सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली और घोटालों को लेकर सवाल उठते हैं ऐसे में वराछा बैंक उदाहरण है

सिटी के तौर पर चर्चित सूरत से शायद ही कोई अपरिचित होगा 90 के दशक में भी यहां हीरे का कारोबार खासा था कारखाना का मालिक दलाल और व्यापारी को जोखिम साथ ही रखना पड़ता था ऐसे ही एक व्यापारी है कांजीभाई भालड़ा जोखिम वाले सामान की सुरक्षा के लिए उन्होंने बैंक में लॉकर लेना चाहा इसके लिए खाता होना जरूरी है इसके लिए 2 से 3 महीने देन के चक्कर लगाए पर खाता नहीं खुल सका पर समाजसेवी मावजीभाई मवानी ने बैंक मैनेजर को अनुरोध किया तो उन्होंने रुचि दिखाई पर उस दिन भी शाम 4:00 बजे तक शाखा में ही बैठने का भी खाता नहीं खुल पाया अगले दिन फिर वही इंतजार यह बात 1993 की है कांजीभाई बताते हैं बैंक में बैठे-बैठे ख्याल आया कि खाता खुलवाने जैसी सामान्य प्रक्रिया में भी लोगों को इतनी मुश्किल होती है घंटों समय बर्बाद हम पड़ता है तो क्यों ना ऐसा भैंस शुरू करें जिसमें किसी को भी काम के लिए 5 मिनट से ज्यादा इंतजार ना करना पड़े बस तभी दी वराछा को ऑपरेटिव बैंक के लिए काम शुरू हो गया 1995 में इसने काम काम भी शुरू कर दिया ढाई दशक से यह बैंक सेवा में जुटा हुआ है और गुजरात के टॉप टेन बैंकों में शामिल है आज जहां सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली और घोटालों को लेकर सवाल उठते हैं ऐसे में वराछा बैंक उदाहरण है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *