Chaitra Navratri 2023: हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है. 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भक्तों मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं. इस आर्टिकल में हम कुछ मंत्र बताएंगे, जिसके जाप से आपको आदि शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है.
Reported by SACHIN RAI, Dy. Editor, 8982355810
Chaitra Navratri 2023: हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का खास महत्व होता है. चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2023 Date) के साथ ही हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) की शुरुआत होती है. मान्यता है कि इन नौ दिनों में मां दुर्गा (Maa Durga) की आराधना से भक्तों को माता का विशेष आशीर्वाद मिलता है. कई लोग माता रानी को खुश करने के लिए नौ दिनों तक व्रत रखते हैं. नवरात्रि में कुछ मंत्रों के जाप की विशेषता बताई गई है. माना जाता है कि इन मंत्रों के जाप से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. इन मंत्रों का जाप केवल नवरात्रि ही नहीं, बल्कि नियमित रूप से भी कर सकते हैं. आज इस आर्टिकल में हम उन्हीं मंत्रों के बारे में बताएंगे, जिनके जाप से जीवन में आने वाले सभी दोष और बाधाएं दूर हो जाती हैं.
कब से है चैत्र नवरात्रि की शुरुआत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च 2023 की रात 10:52 बजे से शुरू होगी, जो 22 मार्च को रात 8:20 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च से होगी.
नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन मंत्रों का जाप
1. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
2. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
3. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
4. नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’
5. पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता।
प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता।।
पिंडज प्रवररुधा चन्दकपास्कर्युत । प्रसिदं तनुते महयम चंद्रघंतेति विश्रुत।