पुलवामा के गांव की तंग गलियों से गुजरते हुए हम कश्मीरी पंडितों की बस्ती पहुंचे तो खंडार बने दर्जनों घर दिखे इसी व्यक्ति में सड़क के सामने एक घर में हमारी मुलाकात बिंदु परिवर्तन ना हमसे हुई जिनके पति दुकान चलाते हैं अगल-बगल कश्मीरी पंडितों के खाली मकान है उन्होंने बताया उनका मायका 20 किलोमीटर दूर बुची गांव में है दादा दीवान और पिता जमींदार थे आतंकवाद के काले दौर में हर तरफ से आई थी एक शाम हथियारबंद लोगों ने पड़ोसियों से ऐसा सुलूक किया हमारा सब्र टूट गया रातों-रात पूरा परिवार आलीशान कोठी से निकलकर जम्मू के शरणार्थी टेंट में पहुंच गया 3 साल टीन शेड में रहे वहीं पढ़ाई की शादी के बाद में यहां आई तो बहुत डर लगता था घर से बाहर नहीं निकलती थी बिंदी सिंदूर तक नहीं लगाती थी हालात सुधारने में काफी वक्त लग गया है