भारत का जोरावर, वजन कम रखने के पीछे ये वजह आई सामने,

शुरुआती ऑटोमोटिव ट्रायल्स में जोरावर ने अलग-अलग रेंज के टारगेट्स पर बिल्कुल सटीक निशाने साधे। इसके बाद लद्दाख के माइनस जीरो डिग्री तापमान में भी इसके ट्रायल किए जाएंगे। जोरावर के ट्रायल्स 2026 तक चलेंगे। जिसके बाद उसका प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा। जोरावर को डीआरडीओ और एलएंडटी ने ढाई साल की मेहनत के बाद तैयार किया है। जोरावर के साथ सबसे खास बात यह है कि यह टी-72 या टी-90 जितना भारी नहीं है। चीन के टाइप 15 लाइट टैंक की तुलना में बेहद हल्का है और इसका वजन मात्र 25 टन है। जबकि चीन के टैंक का वजन 35 टन है। सूत्रों ने बताया कि चीनी टैंक के मुकाबले इसका वजन कम रखने के पीछे कई वजह हैं। सूत्रों ने बताया कि पूर्वी लद्दाख के एलएसी से सटे कई इलाकों में रेत औऱ मिट्टी के टीले हैं। जमीन रेतीली है। तो कई जगह बर्फ से लदे हुए हैं। इन जगहों छोटी-छोटी गाड़ियां का फंसना आम है। वहीं टैंकों का वजन ज्यादा होता है और ऐसी जगहों पर उनके फंसने की संभावना बढ़ जाती है। हाई ग्राउंड प्रेशर वाली जगहों पर टैंक फंस सकते हैं, जिससे उनकी रफ्तार कम जाती है। वहीं जोरावर का वजन कम रखने से जमीनी दबाव कम हो जाता है। जिससे यह बर्फ से ढके पहाड़ों और चट्टानी इलाकों, सैंड ड्यूंस, दलदली जगहों पर आसानी से चल सकता है। सूत्रों का कहना है कि जोरावर टैंक में एक खास ट्रैक सिस्टम लगाया गया है।

शुरुआत में भारतीय सेना को 59 जोरावर टैंक दिए जाएंगे। बाद में 295 अतिरिक्त टैंक खरीदे जाएंगे। जोरावर में 105-मिमी राइफल गन और मल्टी-रेंजिंग सेंसर  से लैस है। इसमें एक बेल रिमोट वेपन स्टेशन और सफरन पासेओ ऑप्टिक्स के साथ-साथ दो एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलभी शामिल हैं। टैंक में एक नई लाइट वेट राइफल एक एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम और एड-ऑन मॉड्यूलर आर्मर ब्लॉक भी है। इसमें कैमरे भी लगाए गए हैं। जोरावर टैंक को सेना के प्रोजेक्ट जोरावर के तहत डेवलप किया गया है। वहीं, इन्हें चलाने के लिए सिर्फ तीन लोगों की जरूरत होगी। सेना ने चरणों में लगभग 354 हल्के टैंक हासिल करने की योजना बनाई है, जिसके बाद इसकी लगभग छह रेजिमेंट बनाई जाएंगी।सूत्रों ने बताया कि रबर ट्रैक का एक बड़ा फायदा यह भी है कि यह स्टील ट्रैक के मुकाबले कम शोर करता है। शोर में लगभग 13 डेसिबल तक की कमी आती है, जिससे मूवमेंट के दौरान दुश्मन को टैंक से होने वाले शोर का पता नहीं चलता। वहीं अंदर बैठा हुए चालक दल के सदस्यों को भी शोर में 6 डेसिबल की कमी आती है, जिससे उन्हें काम करने में आसानी होती और शोर से उत्पन्न होने वाला तनाव कम होता है। 

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