जन्म से मृत्यु तक के कर्मकांड और सामाजिक तामझाम इन रोगियों को हमारा सब समाज कमोबेश अब तक हो रहा है खास तौर पर किसी परिजन की मृत्यु के बाद क्रिया कर्म से मृत्यु भोज तक की दुनिया परिवार को निभानी पड़ती है भले ही परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना हो मगर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज इसके उलट मिसाल पेश करते हैं इन समूहों में मृत्यु भोज तक के संस्कार ₹500 से भी कम खर्च में पूरे हो जाते हैं यह परंपरा आपसी सहमति से बरसों से चली आ रही है छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा में 42 आदिवासी समूह निवास करते हैं इसमें गोंड कंबर उड़ान कोरबा और कुमार धुरिया धुर्वा समेत कई जातियां हैं इन सभी में विवाद और परंपराएं हैं