गोंडवान साम्राज्य की रानी थीं दुर्गावती
मध्यप्रदेश के इतिहास में गोंडवाना साम्राज्य का एक अलग ही महत्व है। वीरांगना रानी दुर्गावती की वीरता के किस्से नारी शक्ति के अद्वितीय उदाहरण हैं। दमोह जिले के सिग्रामपुर के सिंगोरगढ़ में रानी दुर्गावती का किला आज भी उनकी वीरता की कहानियां सुनाता नजर आता है। दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। वर्तमान उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 में दुर्गा अष्टमी के दिन उनका जन्म हुआ था, इसलिए उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। अपने राज्य के प्रति रानी का समर्पण कुछ ऐसा था कि मुगलों से लड़ते-लड़ते उन्होंने अपने प्राणों को बलिदान दिया था।
सिंगोरगढ़ में बना रानी दुर्गावती का किला
दमोह जबलपुर स्टेट हाईवे पर सिग्रामपुर गांव में रानी दुर्गावती प्रतिमा स्थल से छह किलोमीटर की दूरी पर रानी दुर्गावती का सिंगोरगढ़ का किला है। यह जगह रानी दुर्गावती की राजधानी थी। किले की उम्र सैकड़ों वर्ष होने के बाद भी उसकी दीवारें आज भी मजबूती से खड़ी हैं। रानी महल, हाथी दरवाजे, स्नान के लिए किले के अंदर बने जलाशय और किले की पहाड़ियों में बने गुप्त रास्तों का रहस्य आज भी पहेली लगता है। जिले के मुख्य हाथी दरवाजे से कुछ ही दूरी पर सिंगोरगढ़ जलाशय है, यहां आज भी 12 महीने पानी रहता है। रानी दुर्गावती का जन्म राजपूत परिवार में हुआ था उनकी वीरता के किस्से सुनकर गोंडवाना साम्राज्य के तत्कालीन राजा संग्राम सिंह मरावी ने अपने बेटे दलपत शाह मरावी से उनकी शादी करवाई थी। विवाह के चार वर्ष बाद ही दलपत शाह का निधन हो गया था, उस समय रानी दुर्गावती का बेटा नारायण केवल तीन साल का था। रानी ने स्वयं ही गोंडवाना साम्राज्य संभाल लिया, उन्होंने अनेक मठ, बावड़ी व अन्य धर्मशालाएं बनवाईं थीं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल व अपने विश्वस्त दीवान आधार सिंह के नाम पर अधाड़ताल बनवाया था। रानी दुर्गावती के संपन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाज बहादुर ने कई बार हमला किया, लेकिन हर बार पराजित
सैंकड़ों साल बाद आज भी खड़ी हैं किले की दीवारें
गोंड समाज महासभा के प्रदेश महासचिव कौशल सिंह पूर्ति लेखिका कमला शर्मा की पुस्तक यशस्वी रानी दुर्गावती के हवाले से बताते हैं कि मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतना चाहता था। अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसिफ खान के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। एक बार तो आसिफ खान पराजित हुआ पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय कम सैनिक थे, उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया और खुद पुरुष के वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। युद्ध में मुगलों को भारी नुकसान हुआ और 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी ने बेटे नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेजकर पराक्रम दिखाया। हालांकि संभावित हार को देखते हुए उन्होंने खुद अपना बलिदान दे दिया। मंडला रोड पर बरेला नामक इस जगह पर रानी की समाधि है।
अबुल फजल की अकबरनामा में गोंडवाना राज्य का उल्लेख मिलता है। बरेला मंडला रोड पर रानी की समाधि है। यहां गोंड जनजाति के लोग जाकर रानी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में विश्वविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही है। दमोह जिले के बटियागढ़ ब्लॉक के आंजनी गांव में आज भी रानी दुर्गावती की सातवीं पीढ़ी रहती है। खुद को सातवीं पीढ़ी का वंशज बताने वाले इंदुर शाह ने बताया कि हमारे पूर्वज ने हमें कभी झुकना नहीं सिखाया और इसीलिए अपनी रियासत खोनी पड़ी। हालांकि रानी के वंशज सरकार की उपेक्षा से काफी दुखी हैं।