गणाचार्य विराग सागर जी महाराज की विनयांजलि सभा का हुआ आयोजन

श्री चिंतामणि पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर अयोध्या नगर में विनयांजलि संपन्न।

अयोध्या नगर जिनालय में विराजमान मुनि श्री विराग सागर जी महाराज ने अपने बाल्यकाल, मात्र 17 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम छुल्लक दीक्षा प्राप्त की थी। आपकी उच्च साधना के बल पर मात्र 20 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा तदोपरांत 28 वर्ष की अल्प आयु में आचार्य पद की प्राप्ति हुई। वात्सल्य मय विराग सागर जी महाराज ने संपूर्ण हिंदुस्तान में लगभग 350 दीक्षाऐं दीं। आपके देश भर में 550 शिष्य, परिशिष्य हैं एवं आपने लगभग 160 साधुओं की संलेखना पूर्वक समाधि पूर्ण करवाने में महती भूमिका निभाई है। हेमलता जैन रचना ने बताया कि विराग सागर महाराज जी के सुयोग्य शिष्य 108 उच्चारणाचार्य श्री विनम्र सागर जी महाराज ससंघ अयोध्या नगर जैन मंदिर में विराजमान हैं। “जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाए रे” सहित 8000 से ज्यादा काव्य संग्रह के रचयिता आचार्य विनम्र सागर जी महाराज के सानिध्य में एक विशाल विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में भेल परिक्षेत्र के सभी मंदिरों के पदाधिकारी एवं श्रद्धालु विशाल संख्या में उपस्थित हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य विराग सागर जी महाराज के चित्र के अनावरण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। तदोपरांत मुनि श्री सुदत्त सागर जी महाराज ने अपनी विनयांजलि प्रस्तुत की। आचार्य विनम्र सागर महाराज ने इस अवसर पर अपने गुरु के प्रति बड़े ही कृतज्ञ भाव से विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा कि “छूट गया गुरु साथ जहां, मन है हुआ उदास वहां,
कोई नहीं अब खास यहां, गुरुवर होते साथ जहां, बनते सारे काम वहां” गुरुवर की महिमा हम तुम्हें सुनाएं रे
जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाए रे” आचार्य श्री ने उनकी दीक्षा दिवस से लेकर गुरु के साथ बिताए गए पलों एवं गुरु की महिमा व हमारे जीवन में गुरु का क्या महत्व है के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किये। मंदिर समिति के अध्यक्ष मनोज कुमार जैन ने बताया कि कल दिनांक 11 जुलाई को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 57 वां दीक्षा दिवस है जिसे अयोध्या नगर जैन मंदिर में मुनि श्री सुदत्त सागर जी महाराज के सानिध्य में भक्ति पूर्वक मनाया जाएगा।

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