तालिबान के लड़ाकों के सामने नही झुक रही है महिलाएं, अपने अधिकारों के लिए विरोध करती दिखीं बीच सडक पर औरतें

दुनिया में कभी भी कोई इंसान जब हथियार उठाता है तो वह खुद की रक्षा सुरक्षा अथवा आवाम पर हुकुमत करने के लिए उठाता है ।जब वह आवाम पर हुुुुकुमत करता है तो उसका फर्ज बनता है कि वह आवाम की हिफाजत करे उनके दुख दर्दो का ख्‍याल रखे ना कि उन पर जुल्‍म करे शायद खुदा भी यही चाहता है । मेरी तालिबानियों से यही गुजारिश है कि वह अफगानिस्‍तान की महिलाओं और बच्‍चों पर क्रूरता से पेश ना आये तथा एक बेहतरीन हुकुुुमत करने का दुनिया में इतिहास रचे । यदि वह ऐसा नही करते है तो शायद खुदा भी उन्‍हें कभी माफ नही करेगा, क्‍योकि इतिहास गवाह है कि‍ जिन्‍होंने भी आवाम पर जुल्‍म और क्रूरता की है उनका वंश नेस्‍तनाबूत हो गया है ।

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा कर लेने के बाद से हजारों अफगान नागरिक देश छोड़कर भाग रहे हैं। तालिबान के उत्पीड़न से बचने के लिए लोग अपनी जान पर खेल कर देश छोड़ने के लिए तैयार है। तालिबान के शासन से सबसे ज्यादा डर महिलाओं को हैं। महिलाओं को डर है कि बीते सालों में मिले अधिकार अब उन से छीन लिए जाएंगे। एक तरफ जहां तालिबान के डर से देश छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ बहादुर महिलाएं अपने अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन करती नजर आ रही हैं।

मर्दो से बेहतर महिलाएं

ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें चार अफगान महिलाओं को तालिबान लड़ाकों से घिरे हुए काबुल की एक सड़क पर कुछ पोस्टर पकड़े देखा जा सकता है, जो उन्होंने अपने ही हाथों से बनाए हैं। 

विरोध कर रही महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा, काम करने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी के अधिकार सहित अपने अधिकारों की मांग करते हुए सुना जा सकता है। वीडियो में महिलाओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “सालों में हमारी सभी उपलब्धियों और हमारे मूल अधिकारों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।”

इस बीच अफगानिस्तान के प्रमुख मीडिया आउटलेट्स में से एक, टोलो न्यूज ने तालिबान के आते ही कुछ समय के लिए हटाने के बाद एक बार फिर महिला एंकरों को स्क्रीन पर बुला लिया है। रविवार को काबुल पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के बाद कई महिलाएं अपनी जान और सुरक्षा के डर से अफगानिस्तान से भाग गईं। काबुल से दिल्ली पहुंची एक अफगान महिला ने कहा कि उसे अपनी दोस्तों की सुरक्षा का डर है।

हालांकि अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान ने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उसने महिलाओं से लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदायों की चिंताओं पर अपना पक्ष रखा। तालिबान ने मंगलवार को इस्लामी कानून के तहत महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने का वादा किया और अपना विरोध करने वालों को माफी देने तथा सुरक्षित अफगानिस्तान सुनिश्चित करने की घोषणा की।


तालिबान को चुनौती देने वाली अफगानिस्तान की पहली महिला मेयर जरीफा गफारी पर दुनिया की नजरें

अफगानिस्तान की सबसे कम उम्र की महिला मेयर ने तालिबान को चुनौती दी है. राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान से अपनी जान बचाने के लिए पहले ही अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं ऐसे में एक बर्बर संगठन के सामने सिर उठाकर खड़ी इस अफगान महिला की हिम्मत की दाद तो देनी ही चाहिए ।

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना है. हर कोई हैरत में है कि आखिर कैसे चंद मुट्ठी भर ‘आतंकियों’ के आगे अफगानिस्तान ने समर्पण कर दिया और सत्ता को तालिबान के हाथों में सौंप दिया. तालिबान सत्ता में आएगा और आते साथ कट्टरपंथी रवैये का प्रदर्शन करेगा इसका अंदाजा बहुत पहले से था. मगर मौजूदा स्थिति कहीं ज्यादा डरावनी है. बेहतर भविष्य की तलाश में अफगानिस्तान के लोग पलायन को मजबूर हैं और माना यही जा रहा है कि जैसे जैसे दिन आगे बढ़ेंगे स्थिति बद से बदतर होती चली जाएगी.

सत्ता पाने के बाद जो रुख तालिबानी लड़ाकों ने अपनाना है कहीं न कहीं बंदर को उस्तरा मिलने की कहावत चरितार्थ होती हुई नजर आ रही है. तालिबान, अफगानिस्तान को कैसे नियंत्रित करेगा अभी हम और आप कयास ही लगा रहे हैं लेकिन जो अफगानिस्तान की सबसे कम उम्र की महिला मेयर ने कहा है उससे इस बात की तस्दीख हो जाती है कि अब अफगानिस्तान में बर्बरियत की शुरुआत हो गई है और मुल्क का निजाम भगवान भरोसे रहेगा.

अफगानिस्तान की सबसे कम उम्र की महिला मेयर जरीफा गफारी ने कहा है कि मैं यहां बैठी हूं और उनके आने का इंतजार कर रही हूं. मेरी या मेरे परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है. मैं बस उनके और अपने पति के साथ बैठी हूं. और वे मेरे जैसे लोगों के लिए आएंगे और मुझे मार देंगे.

ध्यान रहे कि सत्ता में तालिबान के आगमन के बाद अशरफ गनी के नेतृत्व वाली सरकार के वरिष्ठ सदस्य भागने में सफल रहे हैं । वही 27 वर्षीय जरीफा गफारी का कहना है कि आखिर मैं कहां जाऊंगी? बताते चलें कि अभी कुछ दिन पहले ही एक अंतरराष्ट्रीय दैनिक को दिए गए अपने इंटरव्यू में गफारी देश के बेहतर भविष्य की उम्मीद कर रही थीं. अब चूंकि गफारी की तमाम उम्मीदें धाराशाही हो गईं हैं सवाल ये है कि आखिर तालिबान गफारी के इस चुनौती को कैसे और किस तरह लेगा?

गौरतलब है कि जरीफा गफारी 2018 में अफगानिस्तान के वरदाक प्रांत की पहली और सबसे कम उम्र की महिला मेयर बनकर उभरीं थी. जरीफा गफारी के मेयर बनने को तालिबान प्रभुत्व वाले अफगानिस्तान में एक बहुत बड़ी घटना माना गया था. अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों ने भी जरीफा के सत्ता आगमन को एक बहुत बड़ी घटना के रूप में देखा था और इसका स्वागत किया था.

जरीफा गफारी के बारे में एक दिलचस्प बात ये भी है कि अफगानिस्तान जैसे देश में एक महिला होने और सक्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाने के कारण कभी भी तालिबान ने जरीफा को पसंद नहीं किया. पूर्व में भी कई ऐसे मौके आए हैं जब तालिबान द्वारा उन्हें न केवल जान से मारने की धमकी मिली बल्कि उनकी हत्या के प्रयास भी हुए.

जरीफा को मारने का तीसरा प्रयास विफल हुआ और उसके ठीक 20 दिन बाद तालिबान द्वारा जरीफा के पिता जनरल अब्दुल वसी गफारी की हत्या कर उन्हें तालिबान ने अपनी हदों में रहने का स्पष्ट संदेश दिया था.अब चूंकि तालिबान बदलाव की बात कर रहा है. साथ ही उसका ये भी कहना है कि गनी समर्थकों और आम लोगों पर वो आंच भी नहीं आने देगा इसलिए भी तालिबान को चैलेंज करने वाली अफगानिस्तान की पहली महिला मेयर पर दुनिया भर की नज़र रहेगी.

ये 5 महिला हस्तियां बयां कर रही हैं क्रूरता की कहानी, तालिबान से बचाने की लगा रही है गुहार

अफगानिस्तान में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. तालिबान के कब्जे के बाद से सोशल मीडिया पर दर्द का सैलाब आ गया है. तालिबान के अतीत के किस्से और उनकी क्रूरता की यादें लोगों को अंदर तक झकझोर रही हैं. बेबसी का आलम यह है कि लोग प्लेन के टायर में छिपकर देश छोड़ने का भयावह कदम उठा रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि अफगानियों के आंसू का अब कोई हिमायती नजर नहीं आ रहा है.

तालिबान कितना कट्टर और कितना खतरनाक है और उसकी इस निर्ममता का लोगों के मन में कितना डर है इसका अंदाजा इन महिलाओं के बयान से लगाया जा सकता है. जिनके आंसुओं में छिपा है लाखों अफगानियों का दर्द और होठों पर बस एक उम्मीद है कि कोई तो आगे आकर उन्हें बचा ले…

मलाला युसुफजई

मलाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि हम सब को ये देखकर बहुत झटका लगा है कि अफगानिस्तान पर ताबिलान का कब्जा हो गया है. मुझे वहां की महिलाओं, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बेहद चिंता है. वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय शक्तियों को तत्काल युद्धविराम का आह्वान करना चाहिए, तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करनी चाहिए और शरणार्थियों और नागरिकों की रक्षा करनी चाहिए.

बता दें कि तालिबान के निशाने पर मलाला युसुफजई पहले से रही हैं. इनकी वजह से ही मलाला को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था. दरअसल, केवल मलाला ही नहीं, दुनियाभर के बहुत सारे लोगों को अफगानिस्तान की स्थिति को देखकर गहरा झटका लगा है. 

सहारा करीमी

नूरी पिक्चर्स में स्क्रिप्ट राइटर और फिल्म डायरेक्ट सहारा करीमी जो अफगान फिल्‍म की सामान्‍य निर्देशक भी हैं, उन्होंने दुनियाभर के फिल्मकारों और कलाकारों से अपील की है. उन्होंने लिखा कि ‘मुझे ये दुनिया समझ में नहीं आती, ये खामोशी मुझे समझ नहीं आती. मैं खड़ी हूं और अपने देश के लिए लड़ती हूं, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती. मुझे आप जैसे सहयोगियों की जरूरत है. कृपया हमारे साथ क्या चल रहा है, इसकी परवाह करने में हमारी मदद करें. अफगानिस्तान में क्या चल रहा है, कृपया अपने देश के सबसे महत्वपूर्ण मीडिया को सूचित करके हमारी मदद करें.’

नजमा करीमी
नजीरा करीमी करीब 20 साल पहले तालिबान के साये से निकलने के लिए अफगानिस्तान छोड़कर आ गई थीं. अमेरिका में उनसे अफगानिस्तान के हालात पर सवाल किए गए तो वो अपना दर्द छिपा नहीं सकीं और उन्होंने भी वही सवाल किया कि आखिर राष्ट्रपति गनी कहां है? करीमी ने कहा, ‘मैं अफगानिस्तान से हूं और आज मैं बहुत दुखी हूं क्योंकि महिलाओं को उम्मीद नहीं थी कि देखते ही देखते पूरा तालिबान आ जाएगा.

उन्होंने हमारा झंडा हटा दिया और अपना झंडा लगा लिया. हर कोई दुखी है खासकर महिलाएं.’करीमी ने कहा कि अफगान लोगों को नहीं पता क्या करना है. महिलाओं की इतनी उपलब्धियां हैं, मेरी इतनी उपलब्धियां हैं. मैं 20 साल पहले तालिबान के साये से निकलकर आई थी और हम वहीं पहुंच गए हैं. गनी को लोगों को जवाब देना चाहिए.

 

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