। शिक्षित और सुशिक्षित होने में बहुत अन्तर हैं। पढा लिखा नहीं हैं किन्तु वह व्यक्ति सुशिक्षित हो सकता हैं। सुशिक्षित व्यक्ति सामाजिक गतिविधि में एवं सामाजिक परिवर्तन तथा एकीकरण के लिए सकारात्मक सोचता है और निरन्तर काम करता हैं। जो ऐसा नहीं करता हैं वह व्यक्ति समाज की हत्या (मर्डर) कर रहा हैं। आदिवासी समाज के अधिकांश व्यक्ति समाज की हत्या (मर्डर) करने में तुले हुए हैं। समाज की हत्या (मर्डर) करने वाले अनेक रूपो में है जो सामान्यतः दिखाई नहीं देता हैं। अधिकांश व्यक्ति व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि मन में धारण कर सामाजिक कार्य करता हैं। वह भी समाज की हत्या (मर्डर) करने का भागीदारी हैं। जागरूक व्यक्ति भी समाज को जगाने का काम नहीं करता हैं समाज की दूरगामी परिणाम को बौध्दिक विचारधारा से, तर्क वितर्क से अवगत नहीं कराता हैं। वह भी समाज की हत्या(मर्डर) करने का भागीदारी हैं। समाजवाद का चस्मा नहीं पहनता हैं। वह भी समाज की हत्या करता हैं। समाज की जीत के लिए काम करता हैं लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ को मन में सर्वोपरि मानकर धारण करता हैं।

वह भी समाज की हत्या करने के समान हैं। अंधविश्वास से निकलता नहीं न ही दूसरो को निकालने की कोशिश नहीं करता हैं। वह भी समाज की हत्या करने में भागीदारी हैं। आदिवासी समाज की हत्या(मर्डर) हो रहा हैं, अनेक कारण हैं। आदिवासी समाज के व्यक्ति ही आदिवासी समाज की हत्या (मर्डर) करने में 90 प्रतिशत हाथ हैं। 5 प्रतिशत अन्य का होता हैं।
सामाजिक चिंतक। टी. एस. मरकाम ,सचिव मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद तहसील बिरसा जिला बालाघाट।