15 जुलाई को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार द्रोपति मुर्मू आएंगी भोपाल

एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार द्रोपति मुर्मू 15 जुलाई को भोपाल आएंगी भैया…

द्रोपदी मुर्मू 15 जुलाई को भोपाल आयेंगी

एनडीए की राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू 15 जुलाई को भोपाल आएंगे यहां मुख्यमंत्री निवास…

महेंद्र सिंह धोनी इन दिनों घुटने के दर्द से परेशान

दुनिया को अपनी बल्लेबाजी का दीवाना बना चुके महेंद्र सिंह धोनी इन दिनों घुटने के दर्द…

उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन देगा

द्रौपदी मुर्मू का समर्थन देगा झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम एन डी ए के…

मुुर्मू समधन के रूप में पहली आदिवासी राष्‍ट्रपति मिल रही हैं

ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर और ऊपरबेड़ा गांव में उत्सव जैसा माहौल है यह उसका…

नौकरी लग भी गई लेेकिन ससुराल वालों के कहने पर छोड़नी पड़ी

देश को पहली बार आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिल सकती है एनडीए ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल…

खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा गोटुल लायब्रेरी।

सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता है।

हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है, ये कुदरती चीजे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता एवं बहिष्कार को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उन्हें उचित या ‘न्यायसंगत’ भी मानते हैं। शायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। ऐसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहाँ नहीं होते जहाँ वे आज हैं।

गौर से देखने पर हम यह पाते हैं कि जो लोग समाज के सबसे निम्न स्तर के हैं, वही सबसे ज्यादा परिश्रम करते हैं। एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है, “यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज़ होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते!” संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना, रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कमरतोड़ काम गरीब लोग ही करते हैं। फिर भी वे अपना जीवन शायद ही सुधार पाते हैं। ऐसा कितनी बार होता है कि कोई गरीब मज़दूर एक छोटा-मोटा ठेकेदार भी बन पाया हो? ऐसा तो केवल फ़िल्मों में ही होता है कि एक सड़क पर पलने वाला बच्चा उद्योगपति बन सकता है। परंतु फ़िल्मों में भी अधिकतर यही दिखाया जाता है कि ऐसे नाटकीय उत्थान के लिए गैर कानूनी या अनैतिक तरीका जरूरी है।

आदिवासी भाषाएँ, संस्कृति, जीवन मूल्य, सोच, दर्शन और परंपराएँ इस देश की मौलिक विरासत है। इनकी विलुप्ति सम्पूर्ण आदिवासी जीवन धारा की मृत्यृ होगी। इसे बचाने के लिए अपनी सोच और चिंतन तथा जीवन और समाज में इसे जगह देना होगा। विशाल भारतीय समाज में विविधता और बहुलता बनी रहे इसके लिए तो खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा। बाहरी वर्चस्ववाद का मुकाबला अपनी भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं, सोच-विचार, विश्वास, मूल्य, कल्पना-परिकल्पना, आदर्श, व्यवहार को बचा कर ही किया जा सकता है।

झारखंड में आईएएस अधिकारी और खनन सचिव पूजा सिंघल

झारखंड में आईएएस अधिकारी और खनन सचिव पूजा सिंघल को बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने…

झारखंड के मनरेगा घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग केस

झारखंड के मनरेगा घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग केस में ईडी ने रविवार को आई ए…

5 राज्यों में 25 ठिकानों पर ईडी की छापेमारी

झारखंड कैडर की आईएएस पूजा सिंघल और उनके सहयोगियों के 5 राज्यों में 25 ठिकानों पर…