सूर्य व शनि का केंद्र योग होने से पितरों की पूजा अनिवार्य\
- यम स्मृति व धर्म ग्रंथों की मान्यता से देखें, साथ ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना से देखें तो सूर्य परम कारक ग्रह बताए जाते हैं। आदित्य लोक की गणना और कथानक पुराणों में प्राप्त होते हैं। वहीं शनि का संबंध यम से माना जाता है।दोनों ही स्थितियों में परिवार के लोगों से या स्वजन से जलदान, पिंडदान की इच्छा रखते हैं। ऐसी स्थिति में जब सूर्य की तपिश पड़ती है व शनि का प्रभाव दृष्टि संबंध से स्थापित होता है, तो पितरों का अपना प्रभाव बढ़ जाता है। यहां पर पितरों की तृप्ति के लिए ऐसे योग में तर्पण श्राद्ध, पिंडदान या तीर्थ श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
पितरों के लिए श्राद्ध जरूर करना चाहिए
- हालांकि बुद्ध आदित्य का प्रभाव वर्ष में एक बार श्राद्ध के समय बनता ही है एवं विशेष शश योग का प्रभाव शनि के कुंभ राशि में दो बार बनता है। इस प्रकार के योग में पितरों की आशा तृष्णा अपने अग्रजों पर बढ़ जाती है इसलिए श्राद्ध की प्रक्रिया अवश्य करनी चाहिए।
जानिए कब करना है पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध
गणित को और तिथि के अध्ययन को दृष्टिगत करें या रखें, तो 18 सितंबर के दिन दोपहर 12 बजे तक पूर्णिमा का श्राद्ध करें तथा दोपहर 12 बजे बाद प्रतिपदा का श्राद्ध करें, 1:30 बजे तक प्रतिपदा का श्राद्ध संपन्न कर लेवें। उसके बाद तिथि के क्षय का आरंभ होगा जिसमें श्राद्ध नहीं किए जाते। इसमें अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है यह शास्त्र सम्मत मत है।