राजस्थान में बसने वाली आदिवासी जनजाति सहरिया अब तक अपनी बदहाली के लिए ही सुर्खियों में आती रही है 1998 में पूरे देश में सहरिया आदिवासियों के भूख की वजह से घास की रोटी खाने की खबर चर्चित हुई थी उस दौरान शहरी क्षेत्र में पड़े अकाल की वजह से जनजाति के लोगों की मौत का खामियाजा कांग्रेस को अपनी सत्ता गवा कर चुकाना पढ़ा था मगर पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर जीवन यापन करने वाली जनजाति की स्थिति अब बदल रही है राज्य के बारां और झालावाड़ जिलों में आदिवासी समूह प्रकृति को ही आय का जरिया बना लिया है बारां जिले की बीची ग्राम पंचायत के घेंसुआ गांव निवासी मथुरालाल सहरिया बताते हैं कि आंवला अमरुद अनार आम और जामुन के बागवानी से सालाना रू600000 तक आय हो रही है बीलखेड़ा डांग पंचायत की चौराखाड़ी गांव निवासी शेषराम की पत्नी वीझाबाई ने बताया कि उन्होंने काम जमीन में टमाटर प्याज भिंडी पालक की खेती की है जिससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है शाहाबाद ब्लॉक केमटियाखारा गांव निवासी सोनीराम ने बताया कि उन्होंने दो बीघा टमाटर मिर्ची भिंडी कद्दू आलू बैगन की खेती कर मुनाफा कमाना शुरू किया और परिवार की इससे दशा निरंतर सुधरती चली गई