केंद्र और राज्य की सरकार किसानों की आय बढ़ाने और जीवन बेहतर करने के लाख दावे कर ले लेकिन हकीकत कुछ और ही है। एक ओर जहां किसान एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बेहतर करने के लिए आंदोलन कर रहा है वहीं कुछ किसान तो अपनी फसलों को एमएसपी से भी कम मूल्य पर बेचने को मजबूर हैं। पेटलावद में खेती करने वाले हुंकार सिंह ने बताया कि वह छह महीने में 10 क्विंटल कपास पैदा करता है। सात बीघा में उसकी खेती है और इस उपज के उसे 60 हजार रुपए के लगभग मिल जाते हैं। सरकारी की एमएसपी पर यदि वह कपास को बेचे तो उसे इस उपज के एक लाख रुपए से अधिक मिलेंगे। उसने बताया कि उसे हर उपज पर 30 से 40 हजार रुपए का घाटा होता है। उसके पूरे परिवार को दस हजार रुपए महीने की आमदनी होती है।
दूर दराज में खेती करने वाले छोटे किसान सरकारी मंडियों तक नहीं आ पाते और गांव की मंडियों में जो भी दाम मिल जाता है उस पर अपनी उपज को बेच देते हैं। इंदौर में कपास की खेती करने वाले किसानों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि हर फसल में उन्हें बड़ा घाटा होता है। उनके पास मंडी तक उपज पहुंचाने के लिए गाड़ियां ही नहीं हैं और गाड़ी ले भी लेंगे तो इतना डीजल जल जाएगा कि बचत ही नहीं होगी।इसके मद्देनजर, हम धार जिले में 10,000 करोड़ का कॉटन और टेक्सटाइल हब स्थापित कर रहे हैं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं