रत्न का ग्रहों से कोई संबंध नहीं, यह व्यापारिक वस्तु: पं. विनोद गौतम

बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं होगी: आचार्य निलिम्प त्रिपाठी

  1. ज्योतिष सम्मेलन के आज दूसरे दिन विद्दानों को किया जाएगा सम्मनित
  2. भारत बनेगा विश्व गुरु विषय पर पढ़े जा रहे शोध पत्र
  3. पं. अयोध्या प्रसाद गौतम पंचांग-2025 का किया विमोचन

भोपाल। रत्न का ग्रहों से कोई संबंध नहीं है, यह एक व्यापारिक वस्तु है, देखा जाए तो राजा महाराजा अपना वैभव बढ़ाने के लिए मुकुट सिंहासन और पीक दानियों में रत्न जड़वाते थे। इनका व्यापार होता है। यह व्यापारिक वस्तुएं हैं। ग्रहों से इसका कोई ताल्लुक नहीं होता है। ना ही यह ग्रहों को शांत कर सकते हैं। यह व्यापार है जो ज्योतिषियों के माध्यम से होने लगा है।
यह बात ज्योतिष मठ संस्थान के संचालक एवं ज्योतिषाचार्य और पंचांगकार पंडित विनोद गौतम ने नेहरू नगर स्थित मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) परिसर में दो दिवसीय पंचम कालिदास राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए कही। इस मौके पर आवाहन पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर 1008 स्वामी श्रीअवधूत बाबा अरुणगिरिजी महाराज, संस्कृति विभाग के संचालक एनपी नामदेव, विधायक रामेश्वर शर्मा, पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया, पीसी शर्मा, आचार्य निलिम्प त्रिपाठी,ज्योतिषाचार्य हेमचंद्र पांडेय, चेतन शास्त्री, उज्जैन आदि उपस्थित थे। बता दें कि यह आयोजन ज्योतिष महर्षि पं. अयोध्या प्रसाद गौतमजी की पुण्य स्मृति में एवं मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के सहयोग से किया जा रहा है।

बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं : त्रिपाठी
महर्षि महेश योगी संस्थान के प्राध्यापक एवं ज्योतिषाचार्य पंडित निलिम्प त्रिपाठी ने कहा कि बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं मिल सकती। पत्नी का सुंदर प्रसंग सुनाते हुए त्रिपाठी ने कहा कि पत्नी हमें पतन से बचाती है। वह महनीय है।

सेवा करेंगे तो गुरु प्रबल होगा: हेमचंद्र पांडेय
ज्योतिषाचार्य पंडित हेमचंद्र पांडेय ने कहा कि सेवा से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। ज्योतिष शास्त्र में बुजुर्गों, पूज्यनीय, माता-पिता की सेवा का बड़ा महत्व बताया है। इनकी सेवा सा आशीर्वाद तो मिलता ही है, गुरु ग्रह भी प्रबल होता है। सम्मेलन के पहले दिन लगभग 25 से अधिक ज्योतिषाचार्यों ने शोध पत्र पढ़े एवं भारत बनेगा विश्वगुरु पर चर्चा की।

धोती कुर्ता पहनकर आए ज्योतिषाचार्य
सम्मेलन में देशभर से पधारे ज्योतिषाचार्य पहली बार धोतीकुर्ता पहनकर आए। जिससे सनातन परंपरा की झलक देखने को मिली।

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