चीन की इस नई कूटनीतिक चाल के पीछे कई प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला, चीन का प्राथमिक उद्देश्य अपने आर्थिक और व्यावसायिक हितों को सुरक्षित रखना है। डीआर कांगो खनिज संसाधनों का बड़ा भंडार है, विशेष रूप से कोबाल्ट और तांबे के मामले में, जो चीन की तकनीकी और ऊर्जा जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण हैं।दूसरा, चीन ने हाल ही में अफ्रीकी देशों के साथ अपने राजनयिक संबंधों को और मजबूत करने की कोशिश की है, जिससे वह वैश्विक स्तर पर अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ा सके। रवांडा की तुलना में डीआर कांगो की अर्थव्यवस्था और खनिज भंडार अधिक महत्वपूर्ण हैं, इसलिए चीन ने अपना झुकाव कांगो की ओर कर लिया।तीसरा, पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप, पहले से ही चीन की अफ्रीका नीति पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। ऐसे में चीन खुद को एक स्थिरता लाने वाले देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, जिससे वह पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक और राजनयिक संबंधों में सुधार कर सके।इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन की ‘बैलेसिंग एक्ट’ विदेश नीति अब पूरी तरह से उजागर हो चुकी है और अफ्रीका में उसका असली खेल दुनिया के सामने आ रहा है। अब देखने वाली बात होगी कि रवांडा और अन्य प्रभावित देश इस नए समीकरण पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।