आवाज और चेेहरे से ही हो जायेगी आरोपी की पहचान

प्रदेश की सुरक्षा और इंटेलिजेंस को हाईटेक प्लेटफार्म मुहैया कराने की कवायद शुरू हो गई है…

परिवारवाद से किनारा करते दिख रही है पार्टी ने तय किया

भाजपा मैहर के टिकट के बाद पार्षदों के टिकट में भी परिवारवाद से किनारा करते दिख…

लेकिन फुटबॉल में ऐसा नहीं है

क्रिकेट में भले ही भारत और अफगानिस्तान के खिलाड़ियों के बीच संबंध अच्छे हैं लेकिन फुटबॉल…

कांग्रेस प्रत्‍याशियों की घोषणा 15 तक

पार्षद के टिकटों की मारामारी के बीच कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने साफ कर दिया है…

टिकट तय नहीं कर सकी अभी तक भाजपा

भाजपा बड़े शहरों में अभी तक महापौर के टिकट तय नहीं कर सकी है पार्टी को…

पर्यावरण को नुकसान नदियों से बेतहाशा रेत खनन

नदियों से बेतहाशा रेत खनन पर्यावरण को नुकसान और रेत की कमी को देखते हुए महाराष्ट्र…

13/06/2022 आज के प्रमुख हिन्‍दी अखबारों की प्रमुख खबरें

13/06/2022 आज के प्रमुख हिन्‍दी अखबारों की प्रमुख खबरें

उद्योगपति टाटा को डॉक्‍टरेट की उपाधि

प्रसिद्ध उद्योगपति और टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा को मुंबई की एक एचएसएनसी यूनिवर्सिटी डॉक्‍टरेट…

खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा गोटुल लायब्रेरी।

सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता है।

हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है, ये कुदरती चीजे हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता एवं बहिष्कार को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उन्हें उचित या ‘न्यायसंगत’ भी मानते हैं। शायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। ऐसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहाँ नहीं होते जहाँ वे आज हैं।

गौर से देखने पर हम यह पाते हैं कि जो लोग समाज के सबसे निम्न स्तर के हैं, वही सबसे ज्यादा परिश्रम करते हैं। एक दक्षिण अमेरिकी कहावत है, “यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज़ होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते!” संपूर्ण विश्व में पत्थर तोड़ना, खुदाई करना, भारी वजन उठाना, रिक्शा या ठेला खींचना जैसे कमरतोड़ काम गरीब लोग ही करते हैं। फिर भी वे अपना जीवन शायद ही सुधार पाते हैं। ऐसा कितनी बार होता है कि कोई गरीब मज़दूर एक छोटा-मोटा ठेकेदार भी बन पाया हो? ऐसा तो केवल फ़िल्मों में ही होता है कि एक सड़क पर पलने वाला बच्चा उद्योगपति बन सकता है। परंतु फ़िल्मों में भी अधिकतर यही दिखाया जाता है कि ऐसे नाटकीय उत्थान के लिए गैर कानूनी या अनैतिक तरीका जरूरी है।

आदिवासी भाषाएँ, संस्कृति, जीवन मूल्य, सोच, दर्शन और परंपराएँ इस देश की मौलिक विरासत है। इनकी विलुप्ति सम्पूर्ण आदिवासी जीवन धारा की मृत्यृ होगी। इसे बचाने के लिए अपनी सोच और चिंतन तथा जीवन और समाज में इसे जगह देना होगा। विशाल भारतीय समाज में विविधता और बहुलता बनी रहे इसके लिए तो खुद आदिवासी समाज को ही आदिवासीयत के संरक्षण के लिए नयी सोच के साथ आगे आना होगा। बाहरी वर्चस्ववाद का मुकाबला अपनी भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं, सोच-विचार, विश्वास, मूल्य, कल्पना-परिकल्पना, आदर्श, व्यवहार को बचा कर ही किया जा सकता है।

गोंड कलाकृतियाँ जनजाति के स्वभाव और रहन सहन की खुली किताब हैं- श्री राम सिंह उर्वेती

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल में करो और सीखो संग्रहालय शैक्षणिक कार्यक्रम के तहत गोंड…