मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर जाता दिखता सूर्य अपने अंतिम पड़ाव के 7 दिन पहले शुक्रवार (14 जून) भोपाल के ठीक उपर पहुंचा । इस कारण आमतौर पर तिरछी पड़ने वाली सूर्यकिरणें मध्यान्ह में ठीक लंबवत पड़ रही थी । इस कारण उंचे भवन, किसी खंभे, टॅावर तथा मनुष्य की छाया उसके आधार के नीचे बन रही थी । इससे लग रहा था कि छाया ने काया का साथ छोड़ दिया हो । खगोल विज्ञान की जीरो शैडो डे की इस घटना को समझाने नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बच्चों के साथ प्रयोग करके इसका विज्ञान समझाया । सारिका ने बताया कि इस घटना की तिथि इस बात पर निर्भर करती है कि उस स्थान का अक्षांश क्या है । भोपाल के लिये यह स्थिति प्रथम बार लगभग 14 जून के आसपास आती है । दूसरी बार 28 जून को यह स्थिति आती है । दोपहर के समय इन दो दिनों को छोड़कर बाकी दिन छाया की लंबाई कुछ न कुछ अवश्य रहती है । कर्क रेखा पर स्थित नगरों में यह 21 जून को होती है जिसमें उज्जैन शामिल है । सारिका ने बताया कि 23.5°N एवं 23.5°S डिग्री लैटिटयूड के बीच रहने पड़ने वाले शहरों में पूरे साल में दो दिन ऐसे आते हैं जबकि सूर्य दोपहर में ठीक सिर के उपर रहता है । इस समय किसी भी वस्तु की परछाई दिखना बंद हो जाती है , इसे जीरो शैडो डे कहते हैं ।
प्रयोग कैसे किया –
एक तीन फीट के पाईप को वर्टिकल खड़ा किया गया । दोहपर साढ़े बारह बजे के आसपास इसकी छाया पूरी तरह समाप्त हो गई । इसके अलावा सभी दर्शकों की परछाई भी उनके पैरों के नीचे बन रही थी ।