भारत के राजनीतिक दलों में नेताओं के चुनाव के लिए कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है

भारत के लोकतंत्र में एक बहुत बड़ी कमी है। राजनीतिक दलों के नेताओं का चुनाव कैसे हो, इसका कोई पक्का और पारदर्शी तरीका नहीं है। लगभग सभी पार्टियों में ‘हाई कमान’ का बोलबाला है। यह जमीनी स्तर की आवाज को दबाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। लोकसभा चुनाव के नतीजों को सरकार में अविश्वास के तौर पर पेश करने की कोशिश की। लेकिन दोनों गठबंधनों के प्रमुख दलों के वोटों में बड़ा अंतर था। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। आम लोगों को लगता है कि ‘INDIA’ मोदी को चुनौती देने वाला कोई मजबूत चेहरा पेश नहीं कर पाया। वंशवाद की परंपरा भी इसमें घुल-मिल गई है। इस वजह से लोकतंत्र अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पा रहा है। विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ के नेतृत्व को लेकर उभरती उलझनें इसका ताजा उदाहरण हैं।

राहुल गांधी के पास विपक्ष के नेता के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाकर मोदी के स्वाभाविक विकल्प के रूप में उभरने का अच्छा मौका था। दुर्भाग्य से कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए, उन्हें एक विचारशील और युवा नेता के रूप में पेश करने के लगातार प्रयासों के बावजूद ऐसा नहीं हुआ। एक संभावित कारण राहुल का अति उत्साह हो सकता है। उन्हें विचार करना चाहिए कि क्या संविधान की कॉपी लहराना और मोदी पर सांठगांठ का आरोप लगाना हर मौके के लिए उपयुक्त विषय हैं। शायद उन्हें 2014 के चुनावों से पहले दिए गए अपने एक खराब इंटरव्यू से सबक लेना चाहिए, जब उनके सभी सवालों के जवाब महिला सशक्तिकरण के इर्द-गिर्द घूमते दिख रहे थे।

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