तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान मुस्लिम देशों का खलीफा बनना चाहते हैं,

 सीरिया में नया मोर्चा खुल गया है। सीरिया में विद्रोही बलों ने देश के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर लगभग कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति बशर अल-असद की राष्ट्रीय सेना को शहर के अधिकांश हिस्सों से पीछे हट गई है। सीरिया की जंग शिया और सुन्नी की जंग भी है। शिया मुल्क ईरान सीरियाई राष्ट्रपति असद का सबसे बड़ा समर्थक बनकर खड़ा रहा है। ईरान समर्थित हिजबुल्लाह के हजारों लड़ाके असद की तरफ से लड़ते रहे हैं, लेकिन लेबनान में इजरायली हमले ने हिजबुल्लाह की कमर तोड़ दी है। इसके बाद सीरियाई विद्रोहियों ने एक बार फिर मोर्चा खोल दिया है। 

इजरायल के साथ अप्रत्यक्ष युद्ध में फंसकर ईरान के कमजोर होने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति को सुन्नी दुनिया का नेता बनने का मौका मिल गया है। यही वजह है कि वे विद्रोही गुटों को समर्थन दे रहे हैं। अगर सीरिया की सत्ता शिया राष्ट्रपति के हाथों से हटकर सुन्नी विद्रोहियों के हाथ में जाती है, तो सुन्नी दुनिया में तुर्की के एर्दोगान का रुतबा बढ़ जाएगा। लेकिन यह इतना आसान नहीं होने वाला है। शिया ईरान असद रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीरिया में असद के शासन को बचाने की हर संभव कोशिश करेगा। इसके चलते एक नए युद्ध का खतरा बढ़ता जा रहा है, जिसमें तुर्की भी उतर सकता है। ऐसे में आइए एर्दोगान की सेना की ताकत जान लेते हैं।

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