Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
Cost Cutting In Cars: कार कंपनियों के सामने कार बनाने के बाद उसकी प्राइसिंग तय करने की बड़ी चुनौती होती है. किसी भी कार की प्राइसिंग तय करते समय कंपनियां कई बातों का ध्यान रखती हैं. इनमें एक बहुत जरूरी बात यह होती है कि कार बनाने की कॉस्टिंग कितनी है. अगर कार बनाने की कॉस्टिंग ही ज्यादा होगी तो स्वाभाविक है कि कार की कीमत भी ज्यादा होगी. इसीलिए, कार कंपनियां कई बार छोटी-छोटी चीजों में कॉस्ट-कटिंग करती हैं. यह कॉस्ट कटिंग इतनी छोटी होती है, जो जल्दी से ग्राहकों की नजर में भी नहीं आती है और कंपनियां आराम से पैसा बचा लेती हैं.
उदाहरण के तौर पर बताएं तो आपने नोटिस किया होगा कि कुछ गाड़ियों में इंडिकेटर का फीचर स्टीयरिंग के नीचे बाईं ओर दिया गया होता है जबकि भारत में ज्यादातर कारों में यह दाईं ओर होता है. दरअसल, जो कार निर्माता कंपनियां राइट हैंड ड्राइव और लेफ्ट हैंड ड्राइव, दोनों कारें बनाती हैं, वह कॉस्ट कटिंग के लिए उसी तरफ इंडिकेटर दे देती हैं, जिस तरफ वह पहले ग्लोबल मार्केट में इंडिकेटर देती आई हैं क्योंकि अगर वह भारत के हिसाब से इंडिकेटर को री-इंजीनियरिंग करके राइट साइड में देंगे तो कॉस्ट बढ़ जाएगी.
ऐसे ही कुछ कारों में फ्यूल फिलर नेक (Fuel Filler Neck) दाईं ओर होता है जबकि ज्यादातर कारों में बाईं ओर आता है. ऐसा करके भी कार कंपनियां कॉस्ट कटिंग कर रही होती हैं. इसके अलावा, कभी-कभी आप नोटिस करते होंगे कि एक ही सेगमेंट की दो कारों की चाबी में दिए जाने वाले फीचर्स में अंतर होता है. कुछ कारों की चाबी में ज्यादा फीचर्स होते हैं जबकि कुछ कारें की चाबी में कम फीचर्स आते हैं. चाबी में कम फीचर्स देकर भी कंपनियां कॉस्ट कटिंग करती हैं. ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं.