प्रश्न:—श्रीमद् भागवत कथा करवाने के बाद भी क्यों नहीं होता आयोजक के मृतक परिजन की आत्माओं का उद्धार?अपने ही परिजनों को क्यों परेशान करतीं हैं मृतक की आत्माएं?
उत्तर:—आधुनिक युग में आज के अधिकांश कथावाचक मृतक की आत्माओं के उद्धार करवाने के लिए उनके फोटो (तस्वीर) ब्यास पीठ के ऊपर रखवा देते हैं।यही गलती मृतक की आत्माओं के उद्धार में सबसे बड़ी बाधा बनती है। क्योंकि ब्यास पीठ पर श्रीमद्भागवत पुराण एवं श्रीकृष्ण भगवान की लड्डू गोपाल की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है।कोई भी ब्यास कथा शुरू करने से पूर्व श्री हनुमान जी महाराज को आसन देता है।और कथावाचक आसन नहीं भी दे तो भी जहां पर ईश्वर की भक्ति (हरि कथा) होती है। वहां देवताओं का किसी भी रूप में आना तय होता है। रामायण में स्पष्ट लिखा है कि:—-राम भक्ति तहां सुरसरि धारा।
आप स्वयं विचार करें।कि जिस ब्यास पीठ पर श्री हनुमान जी एवं देवता विराजमान हों वहां उस ब्यापीठ पर रखी तश्वीर में क्या मृतक की आत्मा अथवा यूं कहें कि प्रेतात्मा फोटो में घुसकर क्या कथा सुन सकती है।कदापि नहीं कभी भी नहीं सुन पायेगी। क्योंकि जो ब्यास पीठ पर हरि कथा के रशिया यानि कि श्री हनुमान जी विराजमान हैं।उनके मौजूद रहते प्रेतात्मा ब्यास पीठ के इर्द-गिर्द फटक भी नहीं सकती है। क्योंकि हनुमान जी के विषय में स्पष्ट कहा गया है कि:-महावीर जब नाम सुनावै।भूत पिसाच निकट नहिं आवै।।
प्रेतात्मा शब्द उन लोगों पर लागू होता है।जिनकी अल्प आयु में मृत्यु हुई है।जिनकी मृत्यु अल्प आयु में होती है। उन्हें प्रेतयोनी प्राप्त होती है।और वह अपनी मुक्ति की खातिर अपने परिजनों को ही परेशान करते हैं।अब सबाल उठता है कि तो फिर श्रीमद् भागवत कथा में इन प्रेतात्माओं की मुक्ति (उद्धार)कैसे करवाया जाये?
ऐसे होता है प्रेतात्मा का उद्धार:—————–श्रीमद् भागवत कथा का मण्डप तैयार करते समय ही एक हरा सात गांठ का बांस कथा पाण्डाल के दाहिनी साईड गढ़ा देवें।यही वह आसन है। जिसमें बैठकर प्रेतात्मा श्रीमद्भागवत कथा का श्रवंण करतीं हैं। और सातवें दिवस की कथा सुनकर प्रेतात्मा इस बांस से एवं इस लोक से मुक्त हो जाती है।कई जगह तो यह प्रमाण भी मिलता है।कि जिस हरे सात गांठ के बांस पर बैठकर प्रेतात्मा ने कथा सुनी थी।कथा समापन पर वह बांस चटक जाता है।उस बांस में दरार स्पष्ट दिखाई देने लगती है। प्रत्येक श्रीमद् भागवत कथा में गढ़ाया गया बांस चटगेगा ही ऐसा पुराण में उल्लेख नहीं है।बांस का चटकना सच्ची भावना और ईश्वर कृपा पर निर्भर करता है।
————————–पं०सुशील महाराज ——————–