
तमिलनाडु में हिन्दी विरोध का इतिहास पुराना है। वहां पर क्षेत्रीय पहचान और तमिल भाषा को लेकर गहरी भावना है। हाल ही में एक बार फिर हिन्दी को अनिवार्य करने के मुद्दे पर विवाद भड़का, और इसका असर दूसरे राज्यों, जैसे महाराष्ट्र, पर भी देखने को मिल रहा है।
महाराष्ट्र में क्या हो रहा है?
महाराष्ट्र सरकार कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की योजना बना रही है। वर्तमान में मराठी (मातृभाषा) और अंग्रेज़ी (अंतरराष्ट्रीय भाषा) पढ़ाई जाती है। अब हिन्दी को एक पूरक भाषा के रूप में जोड़ा जा सकता है।
सरकार की दलील:
- मराठी को हमेशा प्राथमिकता दी जाएगी।
- हिन्दी देश की संपर्क भाषा है, इसे जानना छात्रों के लिए फायदेमंद हो सकता है।
- इससे रोजगार, संवाद, और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा।
अजित पवार का बयान
राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा:
- “मराठी हमारी मातृभाषा है और उसे सर्वोच्च दर्जा प्राप्त रहेगा।”
- हिन्दी को पढ़ाना कोई समस्या नहीं है, बल्कि यह एक व्यावहारिक जरूरत है।
- जो लोग हिन्दी का विरोध कर रहे हैं, “वो सिर्फ़ विवाद खड़ा करना चाहते हैं, उनके पास असली मुद्दे नहीं हैं।”
विरोध क्यों हो रहा है?
- क्षेत्रीय दलों और नेताओं को डर है कि हिन्दी थोपने से उनकी भाषा और संस्कृति को नुकसान होगा।
- कुछ लोगों का मानना है कि भाषा थोपना संघवाद के खिलाफ है।
- वे चाहते हैं कि राज्य अपनी भाषाई नीतियों में स्वतंत्रता बनाए रखें।
विश्लेषण:
- भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषा एक संवेदनशील मुद्दा है।
- जहां एक ओर हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है, वहीं संविधान में सभी 22 भाषाओं को समान मान्यता मिली है।
- अगर हिन्दी को छात्रों के लिए वैकल्पिक रूप से पढ़ाया जाए और किसी भाषा को थोपा न जाए, तो संतुलन बना रह सकता है।