दलितो के मंदिर मे प्रवेश की बाधायेे हटाने की कोशिश, रोक के चलन की समाप्ति के लिए सामाजिक हस्तक्षेप आवश्यक है

केरल के कसरगोड जि‍ले के एक छोटे से गांव में दलित समुदाय के कृष्‍ण मोहन ने तीन कर्ष पहले जो किया था वह उनके समुदाय से आने वाला कोई व्‍यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था। मोहन ने कर्नाटक की सीता से लगी एनताकाजे पंचायत में जटाधारी ‘देवस्‍थानम’ मंदिर के वार्षिक उत्‍सव के दौराल वहां प्रवेश किया था और मंदिर की 18 सीढ़ि‍यां चढ़ी थीं। यह अधिकार सदियों से गांव के ऊंची कहीं जाने वाली जाति के लोगों के पास ही था

पीकेएस के जिला सचिव प्रदीप ने कहा कि सबसे बुरी बात है कि मंदिर में प्रसाद अलग-अलग बाटा जाता है उन्होंने कहा कि मंदिर के अधिकारी प्रसादम बांटने के लिए दलितों को जाति का नाम लेकर बुलाते हैं और उन्हें मंदिर के पास प्रसाद मैं मिले भोजन को खाने की अनुमति नहीं होती जबकि अन्य जाति के लोग ऐसा कर सकते हैं पीकेएस सभी श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश समेत तीन मांगे उठाई है इनमें मंदिर में सीधे दान देने की अनुमति और प्रसाद बांटने समय जाति का नाम लेने की परंपरा बंद करना शामिल है पीके के रुख पर मंदिर अधिकारियों ने टिप्पणी करने से मना कर दिया

इस घटना पर बहुत हंगामा मजा और मामले में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा अतः निर्णय हुआ कि दलित समुदाय के लोगों को मंदिर में जाने की इजाजत होगी इसी दौरान मंदिर प्रशासन ने दावा किया कि मंदिर की चाबियां गुम हो गई है और मंदिर को गांव में सभी लोगों के लिए बंद कर दिया गया

कुछ दिन पहले दलित समुदाय के कुछ लोगों ने पट्टीकाजाति क्षमा समिति के नेतृत्व में मंदिर में प्रवेश किया और प्राचीन परंपरा के खत में की घोषणा की ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश घोषणा क्षेत्र में 1947 में प्रभावी हुई थी जिसमें मंदिरों में अवर्ण लोगों के प्रवेश पर पाबंदी को खत्म किया था लेकिन के बावजूद यह पुरातनपंथी परंपरा जारी रही बताया कि समिति इस भेदभाव को खत्म करना चाहती है और पंडित गर्व कल्याण मंत्री के राधा कृष्ण ने कहा कि इस तरह के चलन को खत्म करने के लिए केवल सरकारी आदेश काफी नहीं होगा ऐसे चलन की समाप्ति के लिए सामाजिक हस्तक्षेप आवश्यक है

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