तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच शुरू हुआ संघर्ष, बरादर और हिब्तुल्लाह अखुंदजादा आखिर है कहां ?

हक्कानी नेटवर्क को तालिबान का खूंखार दल माना जाता है। इस दल का मानना है कि उसके लड़ाकों के कारण अफगानिस्तान में तालिबान को जीत मिली। बरादर का मानना है कि उनकी कूटनीतिक चालों के कारण ऐसा हुआ। 

अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार का गठन हो गया है, लेकिन स्थाई सरकार को लेकर अभी भी गहमागहमी बनी हुई है। अब खबर आ रही है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच क्रेडिट को लेकर संघर्ष शुरू हो गया है, जिसके बाद मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने काबुल छोड़ दिया है। 

मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाए गए थे लेकिन कुछ दिन पहले हक्कानी नेटवर्क और उनके बीच झड़प भी हुई थी, जिसमें बरादर के गोली लगने की खबरें सामने आई थीं।

तालिबान में मुल्‍ला बरादर और हक्‍कानी नेटवर्क के बीच श्रेय लेने की जंंग

अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद अमेरिका का मोस्ट वांटेड आतंकवादी खलील हक्कानी को काबुल की सड़कों पर देखा गया। खलील हक्कानी पर अमेरिका ने 5 मिलियन डॉलर यानी करीब 37 करोड़ 15 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि खलील ने तलिबानों के साथ हाथ मिला लिया है। 

उल्‍लेखनीय है कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुल्‍ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क के नेता खलील उर-रहमान के बीच कहा सुनी हुई थी । इसके बाद दोनों के समर्थक आपस में भिड़ गए थे । दरअसल, हक्कानी नेटवर्क का मानना है कि उसके आक्रामक रवैये और लड़ाकों के कारण ही अफगानिस्तान की सत्ता मिली है। वहीं मुल्‍ला बरादर का मानना है कि उनकी कूटनीति के कारण ही तालिबान को जीत हासिल हुई है। ऐसे में दोनों गुट जीत का श्रेय लेने के लिए भिड़ गए हैं। 

मीडिया रिपेार्ट में कहा है कि बरादर काबुल छोड़कर कंधार चले गए हैं। पहले एक प्रवक्ता का बयान आया कि बरादर कंधार सुप्रीम नेता से मिलने गए हैं। बाद में बताया कि वह वहीं रुक गए हैं।

तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच सरकार में हिस्सेदारी का भी विवाद है। दरअसल, हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान की सरकार में प्रमुख भूमिका चाहता है, लेकिन तालिबान के नेता ऐसा नहीं चाहते। इसको लेकर भी दोनों के बीच विवाद है। पिछले दिनों सरकार गठन के दौरान ही दोनों गुटों में गोली भी चली थी, जिसमें बरादर के घायल होने की खबरें सामने आई थीं। 

इस बीच ताजा खबर निकल के आ रही है कि मुल्‍ला बरादर ने अमेरिका को बताया है कि तालिबान दोहा समझाैैैते का पालन नही कर रहा है । मुल्‍ला बरादर के विषय में जिंदा होने और मारे जाने की खबर भी सोशल मीडिया और मीडिया में चल रही है इससे संदेह होता है कि मुल्‍ला बरादर आखिर है कहां, क्‍योकि वह पिछले एक सप्‍ताह से किसी भी बैठक आदि में शामिल नही दिखे है जिससे उनके गायब होने की अथवा पाकिस्‍तान द्वारा उन्‍हें ले जाने की जानकारी मिल रही है । वही हिब्तुल्लाह अखुंदजादा सुप्रीम लीडर भी अफगानिस्‍तान में कब्‍जे के बाद कही दिखाई नही दे रहे है अर्थात वह तालिबान की किसी भी गतिविधि में प्रत्‍यक्ष रूप से वीडियो एवं फोटो में नही आये है इससे यह पता लगता है कि तालिबान के यह दोनो नेता आखिर है कहां ?

जान बचाने के लिए, महिला फुटबॉलरों ने छोड़ा अफगानिस्तान

तालिबानी नेताओं ने कुछ दिनों पहले ही साफ कहा था कि अफगानिस्तान में महिलाओं को किसी भी तरह की खेल-कूद या मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा.

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही देश में खेलों की स्थिति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई. पुरुष क्रिकेट टीम को समर्थन की बात तो तालिबानी खेमें से आती रही है, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता देश की महिला खिलाड़ियों को लेकर है. तालिबानी नेताओं ने पहले ही देश में महिलाओं को खेलने की इजाजत देने से इनकार करते हुए इसे इस्लाम के खिलाफ बताया है. ऐसे में देश में महिला खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में है. इस बीच 32 महिला फुटबॉलरों ने देश छोड़ दिया है और पाकिस्तान में शरण ली है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन खिलाड़ियों और उनके परिवारों को तालिबान की ओर से धमकियों का सामना करना पड़ रहा था.

ब्रिटेन के एनजीओ ‘फुटबॉल फॉर पीस’ ने पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तान फुटबॉल फेडरेशन की मदद ली

इन खिलाड़ियों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए ब्रिटेन के एनजीओ ‘फुटबॉल फॉर पीस’ ने पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तान फुटबॉल फेडरेशन की मदद ली, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान लाया गया. इन सभी खिलाड़ियों को जल्द ही पेशावर से लाहौर पहुंचाया जाएगा, जहां उन्हें पाकिस्तान फुटबॉल फेडरेशन के मुख्यालय में रखा जाएगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक महिला खिलाड़ियों को फुटबॉल खेलने के लिये तालिबान से धमकियों का सामना करना पड़ रहा था और देश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही ये खिलाड़ी छुपती फिर रही थीं.

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