मैं आमिर या काजोल जैसे ऐक्टर्स को लूं तो मुझे उम्मीद है कि वे लिखे गए किरदार से भी अच्छा करेंगे: रेवती

‘सलाम वेंकी’ की डायरेक्टर रेवती ने कहा- अगर मैं आमिर या काजोल जैसे ऐक्टर्स को कास्ट करती हूं, तो मुझे उम्मीद रहती है कि जो किरदार कागज पर है, वे उससे भी अच्छा करेंगे। इसीलिए, मैंने उन्हें कास्ट किया और दोनों ने अपने कमाल का अनुभव किरदार में डाला है।

Salaam Venky Director Revathy Interview
रेवती का इंटरव्यू

पर्दे पर कई यादगार किरदार निभाने वालीं ऐक्ट्रेस रेवती ने बतौर निर्देशक ‘मित्र माय फ्रेंड’ और ‘फिर मिलेंगे’ जैसी संवेदनशील फिल्में दी हैं। अब 18 साल के बाद उन्होंने फिर फिल्म ‘सलाम वेंकी’ के निर्देशन की बागडोर संभाली है। काजोल और विशाल जेठवा की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म एक बीमार बेटे और उसकी मां के रिश्ते और जिंदादिली पर आधारित है। ऐसे में, हमने रेवती से फिल्म, निर्देशन, पैन इंडिया फिल्मों के चलन, लिंगभेद जैसे मुद्दों पर खास बातचीत की।

सुना है ‘सलाम वेंकी’ की कहानी आपके पास काफी समय से थी, लेकिन उसे अडॉप्ट करने में आपको वक्त लगा। ऐसी क्या चुनौती थी, इसे पर्दे पर उतारने में? दूसरे, आपको क्यों लगा कि ये कहानी दर्शकों तक पहुंचाई ही जानी चाहिए?
असल में क्या हुआ था कि ये किताब द लास्ट हुर्रा, जिस पर फिल्म बनी है, वो मेरे पास पहले 2007 में आई थी। मैंने 2-3 साल इस पर काम किया। एक निर्माता भी थे, मगर जो कहानी थी वो ठीक से नहीं बन रही थी, कास्टिंग और प्रॉडक्शन ठीक से नहीं हो रहा था। मतलब जैसा मैं चाहती थी, वो बात बन नहीं रही थी तो मैंने कहा कि अभी इसको नहीं करते हैं, क्योंकि फिल्म आपको ठीक से बनानी होती है, इसके लिए आपको पैसे भी चाहिए होते हैं। इसलिए, तब मैंने इसे छोड़ दिया। फिर ये किताब 2018 में वापस मेरे पास आई, तब मैंने वापस काम शुरू किया। मुझे लगता है कि ये कहानी इसलिए अहम है, क्योंकि हम सबको लगता है कि हमारी दिक्कत सबसे बड़ी है। किसी और को ऐसी दिक्कत नहीं है, पर हर इंसान की कोई न कोई मुश्किल होती है, इसी का नाम जिंदगी है। इस कहानी के नायक वेंकटेश ने मुश्किलों के बावजूद अपनी जिदंगी को जैसे जिया, वो मुझे कमाल का लगा। उन्होंने कभी जिंदगी कठिन है, मैं जीना नहीं चाहता का रोना नहीं रोया, तो मुझे लगा कि ये कहानी, आज के समय में खास तौर पर बहुत रेलवेंट है, क्योंकि सभी किसी न किसी तनाव से गुजर रहे हैं। शायद इसी वजह से ये कहानी पहले नहीं बनी, अब बनी।

बतौर डायरेक्टर आपकी दोनों फिल्में मित्र माय फ्रेंड और फिर मिलेंगे यादगार रही हैं। इसके बावजूद डायरेक्शन से इतने अर्से तक दूरी की क्या वजह रही?
वजह असल में कुछ नहीं थी। कभी-कभी जिंदगी में काफी चीजें यहां-वहां उलट-पुलट जाती हैं। मैं उन्हीं चीजों में थोड़ी उलझ गई। इसीलिए इतने साल बीत गए, लेकिन सलाम वेंकी डायरेक्ट करते वक्त एक बार मुझे फिर अहसास हुआ कि मैं डायरेक्ट करना बहुत पसंद करती हूं। मेरी कोशिश बस यही रहती है कि मेरी फिल्म देखने के बाद आप उसके बारे में सोचें, बातें करें, वही मेरी जीत है।

फिर मिलेंगे एचआईवी जागरूकता पर थी, सलाम वेंकी में वेंकी मस्कुलर ड्रिस्ट्रॉफी से जूझता है। आपके हिसाब से ऐसी फिल्में सजग और संवेदनशील दर्शक वर्ग क्रिएट करने में कितनी मददगार होती हैं?
देखिए, मैं आम तौर पर एक कहानी लेती हूं और वो कहानी सुनाती हूं, लेकिन उसमें ऐसा एक पहलू होता है जो ऑडियंस में कुछ लोगों के दिलों को छू जाए, पर कोई मेसेज देना है, मैं ये सोचकर फिल्म नहीं बनाती। एक कहानी बनाती हूं, जिसके अंदर कुछ न कुछ होता है, जिसे देखकर आप उसके बारे में थोड़ा सोचें। मैं ये नहीं चाहती हूं कि आप उसके बारे में सोचकर दुखी महसूस करें। मैं चाहती हूं कि आप उसके बारे में खुश महसूस करें। अच्छा फील करें। किसी की कहानी देखकर दिल भर जाना चाहिए। आपको ये लगना चाहिए कि चाहे जितनी भी मुश्किलें हों, पर जीना चाहिए। यही सलाम वेंकी में भी है।

फिल्म में काजोल और आमिर जैसे अनुभव ऐक्टर्स को डायरेक्ट करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा? क्या उन्होंने भी कुछ सुझाव दिए?
बिल्कुल दिए थे। यही अच्छाई होती है कि अगर मैं आमिर या काजोल जैसे ऐक्टर्स को कास्ट करती हूं, तो मुझे उम्मीद रहती है कि जो किरदार कागज पर है, वे उससे भी अच्छा करेंगे। इसीलिए, मैंने उन्हें कास्ट किया और दोनों ने अपने कमाल का अनुभव किरदार में डाला है। न सिर्फ आमिर और काजोल, बल्कि राहुल बोस, राजीव खंडेलवाल, प्रकाश राज सभी बहुत अनुभवी हैं और सभी ने मेरी फिल्म को और बेहतर बनाया है।

आप बहुत सालों से साउथ इंडियन और हिंदी दोनों भाषा की फिल्में करती रही हैं। इन दिनों जो पैन इंडिया फिल्मों का दौर शुरू हुआ है, उसे कैसे देखती हैं?
ये अच्छा है, लेकिन ये मेरे लिए ये नया नहीं है। मैं तो पता नहीं कबसे सब जगह फिल्में कर रही हूं, तो मेरे हिसाब से ये कोई नई चीज नहीं है। ऐसा पहले भी था, अब बस इस पर चर्चा बहुत ज्यादा होने लगी है।

इन दिनों थिएटर्स में दर्शकों को लाना भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। लोग सिनेमाघरों में पहले की तरह नहीं आ रहे हैं। इस बात को लेकर कोई चिंता है?
इसीलिए तो हम आप सबसे बात कर रहे हैं और ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह एक ऐसी फैमिली फिल्म है, जिससे हमारी जिंदगी निश्चित तौर पर बदल सकती है। जब फिल्म देखने के बाद आप वापस जाएंगे तो इसके बारे में जरूर सोचेंगे और आपका आपने जीवन को थोड़ा और बेहतर करने का मन करेगा।

आपकी फिल्मों की नायिकाएं हमेशा बहुत मजबूत रही हैं। आम तौर पर औरतें सबसे मजबूत मानी भी जाती है, फिर भी हम अपने घर-समाज में काफी लिंगभेद और गैर-बराबरी देखते हैं। आपको ऐसे लिंगभेद से जुड़ी चीजें कितनी परेशान करती हैं?
मैं एक आर्मी बैकग्राउंड में पली-बढ़ी हूं, तो निजी तौर पर मुझे कभी किसी तरह की गैर बराबरी नहीं सहनी पड़ी है। मैंने पर्सनली कभी ये नहीं झेला है, लेकिन मैं जानती हूं कि यह एक (कड़वी) सचाई है। मैं ये सभी जगह देखती हूं, वो चाहे फिल्म इंडस्ट्री हो या बाहर हो या फिर घरों में। इसीलिए, मेरे लिए यह जरूरी है कि मैं ऐसे करैक्टर दिखाऊं, जो स्ट्रॉन्ग हों। मैं चाहती हूं कि मेरी नायिकाएं मजबूत हों। चूंकि, मैं अपनी जिंदगी में बहुत स्ट्रॉन्ग हूं, तो वो मजबूती मेरे किरदारों में भी आ जाती है। रही बात इन चीजों के परेशान करने की, तो ये गैर बराबरी बिल्कुल परेशान करती है। बहुत ज्यादा परेशान करती है, इसीलिए हमने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में एक विमन ग्रुप वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव बनाया, जो सेक्सुअल हरैसमेंट को, जेंडर से जुड़े भेदभाव को गंभीरता से देखे और मदद करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *