राजनीति से परे भगवान श्री राम के नाम पर देश की राजनीतिक पार्टियों ने खूब राजनीतिक चांदी काटी। कथित अंधभक्त कहते थे जो राम को लाए हैं हम उनको लायेंगे। जो स्वयंभू हैं, अवतारी हैं उन्हें भला कौन ला सकता है। लेकिन यहां खेल सांप सीढ़ी की तरह हो गया जहां खेल शून्य से शिखर (सीढ़ी) पर चढ़कर निन्नयानवें तक पहुंच जाता है। वैसे ही भाजपा अयोध्या में निन्नयानवें से उतरकर शून्य पर पहुंच गई, जैसे बगल में बैठे सांप ने उसे डस लिया हो। यह श्री राम की महिमा है या भाजपा का बड़बोलापन। राम के नाम पर भाजपा ने खूब महिमा मंडित किया गया, अयोध्या में बड़े-बड़े आयोजन किए गये, केवल इसी दाव पेंच में की हम राम के नाम की राजनीति से देश दुनिया में डंका बजाएंगे, लेकिन राम तो राम है जो मर्यादा पुरुषोत्तम है और जो मर्यादाओं का उल्लंघन करता है प्रभु श्री राम उसका साथ कैसे दे सकते हैं!
श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या से लेकर, राम पथ गमन चित्रकूट, बांदा, सीतापुर, बस्ती, राम की पवित्र स्थली सुलतानपुर, बनवास के समय राम की विश्राम स्थली रामटेक, नासिक जहां लक्ष्मण जी ने सर्पनखा की नाक काटी और हनुमान भूमि कोपल ही नहीं समुद्र पार करने के लिए त्रिलोकीनाथ भगवान शंकर के शिवलिंग की स्थापना कर रामसेतु निर्माण कर रामेश्वरम जैसे तीर्थ स्थलों से भाजपा की बड़ी पराजय से पूरी भाजपा स्तब्ध रह गयी। क्या अब भी राम के नाम की राजनैतिक रोटियां सैंकना राजनैतिक पार्टियों के लिए एक करारा सबक नहीं है? अयोध्या से लेकर, चित्रकूट हो या सीतापुरी हो जितने भी धार्मिक स्थान हैं वहां से उसे पराजय का सामना करना पड़ा आखिर ऐसी क्या महिमा थी राम की क्या यह बीजेपी का अहंकार था या फिर जनता का आक्रोश।
राम से बात नहीं बनी तो जो कभी भारतीय जनता पार्टी को साथ न देने की बात करते थे उन्हें बहला-फुसलाकर भाजपा सरकार बनाने सफल तो हो गई, लेकिन तीन पहिया की गाड़ी को सपोर्ट कर रहे दो पहिये कब गुलाटी मार जाएं और एक पहिया कब धड़ाम से गिर जाये यह संदेह जनता के मन में अभी से कौंधनें लगा है। आखिर सवाल जनता का है जिसे इस गाड़ी में लंबा सफर करना है या फिर तनिक दूर जाकर उसे उतरना है।
इतना ही नहीं देश के बड़े–बड़े नामी–गिरामी मीडिया चेनलों के एक्जिट पोल, भविष्य वक्ताओं, सट्टा बाजार और सत्ता–विपक्ष के राजनीतिक ज्ञानियों, के ज्ञान भी राम की महिमा के आगे नतमस्तक हो गए।
वही 10 सालों से संघर्ष कर रही कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों की सूझबूझ, विचारों और उनकी छवि को देशवासियों का समर्थन मिला है उससे हर पार्टी को सकब लेने की आवश्यकता है कि धर्म के नाम पर राजनीति हम राजनीतिज्ञों को शोभा नहीं देती।
आज देश की जागरूक जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि धर्म की आड़ में राजनीति करने से ना तो विश्व गुरु बना जा सकता है और ना ही देश की जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है। यदि देश की जनता हमारे साथ है तो धर्म भी हमारे साथ है और हमारा पहला धर्म-कर्तव्य है कि राजनीति में देशवासियों के मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और उनकी समस्याओं का निराकरण करायें, देश को गौरवशाली बनाने में सहयोगी बने, देश में अमन, चैन, भाईचारा, सामंजस्य और समानता का भाव स्थापित करें तभी प्रभु श्री राम हमारे हैं और हम श्री राम के हैं।
विपिन कोरी
स्वतंत्र लेखक
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