Types of Kisses: महर्षि वात्स्यायन के लिखे इस ग्रंथ कामसूत्रम में संक्रांतक, संपुटक, सम और तिर्यक जैसे शब्दों का जिक्र हुआ है. ये सभी अलग-अलग प्रकार के चुंबन हैं, जिनको ये नाम दिए गए हैं. यह ग्रंथ पूरी दुनिया में मशहूर है. साल 1883 में यह अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था.
Reported By Dy. Editor, SACHIN RAI, 8982355810
Relationship: कामसूत्र को आज से 2000 साल पहले ऋषि वात्स्यायन ने लिखा था. इस प्राचीन संस्कृत साहित्य में फ्लाइंग किस जैसे चुंबन तक की बात लिखी है. चुंबन कितने प्रकार के होते हैं और उनके नाम क्या हैं, ये भी इस साहित्य में लिखा है. इसके अलावा स्त्री पुरुष के संबंधों में चुंबन को स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया गया है. कामसूत्रम में 250 प्रकार के चुंबनों के बारे का जिक्र है.
महर्षि वात्स्यायन के लिखे इस ग्रंथ कामसूत्रम में संक्रांतक, संपुटक, सम और तिर्यक जैसे शब्दों का जिक्र हुआ है. ये सभी अलग-अलग प्रकार के चुंबन हैं, जिनको ये नाम दिए गए हैं. यह ग्रंथ पूरी दुनिया में मशहूर है. साल 1883 में यह अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था. महर्षि वात्स्यायन के लिखे कामसूत्रम में चुंबन पर एक पूरा चैप्टर है. इसमें किस और इसको करने के तरीके के बारे में तमाम जानकारी मौजूद है. इसको अंगों, भावना, चुंबन की स्थिति की विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है. इनको अवपीड़ित, उत्तर चुंबितक, संपुटक, मृदु, पीड़ित, अंचित, चलितक, उद्भांत, अवलीढ़ पीड़ितक, तिर्यक, सम, प्रतिबोधक जैसे नाम दिए गए हैं.
इसमें मृदु पुरुष या स्त्री की आंखों और माथे पर प्यार भरी किस, प्रतिबोधित बिस्तर पर सोती स्त्री के गालों पर प्यार भरा चुंबन के बारे में बताया गया है. इसके अलावा घट्टितक, स्फुतरिकत, पादांगुष्ठ, संक्रातक चुंबन और कामसूत्रम छाया चुंबन जैसे प्रकार भी हैं. इस बात का भी जिक्र है कि इसका कोई तय फॉर्मूला नहीं है.
सिर्फ ऋषि वात्स्यायन के कामसूत्र ही नहीं बल्कि कई अन्य किताबें भी हैं, जिनमें चुंबन और प्यार के तरीकों के बारे में लिखा है. इनमें चारायण, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनर्दीय, गोणिकापुत्र, कुचुमार, औद्दालकि, नंदी, बाभ्रव्य, दत्तक का नाम आता है. इसका मतलब यह है कि इस सब्जेक्ट पर विचारकों और ऋषि-मुनियों ने पहले ही लिख दिया है. ऐसे ग्रंथों का ज्यादातर हिस्सा मनोविज्ञान पर आधारित है.
अगर चुंबन और प्रेम की बात करें तो कालिदास के नाटकों और काव्यों में भी इसका जिक्र मिलता है. कामसूत्र के बारे में रीतिकाल के कवियों ने भी बताया है. इसके अलावा रतिमंजरी में गीत-गोविंद के रचयिता जयदेव ने कामसूत्र का सार बताया है.