राहुल गांधी के पास विपक्ष के नेता के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाकर मोदी के स्वाभाविक विकल्प के रूप में उभरने का अच्छा मौका था। दुर्भाग्य से कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए, उन्हें एक विचारशील और युवा नेता के रूप में पेश करने के लगातार प्रयासों के बावजूद ऐसा नहीं हुआ। एक संभावित कारण राहुल का अति उत्साह हो सकता है। उन्हें विचार करना चाहिए कि क्या संविधान की कॉपी लहराना और मोदी पर सांठगांठ का आरोप लगाना हर मौके के लिए उपयुक्त विषय हैं। शायद उन्हें 2014 के चुनावों से पहले दिए गए अपने एक खराब इंटरव्यू से सबक लेना चाहिए, जब उनके सभी सवालों के जवाब महिला सशक्तिकरण के इर्द-गिर्द घूमते दिख रहे थे।