दिव्यांग बेटे को पीठ पर बैठाकर आदि दुनिया घुमा चुकी है यह मां, कहती है… मेरा बेटा भोज नहीं

जिमी के जन्म के वक्त में सिर्फ 17 साल की थी वह जन्म से ही दृष्टिहीन है 6 महीने बाद उसकी दिव्यांगता और मिर्गी की समस्या पता चली इन वजह से उसका शरीर प्रॉपर बढ़ नहीं सका जब यह पता चला था तो मैं बुरी तरह टूट गई थी उबरने में काफी वक्त लगा सिंगल मदर होने से चुनौती और भी बड़ी थी फिर मैंने खुद से पूछा जिस जिमी ने कभी रेनबो नहीं देखा वह मेरे साथ हंसता खेलता है मेरी बताई चीजों पर मुस्कान देता है तो मैं कैसे दुखी रह सकती हूं बस मैंने तय कर लिया कि उसे वैसी ही जिंदगी दूंगी जैसी बाकी बच्चों को मिलती है ऐसा नहीं कि उसके पास व्हीलचेयर मिलती नहीं है पर मुझे उससे कंधों पर लेकर घुमाना पसंद थे मैं थोड़ी दूरी जिमी से तय करने को कहती हूं मुश्किल रास्तों पर उठा लेती हूं मैंने उसे पीठ पर बैठाकर हवाई से लेकर बाली बा पेरिशर की स्की स्लोप्स तक आधी दुनिया दिखा दी मैंने वादा किया था ताकतवर कंधे ही काफी है बेटा कभी मां के लिए बोझ नहीं होता हमारे सफर में होटल रेस्त्रां और एडवेंचर होते हैं कई बार इससे रुकने से मना कर दिया जाता है पर मैंने बैग्स के साथ जिमी को लेकर दूर तक चलने की प्रैक्टिस की है जल्द कि मैं उसे कनाडा लेकर जाने वाली हूं मैं मेरी प्रेरणा है मैं मुझे प्रत्येक न देख पाता हो पर भरोसा है कि वह मन की आंखों से मुझे देखता है उसे रोज नए शब्द सिखाती हूं ताकि वह अपनी बात समझा सके।

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