से मॉनीटरिंग की जा सके। चीतों पर निगरानी रख रही टीमों के पास अब भी उचित ट्रैकिंग उपकरण और उचित मीट स्टोरेज फेसिलिटी नहीं है। सोलर पॉवर से चलने वाली रेफ्रिजरेशन यूनिट इतनी मजबूत नहीं है कि मांस को ठंडा रख सके। 

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